पड़ गयी जब से आपकी आदत,
फिर लगी कब मुझे नई आदत.
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ज़ाया कर दी गयीं कई क़समें
ज्यूँ की त्यूं ही मगर रही आदत.
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मुझ को तन्हा जो छोड़ जाती है
शाम की है बहुत बुरी आदत.
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पैरहन और कितने बदलेगी?
रूह को जिस्म की पड़ी आदत.
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चन्द साथी जो बेवफ़ा न हुए,
अश्क, ग़म, याद, बेबसी, आदत.
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ज़िन्दगी यूँ न तू लिपट मुझ से
पड़ न जाए तुझे मेरी आदत.
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आदतन याद जब तेरी आई
रात भर आँखों से बही आदत.
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ये…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2018 at 3:19pm — 16 Comments
एक एक कर काटे डाली , ठूंठ खड़ा मन करे विचार | |
बीत गए दिन हरियाली के , निर्जन बना पेड़ फलदार | |
दिन भर चहल पहल रहती थी , जब होता था छायादार | |
पास नहीं अब आये कोई , सूखा तब से है लाचार | |
भरा रहा जब फल फूलों से , लोग आते तब सुबह शाम | |
कोई खाये मीठे फल को , कोई पौध लगा ले दाम | |
रंग… |
Added by Shyam Narain Verma on May 4, 2018 at 2:30pm — 8 Comments
कच्ची उम्र थी,कच्चा रास्ता,
पर पक्की दोस्ती थी,पक्के हम,
उम्मीदों का,सपनों का कारवां साथ लेकर चलते,
स्वयं पर भरोसा कर,कदम आगे बढाते,
कर्म भूमि हो या जन्म भूमि,हमारी पाठशाला होती,
काल,क्या??किसी व्यतीत क्षणों का पुलिंदा मात्र…
ContinueAdded by babitagupta on May 4, 2018 at 1:02pm — 9 Comments
पन्द्रह दिन पूर्व
निधि का फोन था |मैंने फोन उठाकर कहा की अभी कुछ व्यस्त हूँ |बाद में बात करते हैं |
“दो मिनट में मैं घर पहुँच जाऊँगी |” उसने कुछ बुझी आवाज़ में कहा
“सब ठीक-ठाक है ?” मैंने चिंता जताते हुए कहा |
“बहुत से भूचाल हैं |”
“ससुराल में फिर कुछ हुआ ?”
“वो तो लगा ही रहना है |मुझे लगता है मैं इन लोगों के साथ तालमेल नहीं बिठा सकती |पर कुछ और बताना है पिंकी के बारे में --” निधि का गला भर्राया हुआ था
“क्या हुआ !”
“मुझे लगता है…
ContinueAdded by somesh kumar on May 4, 2018 at 11:00am — 1 Comment
(122 122 122 122)
करोगे कहां तक सबब की वज़ाहत
अंधेरों की कब तक करोगे इबादत
यक़ीं रख के सर को झुकाते रहे हो
दिखाते रहे हो ये कैसी शराफ़त
नहीं ठीक है जो तुम्हारी नज़र में
उसी की ही करते रहे हो वकालत
नई प्रेम नदियां बहा दो जहां में
यहां पर दिखाओ ज़रा सी सख़ावत
भले ख्वाब हों पर हक़ीक़त बनेंगे
मिटेगी यहां नफरतों की रिवायत
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- नंद कुमार सनमुखानी
- मौलिक और अप्रकाशित
Added by Nand Kumar Sanmukhani on May 3, 2018 at 9:00pm — 13 Comments
1222 1222 1222 1222
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कहूँगा बात हो जैसी,अरे मैं तो सलीके से
समझ लो बासमझ,झगड़ो नहीं ,आओ सलीके से।1
लगे हैं दाग ये कितने तुम्हारे आस्तीनों पर
अभी भी वक्त है पगले जरा धो लो सलीके से।2
बहाया खूं पता कितना शरीफों का, गरीबों का?
