हिम्मत है तो मुझसे आकर द्वंद करो। वरना यूँ अनर्गल प्रलाप को बंद करो॥
छोरे छोरी में जो भेद करे ऐसे। गाँव की सगरी ऐसी खाप को बंद करो॥… |
Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on October 27, 2018 at 2:00pm — 2 Comments
नादान से बच्चे भी हँसते हैं, जब वो ऐसा कहता है
दुनिया का सबसे बड़ा झूठा, खुद को सच्चा कहता है
मुँह उसका है अपने मुंह से, जो कहता है कहने दो
कहने को तो अब वो खुद को, सबसे अच्छा कहता है
चिकने पत्थर, फैली वादी, उजला झरना, सहमे पेड़
लहू से भीगा हर इक पत्ता, अपना किस्सा कहता है
सूखे आंसू, पत्थर आँखें, लब हिलते हैं बेआवाज
लेकिन उन पे जो गुजरी है, हर इक चेहरा कहता…
ContinueAdded by Ajay Tiwari on October 27, 2018 at 7:00am — 30 Comments
1222 1222 1222 1222
(मिर्ज़ा ग़ालिब की ज़मीन पे लिखी ग़ज़ल)
जिन्हें भी टूट के चाहा वो पत्थर के सनम निकले
चलो अच्छा हुआ दिल से मुहब्बत के भरम निकले //1
उड़ें छीटें स्याही के, उठे पर्दा गुनाहों से
कभी तो तेग़ के बदले म्यानों से कलम निकले //2
हवा में ढूँढते थे पाँव अपने घर के रस्ते को
तेरी महफ़िल से आधी रात को पीकर जो हम निकले //3…
Added by राज़ नवादवी on October 26, 2018 at 4:30pm — 15 Comments
मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२२
आदमी गुम हो गया है आज ईंटों पत्थरों में
है कहाँ परिवार वो जो पल्लवित था छप्परों में
हँसते-हँसते जान दे दी दौर वो कुछ और ही था
ढूँढना इंसानियत भी अब कठिन है खद्दरों में
आपने हमको सुनाया गीत के मुखड़े में’ दम है…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on October 26, 2018 at 1:00pm — 15 Comments
"आज फिर नींद नहीं आ रही है आपको, भूलने की कोशिश कीजिये उसे", रश्मि ने बेचैनी से करवट बदलते हुए राजन से कहा और उठकर बैठ गयी. कुछ देर तक तो वह अँधेरे में ही राजन का सर सहलाते रही, फिर उसने कमरे की बत्ती जला दी.
"लाइट बंद कर दो रश्मि, अँधेरे में फिर भी थोड़ा ठीक लगता है. उजाला तो अब बर्दास्त नहीं होता, काश उस दिन मैं नहीं रहा होता", राजन ने रश्मि की गोद में सर छुपा लिया.
धीरे धीरे रश्मि ने अब अपने आप को संभाल लिया था लेकिन अभी भी जब वह बाहर निकलती, उसे लगता जैसे लोगों की निगाहें उससे…
Added by विनय कुमार on October 26, 2018 at 12:24pm — 14 Comments
बह्र : 2122 1122 1122 112/22
अश्क़ आँखों में कभी भूल के लाते भी नहीं
और बर्बादियों का शोक मनाते भी नहीं
पूछ कर ज़िन्दगी में लोग जो आते भी नहीं
इतने बेदर्द हैं जाएँ तो बताते भी नहीं
वो ख़ुशी थी कि जिसे रास नहीं आए हम
और वो ग़म हैं जो हमें छोड़ के जाते भी नहीं
लोग चाहत का गला घोंट तो देते हैं मगर
दफ़्न करते भी नहीं और जलाते भी नहीं
जाइए आपका मैख़ाने में क्या काम है जब
ख़ुद भी पीते नहीं औरों को पिलाते भी…
Added by Mahendra Kumar on October 26, 2018 at 11:52am — 21 Comments
अरकान:
फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फेलुन
क़ैद मैं, कैसे दायरे में हूँ
कौन है जिसके सिलसिले में हूँ
आप तो मीठी नींद सोते हैं
और…
ContinueAdded by santosh khirwadkar on October 26, 2018 at 9:11am — 15 Comments
