सितार के
सुरमई तारों की झंकार से
गूँज उठी
स्वप्न नगरी..
समय के धुँधलके आवरण से
शनैः शनैः
प्रस्फुटित हो उठी
एक आकृति
अजनबी
अनजान..
स्वप्नीली पलकें
संतृप्त मुस्कान
प्राण-प्राण अर्थ
निःशब्द..
निःस्पर्श स्पंदन
कण-कण नर्तन
क्षण विलक्षण
मन प्राण समर्पण
सखा-साथी-प्रिय-प्रियतम-प्रियवर
अनकहे वायदे, गठबंध परस्पर - हमसफ़र !
Added by Dr.Prachi Singh on August 27, 2013 at 7:00pm — 23 Comments
मेरा वजूद बस इक बार बेखबर कर दे
पनाह दे तो असातीन मोतबर कर दे
चमन कहीं भी रहे और गुल कहीं भी हो
मेरे अवाम को बस खुशबुओं से तर कर दे
कोई निगाह तगाफुल करे न गैर को भी
सदा उठे जो बियाबाँ से चश्मे-तर कर दे
कहाँ-कहाँ न गया हूँ मैं ख्वाब को ढोकर
मेरा ये बोझ जरा कुछ तो मुक्तसर कर दे
तमाम रात अंधेरों से भागता ही रहा
तमाम उम्र उजाला तो रूह भर कर दे
तगाफुल= उपेक्षा; असातीन= खम्भा ;…
ContinueAdded by Dr Lalit Kumar Singh on August 27, 2013 at 5:51pm — 15 Comments
आई है जन्माष्टमी , धूम मची चहुँ ओर
जन्मदिन मनाओ सखी, मनवा नाचे मोर ||
विष्णु जी बाद आठवें ,कृष्ण हुए अवतार
ब्रज भूमि अवतरित हुए, दिया कंस को मार ||
जन्मोत्सव की आज तो, मची हुई है धूम
गोकुलवासी हैं सभी, रहे ख़ुशी से झूम ||
पूत देवकी वासु के ,यशोदा लिया पाल
तारे सबकी आँख के,गोकुल के हैं लाल ||
आतताई खत्म किया,छाया ब्रज उल्लास
चमत्कार कर नित नए,बढ़ा रहे विश्वास ||
राधा अदभुत प्रीत की ,दे रही…
ContinueAdded by Sarita Bhatia on August 27, 2013 at 2:30pm — 9 Comments
फैक्ट्री के आफिस के सामने एक लम्बी सी कार आ कर रुकी और भुवेश बाबू आँखों पर काला चश्मा चढ़ा कर आफिस में अपना काला बैग रख कर वह किसी मीटिग के लिए चले गए, जब वह वापिस आये तो उनके बैग में से किसी ने पचास हजार रूपये निकाल लिए थे। आफिस के सारे कर्मचारियों को पूछताछ के लिए बुलाया गया, सबकी नजरें सफाई कर्मचारी राजू पर टिक गई क्योकि उसे ही भुवेश बाबू के कमरे से बाहर आते हुए देखा गया था। अपनी निगाहें नीची किये हुए राजू के अपना गुनाह कबूल कर लिया और मान लिया कि वह ही चोर है, पुलिस आई और राजू को पकड़…
ContinueAdded by Rekha Joshi on August 27, 2013 at 1:00pm — 19 Comments
मौलिक / अप्रकाशित
हाकी काकी सी सरस, क्रिकेट बुआ हमार |
राखी भैया-द्वीज पर, पा विशेष उपहार |
पा विशेष उपहार, हार हीरों का पाई |
जाए हीरो हार, करोड़ों किन्तु कमाई |
काकी का कर्तव्य, करे नित सेवा माँ की |
लेडी मेवा खाय, खूब चीयर हा हा की ||
Added by रविकर on August 27, 2013 at 12:00pm — 6 Comments
जो मै हूँ वही है तू , नही गर मै नही है तू ।
नही कुछ तू तू सबकुछ है , तू अंबर है ज़मी है तू ।
हवा भी तू घटा भी तू , तू ही बारिश की रिमझिम है ।
तू ही खिलता है फूलों में , सितारों की तू टिम टिम है ।
जो ना जानू कहीं ना तू , जो जानू तो यही है तू ।
परिंदों के मधुर स्वर में , तू ही नदियों की कल कल में ।
वक्त गुज़रे न गुज़रे तू , तेरा तो वास पल पल में ।
ये जीवन तुझसे पूरा है , तो इसकी हर कमी है तू ।
छुपाकर खुद को परदे में,…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on August 27, 2013 at 10:56am — 7 Comments
घोटाले कर कर हुई, भ्रष्ट आज सरकार
जनता डर डर रह रही, संसद भी बीमार
संसद भी बीमार, मिलै नहि मोहे चैना
जुल्मी है सरकार, बड़ा मुश्किल है रहना
कह सागर सुमनाय, काम तो इनके काले
खाना बांटे मुफ्त, करे नित नए घोटाले
आशीष श्रीवास्तव - सागर सुमन
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Ashish Srivastava on August 27, 2013 at 7:30am — 15 Comments
सच कहूँ
तो मुझे कभी समझ में नही आया
कि जीवन में वह कौन सा क्षण था
जब पहली बार मिले थे तुम ...
