मफ़ाइलुन फ़इलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन/फ़इलुन
१२१२ ११२२ १२१२ २२/११२
ख़ुलूस-ओ-प्यार की उनसे उमीद कैसे हो
जो चाहते हैं कि नफ़रत शदीद कैसे हो
छुपा रखे हैं कई राज़ तुमने सीने में
तुम्हारे क़ल्ब की हासिल कलीद् कैसे हो
बुझे बुझे से दरीचे हैं ख़ुश्क आँखों के
शराब इश्क़ की इनसे कशीद् कैसे हो
हमेशा घेर कर कुछ लोग बैठे रहते हैं
अदब पे आपसे गुफ़्त-ओ-शुनीद कैसे हो
इसी जतन में लगे हैं हज़ारहा शाइर
अदब की मुल्क में मिट्टी पलीद कैसे…
Added by Samar kabeer on July 13, 2017 at 11:30am — 57 Comments
आसक्ति …….
परिचय हुआ जब दर्पण से
तो चंचल दृग शरमाने लगे
अधरों पे कम्पन्न होने लगा
पलकों में बिंब मुस्काने लगे ll
काजल मण्डित रक्तिम लोचन
अनुराग निशा से बढ़ाने लगे
कच क्रीडा में लिप्त समीर से
मेघ अम्बर में शरमाने लगे ll
लज्ज़ायुक्त स्वर्णिम कपोल पे
फिर जलद नीर बरसाने लगे
कनक कामिनी की काया पे
मधुप आसक्ति दर्शाने लगे ll
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 12, 2017 at 4:30pm — 15 Comments
मापनी २२१२ २२१२ २२१२
आ तो सही एक बार मेरे गाँव में
अद्भुत अतिथि सत्कार मेरे गाँव में
हर वक्त रहते हैं खुले सबके लिए
सबके दिलों के द्वार मेरे गाँव में
तालाब नदियाँ और पनघट की छटा
है प्रीति का…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 12, 2017 at 9:44am — 20 Comments
कुण्डलियाँ छंद पर प्रथम प्रयास
.
बोझ बढ़ा आवाम पर मगर न आई लाज
लगी लेखनी को अजब भक्तिभाव की खाज.
भक्तिभाव की खाज जो आधी रात जगाये
अपनी बरबादी का ज्ञानी जश्न मनाये.
व्यापारी का देश में बुरा हुआ है हाल
मौजी निकला घूमने.. देश करे हड़ताल.
.
.
अठरह फी से दिक्कत थी अट्ठाईस से प्यार
बड़े ग़ज़ब के तर्क हैं बड़े ग़ज़ब सरकार.
बड़े ग़ज़ब सरकार लगे जी एस टी प्यारा
भक्ति करेंगे और बनेंगे हम ध्रुव तारा.
पूजन…
Added by Nilesh Shevgaonkar on July 11, 2017 at 5:30pm — 17 Comments
2122 -1212 -22
आस दिल में दबी रही होगी
और फिर ख़्वाब बन गई होगी।
टूट जाए सभी का दिल या रब
दिलजले को बड़ी ख़ुशी होगी।
ज़ह्न हारा हुआ सा बैठा है
दिल से तक़रार हो गई होगी।
जिसकी खातिर लुटा दी जान उसने
चीज़ वो भी तो कीमती होगी।
जब मुड़ा तेरी ओर परवाना
शमअ बेइन्तहा जली होगी।
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Added by Gurpreet Singh jammu on July 11, 2017 at 1:26pm — 28 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 11, 2017 at 11:00am — 24 Comments
नवसृजन कर हम बनाएँ,
एक भारत श्रेष्ठ भारत
काम हो हर हाथ को,
ख़त्म हो बेरोजगारी.
हो न शोषण बालकों का,
और हो भय मुक्त नारी.
आचरण में भ्रष्टता से,
मुक्त हो अपनी सियासत.