'परखना, पहचानना, ताड़ना या प्रतारणा या उद्धार करना' ... इन विभिन्न अर्थों में संत तुलसीदास जी की चौपाई ”ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी।।“ में आये 'ताड़न' शब्द पर इंटरनेट-ज्ञान बघारते हुए कुछ पुरुषों में चर्चा क्या हुई, कि उनके बीच नई सदी के रंग-ढंग पर उस पंक्ति पर तुकबंदी और पैरोडी सी शुरू हो गई! .. फिर मज़ाक ने बहस का रूप ले लिया।
"भई अब तो महिला-पुरुष समानता और महिला सशक्तिकरण की बातें हो रही हैं अपने वतन में भी! योजनाएं और क़ानून बन रहे हैं लड़कियों और…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 26, 2018 at 2:59am — 4 Comments
आज लहरों ने की बातें मुझसे
बोलीं
तुम सोचती हो तुम हो बहादुर
समय से तुम लडती हो
मूर्ख हो तुम
जो यह सोचकर दम भरती हो|
और वह इठला कर चली गयी
दूर
वहीं जहाँ से वह आयीं थी
किनारे तक
और वहाँ पड़े चट्टानों से
टकरा-टकरा कर रही थी
बातें उनसे,
कह रहे थे चट्टान उनसे
रुक जाओ
करीब आप मेरे ऊपर से
न यूँ बह जाओ
रुको कुछ घड़ी
की हम तपते हैं
और…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 26, 2018 at 12:00am — 9 Comments
1222 1222 1222 1222
महल टूटा जो ख्वाबों का तो फिर बिखरा नज़र आया ।
गुलिस्ताँ जिसको समझा था वही सहरा नजर आया ।।1
बहुत सहमा है तब से मुल्क फिर खामोश है मंजर।
उतरते ही मुखौटा जब तेरा चेहरा नजर आया ।।2
अजब क़ानून है इनका मिली है छूट रहजन को ।
मगर ईमानदारों पर बड़ा पहरा नज़र आया ।।3
सियासत छीन लेती होनहारों के निवालों को ।
हमारा दर्द कब उनको यहाँ गहरा नजर आया ।।4
वो भूँखा चीखता हक माँगता मरता रहा लेकिन…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on October 25, 2018 at 10:01pm — 13 Comments
वो बैठा दिल में आन सलीके से
फिर ले ली मेरी जान सलीके से
यूँ ही पहले थोड़ी सी बात हुई
बन बैठे फिर अरमान सलीके से
पल भर को पहलू में आओ चन्दा
इतना तो कर अहसान सलीके से
काफी है पलकों का उठना गिरना
तू नैन कटारी तान सलीके से
दिल की दुनिया लूट गईं दो आँखें
फिर होती हैं हैरान सलीके से
कोने की उस जर्जर अलमारी में
रख छोड़े कुछ अरमान सलीके से
जिनको थी लाज बचानी कलियों की
बन…
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 25, 2018 at 5:00pm — 18 Comments
परख - लघुकथा -
नीना जैसे ही चाय की ट्रे लेकर, उसे देखने आये लड़के वालों के परिवार की एक मात्र महिला को चाय देने बढ़ी, उस महिला को देख कर नीना के होश उड़ गये। उसे लगा वह अभी चक्कर खा कर गिर जायेगी। अब उसे निश्चित लग रहा था कि यह रिश्ता भी नहीं होने वाला। माँ बापू को आज फिर तगड़ा झटका लगेगा।
हालांकि नीना एक बड़ी कंपनी में इंजीनियर थी। बस खूबसूरती में औसत थी। रंग भी थोड़ा दबा हुआ था। अतः रिश्ते होते होते रह जाते थे।
नीना के सामने कालेज की वह घटना चल चित्र की तरह घूम गयी। जब वह…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 25, 2018 at 3:20pm — 12 Comments
शोक सभा चालू थी, हर आदमी आता और मरे हुए लोगों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपनी बात शुरू करता और फिर प्रशासन को कोसते हुए अपनी बात ख़त्म करता. बीच बीच में लोग उस एक व्यक्ति की भी तारीफ़ जरूर करते जिसने कई लोगों को बचाया था लेकिन अपनी जान से भी हाथ धो बैठा था.
