बहुत से फंदे है
उनके पास
छोटे-बड़े नागपाश
इन फंदों में
नहीं फंसती उनकी गर्दन
जो इसे हाथ में लेकर
मौज में घुमाते है
लहराते है
किसी गरीब को देखकर
फुंकारता है यह
काढता है फन
किसी प्रतिशोध भरे सर्प सा
लिपटता है यह फंदा
अक्सर किसी निरीह के
गले में कसता है
किसी विषधर के मानिंद
और चटका देता है
गले की हड्डियाँ
किसी जल्लाद की भांति …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 25, 2015 at 12:26pm — 14 Comments
गुरु दक्षिणा – (लघुकथा ) -
विश्व विद्यालय के प्राचार्य डॉ टीकम सिंह शिक्षा और साहित्य जगत की जानी मानी हस्ती थे!सुगंधा का सपना था कि वह डॉ सिंह को अपनी पी. एच. डी. का गाइड बनाये!डॉ सिंह एक सनकी और सिरफ़िरे किस्म के इंसान थे!वह अविवाहित थे!वह महिलाओं को अपने अधीन लेना पसंद नहीं करते थे!
लेकिन सुगंधा भी ज़िद्दी स्वभाव की थी!एक दिन पहुंच गयी डॉ सिंह के बंगले पर!
"सर मुझे आपके अधीन पी. एच ड़ी. करनी है"!
"मैं महिलाओं को अपना शिष्य नहीं…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 25, 2015 at 11:43am — 10 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
बलवाइयों के होंसले जाकर समेट लूँ
मासूम गर्दनों पे हैं खंजर समेट लूँ
आये न बददुआ कभी मेरी जुबान पे
गलती से आ गई तो भी अन्दर समेट लूँ
उम्मीद से बनाया हैं बच्चे ने रेत का
लहरों वहीँ रुको मैं जरा घर समेट लूँ
परवाज आज भर रहा पाखी नई नई
आँखों की चिलमनों में ये मंजर समेट लूँ
जिन्दा रहे यकीन मुहब्बत के नाम पर
फेंके हैं दोस्तों ने जो पत्थर समेट…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 25, 2015 at 10:30am — 18 Comments
Added by Rahila on October 24, 2015 at 9:49pm — 14 Comments
"चाचू, अपने पास तो ट्रैक्टर है फ़िर अपने खेत में ये बुधिया,उसकी घरवाली और छोकरी, बिना बैल के इस तरह हल क्यों चला रहे हैं"!
"मुन्ना बाबू,इनको बडे दादू ने सज़ा दी है"!
"सज़ा किस बात की"!
"इन लोगों ने हमारे ट्यूबवैल के पानी की नाली में हाथ मुंह धोया और पानी पिया, तो पानी अशुद्ध हो गया"!
"वह पानी तो खेत में जा रहा था ना"!
"ये नीच जाति के लोग हैं, यह सब मना है इनके लिये, ये हमारी कोई चीज़ को नहीं छू सकते"!
“पर चाचू ये दौनों औरतें तो पहले हमारे घर के सारे काम…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 24, 2015 at 5:30pm — 8 Comments
प्रेम दीवानी होती है.....
सबको अपनी उम्र निभानी होती है.
खुद अपनी पहचान बनानी होती है.
मत उलझो आडम्बर में यदि हो इंसा,
इंसा की खुद आत्म कहानी होती है.
धर्म कर्म आहार भुनाने में उसको,
सपनों की दीवार गिरानी होती है.
मत उगलो तुम जह्र आग तूफान यहां,
जीवन पानीदार सयानी होती है.
बाल न बांका तुम मेरा कर पाओगे,
सत्य-खुदा से आंख मिलानी होती है.
मत रोना संसार रुलाता है…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 24, 2015 at 3:00pm — 5 Comments
महकती ज़िन्दगी हो फिर शिकायत कौन करता है
बिना कारण ही मरने की हिमाकत कौन करता है
तुम्हारी आँखों में सूखे हुए कुछ फूल देखे थे
तड़पकर माज़ी से इतनी मुहब्बत कौन करता है
बड़े काबिल हो तुम लेकिन तुम्हारी जेब है खाली,
भला ऐसों से भी यारा मुहब्बत कौन करता है|
कड़कती धूप भी सहते कभी बरसात ठंडी भी,
खुदा ऐसों पे तेरे बिन इनायत कौन करता है|
न पूजेगा कोई तुमको खुदा गर सामने आया ,
बिना डर और लालच के इवादत कौन…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on October 24, 2015 at 1:30pm — 6 Comments
"जिठानी तो बस फसल कटने पे अपना हिस्सा माँगने लगती हैं, खुद शहर की हो गई, हमें बाप-दादाओं की खेती के काम तो चलाना ही है!"- खेत पर हल जोतते हुए माथे का पसीना पोंछ कर सावित्री ने देवरानी मंगला से कहा।
"मर्दों में वो कुव्वत रही नहीं, तो बेटों का मन कैसे लगे ऐसी खेती में !"- मंगला ने एक हाथ से पल्लू ठीक करते हुए अपने घर के मर्दों और ज़मीन के हालात पर कटाक्ष किया।
"लेकिन एक बात तो मानना पड़ेगी, गाँव छोड़के शहर में भले वो अभी झुग्गी झोपड़ी में रह रही है, लेकिन वो अपने बेटों की…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 24, 2015 at 9:00am — 6 Comments
मात्र इक भाषा नहीं है,
राष्ट्र की पहचान -हिन्दी।
सभ्यता की नींव है,