अगर सच में जिगर धड़के जरा रो लो सलीके से।3
बहुत इमदाद मुँह से बाँटते हो तुम गरीबों में
फ़टी झोली अभी भी है विलखते वो सलीके से।4
पटकने सर लगे कितने कहा…
Added by Manan Kumar singh on May 3, 2018 at 8:09pm — 12 Comments
2122 1212 22
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हर कली को अजब शिकायत है,
इश्क़ करना भ्रमर की आदत है ।
इश्क़ दरिया है उर समंदर भी,
जब तलक़ मुझमें तू सलामत है ।
गम से उभरा तो मैंने जाना ये,
गर है साया तेरा तो ज़न्नत है ।
किसको किसके लिए है हमदर्दी,
हर तरफ फैली बस अदावत है ।
जब धुआँ अपने घर से उट्ठे तो,
कर यकीं रिश्तों में सियासत है
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मौलिक एवं अप्रकाशित
हर्ष महाजन
Added by Harash Mahajan on May 3, 2018 at 2:30pm — 12 Comments
सतवंत पहले से ही मेरे साथ इस के बारे में बात कर चूका था। लेकिन जिस दिन से उसने मुझसे बात की थी, कोई भी पुराना साथी उसके पास नहीं आया और न ही वह किसी को मिलने गया था। मगर उस दिन से घर के लोगों ने उस से बात करना बंद कर दी थी ।
हद तो उस रोज़ हो गई जब इक दिन बाप हाथ में जूती ले कर सतवंत के पीछे दौड़ पड़ा और ये ध्यान भी नहीं किया के लोग क्या कहेंगे, तब सतवंत को लगा था कि इस जिंदगी का क्या फायदा जब बीस को पार कर चुके बच्चे पे माँ बाप को यकीन न रहे , तब कोई और क्या करे ? बड़े भाई से सतवंत ने फोन…
Added by मोहन बेगोवाल on May 2, 2018 at 7:30pm — 7 Comments
कल, आज और कल ....
वर्तमान का अंश था
जो बीत गया है कल
अंश होगा वर्तमान का
आने वाला कल
वर्तमान के कर्म ही
बन जाते हैं दंश
वर्तमान से निर्मित होते
सृजन और विध्वंस
वर्तमान की कोख़ में
सुवासित
हर पल के वंश
वर्तमान से युग बनते
युग में कृष्ण और कंस
कागा धुन निष्फल होती
मोती चुगता हंस
चक्र सुदर्शन कर्म का
करे निर्धारित फल
कर्म बनाएं वर्तमान को
कल, आज और कल
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on May 2, 2018 at 4:21pm — 8 Comments
नश्वरता ....
तुम
कहाँ पहचान पाए
उस बुनकर की
आदि और अंत की
अनंत बुनती को
तुम
बुनकर बन
असफल प्रयास करते रहे
विधि के बनाये
आदि और अंत के
नग्न शरीर की
कृति पर
सच-झूठ ,अच्छा-बुरा ,
तेरा-मेरा ,पाप-पुण्य की सजावट से
दुनियावी वस्त्रों को
अलंकृत करने का
मैं
धागा था
तुम्हारे दर्द का
तुम
बुनकर हो कर भी
मुझे न पहचान पाए
जानते हो
उसकी
और…
Added by Sushil Sarna on May 2, 2018 at 3:32pm — 12 Comments
२१२ २१२ २१२ २१२
हम तो बस आपकी राह चलते रहे
ये ख़बर ही न थी आप छलते रहे
बादलों से निकल चाँद ने ये कहा
भीड़ में तारों की हम तो जलते रहे
हिम पिघलती हिमालय पे ज्यों धूप में
यूँ हसीं प्यार पाकर पिघलते रहे
चांदनी भाती , आशिक हूँ मैं चाँद का
सच कहूं तो दिए मुझको खलते रहे
जुल्फ की छांव में उनके जानो पे सर
याद करके वो मंजर मचलते रहे
एक दूजे को हम ऐसे देखा किये
अश्क आँखों से…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 2, 2018 at 2:30pm — 14 Comments
ग़ज़ल (आज फैशन है)
1222 1222 1222 1222
लतीफ़ों में रिवाजों को भुनाना आज फैशन है,
छलावा दीन-ओ-मज़हब को बताना आज फैशन है।
ठगों ने हर तरह के रंग के चोले रखे पहने,
सुनहरे स्वप्न जन्नत के दिखाना आज फैशन है।
दबे सीने में जो शोले जमाने से रहें महफ़ूज़,
पराई आग में रोटी पकाना आज फैशन है।
कभी बेदर्द सड़कों पे न ऐ दिल दर्द को बतला,
हवा में आह-ए-मुफ़लिस को उड़ाना आज फैशन है।
रहे आबाद हरदम ही अना की बस्ती…
ContinueAdded by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on May 2, 2018 at 8:30am — 13 Comments
करे सुबह से शाम तक, काम भले भरपूर।
निर्धन का निर्धन रहा, लेकिन हर मजदूर।१।
कहने को सरकार ने, बदले बहुत विधान।
शोषण से मजदूर का, मुक्त कहाँ जहान।२।
हरदम उसकी कामना, मालिक को आराम।
सुनकर अच्छे बोल दो, करता दूना काम।३।
वंचित अब भी खूब है, शिक्षा से मजदूर।
तभी झेलता रोज ही, शोषण हो मजबूर।४।
आँधी वर्षा या रहे, सिर पर तपती धूप।
प्यास बुझाने के लिए, खोदे हर दिन कूप।५।
पी लेता दो घूँट मय, तन जब थककर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2018 at 7:39pm — 13 Comments
है मज़हब भले अलग मेरा, पर मैं भी तो इंसान हूँ
खान पान पहनावा अलग, पर बिलकुल तेरे सामान हूँ
ऊपर से चाहे जैसा भी, अन्दर से हिंदुस्तान हूँ
अपने न समझे अपना मुझे, इस बात मैं परेशान हूँ
अपने ही मुल्क में ढूंढ रहा, मैं अपनी पहचान हूँ
मैं भारत का मुसलमान हूँ-२
जब कोई धमाका होता है, लोग मुझ पर उंगली उठाते हैं
आतंक सिखाता है मज़हब मेरा, ये तोहमत हम पर लगाते हैं
दंगों में…
Added by Ranveer Pratap Singh on May 1, 2018 at 4:30pm — 6 Comments
एक बार फिर कंधे पर,
लैपटॉप बैग लटकाये,
वह अलस्सुब्ह निकल पड़ा.