शांति के हम दूत बनकर,…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on July 11, 2017 at 8:41am — 10 Comments
२१२२ १२१२ २२
बात खाली मकान क्या करता
दास्ताँ वो बयान क्या करता
पंख कमजोर हो गये मेरे
लेके अब आसमान क्या करता
उसकी सीरत ने छीन ली सूरत
उसपे सिंघारदान क्या करता
रूठ जाते मेरे सभी अपने
चढ़के ऊँचे मचान क्या करता
नींव में झूठ की लगी दीमक
लेके ऐसी दुकान क्या करता
बाढ़ में ढह गये महल कितने
मेरा कच्चा मकान क्या…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 11, 2017 at 8:30am — 36 Comments
Added by Rahila on July 11, 2017 at 6:26am — 9 Comments
सर्द रात में कोहरे को चीरती हुईं कई गाड़ियाँ, आपस में बतियाती हुयीं शहरों की झुग्गियों में कुछ ढूँढ रहीं थी तभी अचानक !
“अबे गाड़ी रोक, बॉस का फ़ोन आ रहा है I”
ड्राईवर ने कस कर ब्रेक दबा दिया और धमाके के साथ “जी, साहब , कहते ही आदमी फ़ोन सहित गाडी के बाहर I”
“अबे ! यह धमाका कैसा सुनाई दिया, जिन्दा हो या फ्री में खर्च हो गए ?”
“नहीं जनाब, सब ठीक है, लगभग सब काम हो गया है, सारे छुटभैये नेता खरीद लिए हैं!” “अल्लाह ने चाहा तो…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on July 11, 2017 at 12:51am — 10 Comments
“खाना लगा दूं ! लेफ्टिनेंट साहब ?”
“अभी नहीं ! रूक जा जरा, बस यह चित्र पूरा ही होने वाला है, तब तक जरा एक पैग बना ला ‘ऑन द रोक्स’ I”
“क्या साब, आज दिन में ही...?”
“हूँ ! ... बेटा, एक काम कर सारे खिड़की दरवाजे बंद कर दे और लाइट्स जला दे I”
थापा ने ठीक वैसा ही किया, पैग बना लाया और बोला, “लीजिये साब, हो गयी रात I”
लेफ्टिनेंट साहब अपनी बैसाखी के सहारे मुस्कराते हुए आगे बढे, गिलास पकड़ लिया और बोले…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on July 10, 2017 at 10:47pm — 5 Comments
Added by khursheed khairadi on July 10, 2017 at 9:00pm — 15 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 10, 2017 at 5:00pm — 9 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on July 10, 2017 at 12:00pm — 10 Comments
2122 2122 212
वो हमारा आइना हो जाएगा ।
सच कहूँ दिल का खुदा हो जाएगा ।
हैं विचाराधीन सारे जुर्म क्यों ।
वह इलेक्शन में खड़ा हो जाएगा ।।
देखना तुम भी इसी बाजार में ।
सच भी कोई मकबरा हो जाएगा ।।
फैसले होंगे उसी के हक़ में अब ।
हाकिमों से मशबरा हो जाएगा ।।
इस सियासत में कोई जल्लाद भी ।
जिंदगी का रहनुमा हो जाएगा ।।
फिर कहर ढाने लगा है वह शबाब ।
हुस्न पर कोई फ़ना हो जाएगा ।।
शरबती आंखों की हरकत…
Added by Naveen Mani Tripathi on July 10, 2017 at 10:00am — 8 Comments
Added by Samar kabeer on July 10, 2017 at 12:31am — 26 Comments
Added by रामबली गुप्ता on July 9, 2017 at 10:30pm — 14 Comments
Added by Mohammed Arif on July 9, 2017 at 7:00pm — 12 Comments
Added by Hariom Shrivastava on July 9, 2017 at 6:34pm — 5 Comments
Added by नाथ सोनांचली on July 9, 2017 at 6:11pm — 18 Comments
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