साहित्य की धनवान -हिन्दी।
सर्वव्यापक सरल सुन्दर,
सर्वगुण सम्पन्न है,
ज्ञान का विस्तीर्ण साधन,
सद्गुणों की खान -हिन्दी ।
व्यक्ति का व्यक्तित्व है,
प्रतिबिंब है अभिव्यक्ति का,
उपयोग,सूचक शक्ति का,
मान और सम्मान -हिन्दी।
गुरुमुखी श्रीग्रंथ साहिब ,
नित्य शाश्वत वेद है,
काव्य की निर्मल विधा,
"अज्ञात"…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on October 23, 2015 at 7:26pm — 2 Comments
2122 122 122 2122 122 122
किस तरह से दशहरा मनायें; राम जी रावणी मन हुआ है।
राम नामी वसन पर न जायें, राम जी रावणी मन हुआ है।।
वासना से भरा है कलश ये, हो गया कामनाओं के वश में।
भेष साधू का झूठा, भुलायें राम जी रावणी मन हुआ है।।
स्वर्ण का ये महल चाहता है, मन्त्र बस धन का ये बांचता है।
किस तरह से "स्वयं" को जगायें, राम जी रावणी मन हुआ है।।
स्वार्थ का आचरण हर घड़ी है, नेक नीयत दफ़न हो गयी है।
आज खुद को विभीषण बनायें, राम जी रावणी मन…
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 22, 2015 at 7:00pm — 6 Comments
मन में हो विश्वास अगर,दीप आस के जलते हैं,
कीचड़,मटमैले जल में भी,फूल कमल के खिलते हैं।
घोर घने अंधियारे में ही, तारे झिलमिल करते हैं।
पत्थर तो बस पत्थर है, पत्थर का कोई मोल नहीं,
दुख सहकर मूरत बनता है,होता है अनमोल वही,
धूप,दीप,नैवेद्य चढ़ा,लाखों सिर सजदे करते हैं।
मन में हो विश्वास अगर,दीप आस के जलते हैं।
अपना अस्तित्व बचाने को,खाक में दाना मिलता है,
सर्दी,बारिश की बूंदें,गर्मी की चुभन को सहता है,
हृदय…
ContinueAdded by Ajay Kumar Sharma on October 22, 2015 at 1:11pm — 3 Comments
"क्या बात है वर्मा जी i सत्तर की उम्र में भी आप युवाओं से ज्यादा चुस्त हैं " पार्क से निकलते हुए मैंने वर्मा जी से कहा I
"पूरे नियम से रहता हूँ Iघूमना ,योग , स्वस्थ भोजन, पंद्रह सालों से टस से मस नहीं हुआ है नियम I "गर्व से दमक रहा था उनका चेहरा I
"बिल्कुल, वो तो दिखता है I"
"सुबह निम्बू शहद पानी से लेकर रात को सोने से पहले हल्दी के दूध तक ,एक भी दिन चूक नहीं होती है I"
"किससे?"
"मिसेज़ से और किससे ,वो ही तो ध्यान रखती है रूटीन का Iऔर हाँ , घर में नौकर…
ContinueAdded by pratibha pande on October 22, 2015 at 9:19am — 13 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on October 21, 2015 at 10:46pm — 5 Comments
Added by Manan Kumar singh on October 21, 2015 at 10:00pm — 2 Comments
वे दिन भी भले थे
ये साँझ भी है भली
Added by kanta roy on October 21, 2015 at 10:00pm — 14 Comments
Added by मनोज अहसास on October 21, 2015 at 8:21pm — 10 Comments
Added by kalpna mishra bajpai on October 21, 2015 at 6:00pm — 12 Comments
दृग
शृंगार करते रहे
आंसुओं से
तृषित मन
आस की मरीचिका में
भटकता रहा
व्यथा
दूर तक फ़ैली नदी में
वायु वेग को सहती
बिन पाल की नाव सी
किसी किनारे की तलाश में
व्यथित रही
दृष्टि स्पर्श
प्रणय अस्तित्व को
नागपाश सा
स्वयंम में लपेटे रहा
अंतर्कथा के मौन पृष्ठों में
जीवन के इक मोड़ की त्रासदी
स्मृति सीप में
कराहती रही
कदम
धूप की तपन को
मन के अंतर्नाद में डूबे
एक क्षितिज की तलाश में…
Added by Sushil Sarna on October 21, 2015 at 5:43pm — 12 Comments
" ये क्या सुना मैने , तुम शादी तोड़ रही हो ? "
" सही सुना तुमने । मैने सोचा था कि ये शादी मुझे खुशी देगी । "
" हाँ ,देनी ही चाहिए थी ,तुमने घरवालों के मर्ज़ी के खिलाफ़ , अपने पसंद से जो की थी ! "
" उन दिनों हम एक दुसरे के लिए खास थे , लेकिन आज ....! "
" उन दिनों से ... ! , क्या मतलब है तुम्हारा , और आज क्या है ? "
" उनका सॉफ्स्टिकेटिड न होना , अर्थिनेस और सेंस ऑफ़ ह्यूमर भी बहुत खलता है। आज हम दोनों एक दुसरे के लिये बेहद आम है । "
" ऐसा क्यों ? "…
ContinueAdded by kanta roy on October 21, 2015 at 4:00pm — 9 Comments
2122---2122---2122---212 |
धूप की तकसीम में कुछ तो हुआ है देखना |
आज फिर सूरज सवालों में घिरा है देखना |
|
नीम के ये जर्द पत्ते आंसुओं-से झर गए |
इस फिज़ा की आँख में कंकड़… |
Added by मिथिलेश वामनकर on October 21, 2015 at 3:03pm — 9 Comments
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