लगे थे मित्र से भी कुछ अधिक वल्लभ ,
भाई से भी कुछ अधिक अपने ,
सखा से भी कुछ अधिक स्नेही,
पिता से भी कुछ अधिक पवित्र !
यों तो सबके दुलारे हो
पर मुझे कुछ अधिक प्यारे हो
जो नहीं आता मुझे
सब सिखलाते हो
रास्ता दिखाते हो मेरी
नादानियों पर मुस्कुराते हो
आशीष बरसाते हो
हे…
ContinueAdded by Vasundhara pandey on August 27, 2013 at 7:30am — 2 Comments
लघुकथा-लौटना
मन के कोने में कुछ विचार उथल-पुथल मचा रहे थे। कि मनुष्य को जब आगे कुछ दिखाई दे रहा हो तो वह आगे बढ कर उसे समेट लेने की सोचता है जबकि जिस जगह वह खडा होता है वह वहां तक उसी रास्ते से आया है। जिस रास्ते को वह आगे देखते हुय़े भूल जाता है। सोचते-सोचते सागर अपनी यादों में खो जाता है और बिल्कुल अकेला हो जाता है वह याद करता है कि किस तरह उसकी प्रयेसी कुसुम उसके आफिस में उससे दुनिया से अलग हट कर प्यार करने की बातें करती थी। और प्यार जताती भी थी, जब उसका तबादला हो गया तो वह…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on August 27, 2013 at 7:30am — 9 Comments
बहुत बरस पहले एक राजा था एक रात उसने एक सपना देखा कि सूरज भरी दोपहर में अपना सुनहरा पीला रंग छोड़ कर लाल हो रहा था एकदम सुर्ख लाल | राजा अनजाने भय से काँप उठा सुबह उसने अपनी बिरादरी के लोगों से इस सपने का जिक्र किया पता लगा उन्होंने भी ऐसा ही सपना देखा है |
मंत्रियों पंडितों से विचार विमर्श कर पाया कि यह किसी परिवर्तन का संकेत है |
ओह !तब तो जल्द ही कुछ सोचना होगा राजा परेशान हो उठा | सलाह मशविरा किया तो पता लगा राज्य में कुछ लोगों का जीवन स्तर सामान्य…
ContinueAdded by vandana on August 27, 2013 at 7:30am — 10 Comments
Added by Prof. Saran Ghai on August 27, 2013 at 6:30am — 6 Comments
धरती भी काँप गयी
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उड़ान भरती चिड़िया
जलती दुनिया
आंच लग ही गयी
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दाढ़ी बाल बढ़ाये
साधू कहलाये
चोरी पकड़ा ही गयी
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इतना बड़ा मेला
पंछी अकेला
डाल भी टूट गयी
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खंडहर भी चीख उठा
रक्त-बीज बाज बना
धरती भी काँप गयी
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कानून सोया था
सपने में रोया था
देवी…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on August 27, 2013 at 12:30am — 8 Comments
प्याजी दोहे.....