उधर कही आसमान में रूहें एक जगह बैठी हुई जमीन पर चलने वाले इस कार्यक्रम को देख रही थीं. उनमें अधिकांश तो उस एक रूह से बहुत खुश थीं जिसने उनके कुछ अपनों को बचा दिया था लेकिन एक रूह बहुत बेचैन थी. उसे यह बात जरा भी हजम नहीं हो…
Added by विनय कुमार on October 25, 2018 at 11:34am — 12 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
सुनते हैं खूब न्याय की सच्चाइयाँ जलीं
कैसा अजब हुआ है कि अच्छाइयाँ जलीं।१।
वर्षों पुरानी बात है जिस्मों का जलना तो
इस बार तेरे शहर में परछाइयाँ जलीं।२।
कितने हसीन ख्वाब हुये खाक उसमें ही
ज्वाला में जब दहेज की शहनाइयाँ जलीं।३।
सब कुछ यहाँ जला है, तेरी बात से मगर
हाकिम कभी वतन में न मँहगाइयाँ जलीं।४।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 25, 2018 at 2:30am — 18 Comments
अंबर और धरणी पर आज,
शारदीय चाँदनी रात खिली,
पूनो का चाँद लेकर आई,
तारों की बारात खिली,
कार्तिक पुरवाई बहे,
मीठी-मीठी ठंड़ खिली ,
चमेली,चंपा, जूही से महके,
सपनों की सौगात खिली,
शुभ्र चमके निहारिका ये ,
दृश्यमान है गात खिली,
गोकुल रास रचाएँ कान्हा,
वंशी की मधुरम तान खिली,
गोपियाँ-राधा झूमें-नाचें,
रक्तिम अधरों पर मुस्कान…
ContinueAdded by Arpana Sharma on October 25, 2018 at 12:00am — 8 Comments
मुझे विरासत में मिलीं
कुछ हथौड़ियाँ
कुछ छेनियाँ
मिला थोड़ा-सा धैर्य
कुछ साहस
थोड़ा-सा हुनर
मैं तराशने लगा
निर्जीव पत्थरों को
बना दिया
सुंदर-सुंदर मूर्तियाँ
जो कई अर्थों में
श्रेष्ठ हैं
ईश्वर द्वारा बनायी गयीं
सजीव मूर्तियों से
जिन्हें नहीं पता रिश्तों की मर्यादा
नही कर पातीं ये भेद
दूधमुँही बच्चियों, युवतियों और वृद्ध महिलाओं में
काश
एक अदद कलम
मुझे मिली होती …
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 24, 2018 at 11:30pm — 21 Comments
जर्जर तेरा महल हुआ है
बासी आबोदाना
रूह का पाखी बोल रहा चल
बदलें आज ठिकाना
कोने कोने जाल मकड़िया
ढहने को तैयार दुकड़िया
ईंटें होती नंगी सारी
गारे की भी तंगी भारी
गाटर हुआ पुराना
पसरी आँगन बीच उदासी
जमी हुई हैं सभी निकासी
धूप हवा आती डर डर कर
धीमे धीमे ठहर ठहर…
Added by rajesh kumari on October 24, 2018 at 9:48pm — 12 Comments
नोट:-
तरही मुशायरा अंक-100 में 87 ग़ज़लें पोस्ट हुईं,मेरी इस ग़ज़ल में जो क़वाफ़ी इस्तेमाल हुए हैं वो बिल्कुल नये हैं ।
पहले सिल पर घिसा गया है मुझे
फिर जबीं पर मला गया है मुझे
जाल हूँ इक सियासी लीडर का
नफ़रतों से बुना गया है मुझे
कोई बारूद की तरह देखो
सरहदों पर बिछा गया है मुझे
कहदो तक़दीर से बखेरे नहीं
करके वो एक जा गया है…
ContinueAdded by Samar kabeer on October 24, 2018 at 5:54pm — 47 Comments
चारो तरफ मची भगदड़ अब धीरे धीरे कम हो चली थी, बस घायल लोगों की चीखें ही चारो तरफ गूंज रही थीं. इस भयानक हादसे में सैकड़ों लोग मरे थे और उससे ज्यादा ही घायल थे. राहत में पहुंचे लोग मृत शरीरों को एक तरफ इकट्ठा कर रहे थे और घायलों को हस्पताल भेजने की तैयारी में भी जुटे थे.
पटरी के एक तरफ पड़े एक युवा के मृत शरीर को लोगों ने उठाकर एक तरफ कर दिया. कुछ ही देर बाद कुछ और लोग एक लड़की के मृत शरीर को भी वहीँ डाल गए. कुछ घंटे बीतते बीतते तमाम लाशें एक दूसरे से गड्डमड्ड पड़ीं थीं और लड़के का हाथ लड़की के…
Added by विनय कुमार on October 24, 2018 at 12:33pm — 14 Comments
२१२२ /२१२२ /२१२२/ २१२
दर्द का आँखों में सबकी इक समंदर कैद है
चार दीवारी में हँसता आज हर घर कैद है।१।
हो न जाये फिर वो हाकिम खूब रखना ध्यान तुम
जिसके सीने में नहीं दिल एक पत्थर कैद है।२।
जब से यारो ये सियासत हित परस्ती की हुयी
हो गया आजाद नेता और अफसर कैद है।३।
राज्य कैसा राम का यह ला रहे ये देखिये
बंदिशों से मुक्त रहजन और रहबर कैद…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 24, 2018 at 7:30am — 18 Comments
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