रात को देर से आने पर,
हमेशा की तरह
नींद पूरी नहीं हुई थी,
जलती हुई आँखों,
और ऐठन से भरे शरीर,
को घसीटता हुआ वह,
जल्दी जल्दी बस स्टॉप की तरफ
भागने की कोशिश कर रहा था.
कल रात की बॉस की डांट,
उसे लाख चाहने के बाद भी,
भुलाते नहीं बन रही थी.
कहाँ सोचा था उसने पढ़ते समय,
कि यह हाल होगा नौकरी में.
कहाँ वह सोचता था कि उसे,
मजदूरी नहीं करनी…
Added by विनय कुमार on May 1, 2018 at 4:30pm — 2 Comments
कह-मुकरियाँ
जाऊँ जहाँ वहीं वह होले,
संग संग वह मेरे डोले,
जीवन उसके बिना अलोन,
क्यों सखि साजन ? ना सेल फोन !
हाल चाल सब रखता मेरा,
हमदम सा वह मीत घनेरा,
मै कश्ती तो वह है साहिल,
क्यों सखि साजन ? ना मोबाइल !
चहल पहल वह रौनक लाये,
महफिल में भी रंग जमाये,
उसके बिन जीवन है काहिल,
क्यों सखि साजन ? ना मोबाइल !
.
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Satyanarayan Singh on May 1, 2018 at 3:00pm — 6 Comments
चिथड़े कपड़े,टूटी चप्पल,पेट में एक निवाला नहीं,
बीबी-बच्चों की भूख की आग मिटाने की खातिर,
तपती दोपहरी में,तर-वतर पसीने से ,कोल्हू के बैल की तरह जुटता,
खून-पसीने से भूमि सिंचित कर,माटी को स्वर्ण बनाता,
कद काठी उसकी मजबूत,मेहनत उसकी वैसाखी,…
ContinueAdded by babitagupta on May 1, 2018 at 1:30pm — 4 Comments
ज़िन्दगी में जो हुआ सूद-ओ-ज़ियाँ गिनता रहा
बैठ कर मैं आज सब नाक़ामियाँ गिनता रहा
बाग़बाँ को और कोई काम गुलशन में न था
फूल पर मंडराने वाली तितलियाँ गिनता रहा
और क्या करता बताओ इन्तिज़ार-ए-यार में
तैरती तालाब में मुर्ग़ाबियाँ गिनता रहा
रोकता कैसे मैं उनको नातवानी थी बहुत
बे अदब लोगों की बस गुस्ताख़ियाँ गिनता रहा
लोग भूके मर रहे थे और यारो उस…
ContinueAdded by Samar kabeer on May 1, 2018 at 10:49am — 19 Comments
विवाह में शामिल होने आए दोस्त , रिश्तेदार क़रीबी और परिवार के सदस्य सभी यह जानने के बड़े उत्सुक थे कि आख़िर राहुल मंच से ऐसी क्या घोषणा करेगा जिससे उसकी शादी हमेशा-हमेशा के लिए यादगार बन जाएगी । प्रीतिभोज से निवृत्त होकर सभी मेहमान मंच के सामने एकत्रित हो गए । राहुल अपनी जीवन संगिनी वर्षा का हाथ थामे मंच पर उपस्थित हुआ । हाथ जोड़कर दोनों ने सबका अभिवादन किया और कहा-" साथियों , आप सभी का आभारी हूँ कि आपने अपनी गरिमामयी उपस्थित देकर मेरा मान बढ़ाया । ज़्यादा कुछ नहीं कहूँगा । आज के इस विवाह आयोजन को…
ContinueAdded by Mohammed Arif on May 1, 2018 at 10:30am — 10 Comments
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