मंडी की छत पर चढ़ा, मंद-मंद मुस्काय
ढाई आखर प्याज का, सबको रहा रुलाय ||
प्यार जताना बाद में , ओ मेरे सरताज
पहले लेकर आइये, मेरी खातिर प्याज ||
बदल गये हैं देखिये , गोरी के अंदाज
भाव दिखाये इस तरह,ज्यों दिखलाये प्याज ||
तरकारी बिन प्याज की,ज्यों विधवा की मांग
दीवाली बिन दीप की या होली बिन भांग…
Added by अरुण कुमार निगम on August 26, 2013 at 11:14pm — 18 Comments
Added by Ashish Srivastava on August 26, 2013 at 11:00pm — 16 Comments
मिल कर आँखे चार करें
आजा रानी, प्यार करें
जग पर तम गहराया है
भेद इसे, उजियार करें
कैसे कैसे लोग यहाँ
छुपछुप पापाचार करें
नया पैंतरा दिल्ली का
भोजन का अधिकार करें
लीडर तेरा क्या होगा
वोटर जब यलगार करें
चलो यहाँ से 'अलबेला'
हम भी कारोबार करें
-अलबेला खत्री
मौलिक / अप्रकाशित
Added by Albela Khatri on August 26, 2013 at 10:00pm — 13 Comments
(आज से करीब ३२ साल पहले: भावनात्मक एवं वैचारिक ऊहापोह)
रात्रिकाल, शनिवार ३०/०५/१९८१; नवादा, बिहार
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मेरी ये धारणा दृढ़ होती जा रही है कि सत्य, परमात्मा, आनंद, शान्ति- सभी अनुभव की चीज़ें हैं. ये कहीं रखी नहीं हैं जिन्हें हम खोजने से पा लेंगे. ये इस जगत में नहीं बल्कि हममें ही कहीं दबी और ढकी पड़ी हैं और इसलिए इन्हें इस बाह्य जगत में माना भी नहीं जा सकता, खोजा भी नहीं जा सकता, और पाया भी नहीं जा सकता....स्वयं के…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on August 26, 2013 at 1:26pm — 6 Comments
श्रवण की बहन श्रद्धा सरकारी अस्पताल में भर्ती थी | विधवा माँ श्रद्धा से मिलने को व्याकुल थी |श्रवण असमंजस में था कि माँ को कैसे रोके | उसके सास ससुर श्रावण पूर्णिमा में गंगा स्नान करने को आ रहे थे |
श्रवण - माँ :तुम जानती हो रेखा कैसे घर से आयी है, उसे काम करने की आदत नहीं है |समय पर खाना ,नाश्ता देने को तो तुम्हे खुद ही रुक जाना चाहिए था |पर तुम्हे हमारे घर की इज्जत से क्या लेना देना ? तुम्हे तो केवल श्रद्धा चाहिए , वो मरी तो नहीं जा रही है | उसे रोग बढ़ा चढ़ा कर बताने की आदत है |
दो…
Added by shubhra sharma on August 26, 2013 at 12:44pm — 24 Comments
बहू बनाम बेटी
राधा जी घर मे अकेली थी , बेटा बहू के साथ उसकी बीमार माँ को देखने चला गया था । उसने कुछ पूछा भी नहीं बस आकार बोला – माँ हम लोग जरा कृतिका की माँ को देखने जा रहे है शाम तक आ जाएँगे । आपका खाना कृतिका ने टेबल पर लगा दिया है टाइम पर खा लेना , तुम्हारी दवाएं भी वही रखी है खा लेना भूलना मत ,और दरवाजा अच्छे से बंद कर लेना ।” कहता हुआ वो कृतिका के साथ बाहर निकल गया । पर बहू ने एक शब्द भी न कहा । “क्या वो कहती तो क्या मै मना कर देती । बहुयेँ कभी बेटी नहीं बन सकती आखिर…
ContinueAdded by annapurna bajpai on August 26, 2013 at 12:30pm — 21 Comments
"अबे तेरा दिमाग तो ख़राब नहीं हो गया ? बेगानों का साथ देकर अपनों से गद्दारी करेगा?
"वो साले बेगाने ज़रूर हैं, लेकिन दिहाड़ी भी तो डबल देते हैं."
Added by योगराज प्रभाकर on August 26, 2013 at 10:30am — 37 Comments
बहर: हज़ज़ मुसम्मन सालिम
१२२२, १२२२, १२२२, १२२२
मिलन अपना नहीं संभव जुदाई में समस्या है,
अधूरी प्रेम की पूजा कठिन दिल की तपस्या है,…
ContinueAdded by अरुन 'अनन्त' on August 25, 2013 at 10:30pm — 23 Comments
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