Added by Mohammed Arif on October 17, 2017 at 10:59pm — 33 Comments
शापित यक्ष का इस प्रकार मान-मर्दन होने से उसकी महिमा घट गयी. अतः अपने निर्वासन का दंड भुगतने के लिए उसने अलकापुरी से दूर रामगिरि को अपना आश्रय स्थल बनाया. इस पर्वत पर भगवान राम ने अपने वनवास के कुछ दिन कभी काटे थे, इसीलिये वह पर्वत-प्रदेश रामगिरि कहलाता था . वहां जगजननी सीता के पवित्र स्नान कुंड थे . छायादार घने वृक्ष थे. यक्ष ने वहाँ के आश्रमों में बस्ती बनायी और प्रवास के दिन व्यतीत करने लगा. इस प्रकार प्रिया-संतप्त यक्ष ने किसी तरह आठ माह बिताये. ग्रीष्म ढल जाने पर आषाढ़ मास के पहले दिन…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 17, 2017 at 8:03pm — 9 Comments
Added by Afroz 'sahr' on October 17, 2017 at 7:30pm — 10 Comments
फइलात -फ़ाइलातुन -फइलात -फ़ाइलातुन
सरे राह उसने देखा जो मुझे पलट पलट के |
उसी दिन से रह गया हूँ मैं मुआशरे से कटके |
अभी रूठ कर उठे थे कि कड़क के बर्क़ चमकी
मेरी बाहों में वो सहमे हुए आ गये सिमट के |
बड़ी रात जा चुकी है कोई ख़ाक आएगा अब
शबे ग़म मेरी इधर आ तुझे रो लूँ मैं लिपट के |
जो ग़रीब हौसला है उसे होगा कुछ न हासिल
वही जाम पा सकेगा जो उठा ले ख़ुद झपट के |
जिन्हें गुमरही का डर था वही पा गये हैं…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on October 17, 2017 at 6:00pm — 20 Comments
मफऊल -फाइलातुन -मफऊल -फाइलातुन
मेरे हबीब इस में तेरी खता नहीं है |
इल्ज़ामे बे वफ़ाई किस पर लगा नहीं है |
ओ प्यार के मुसाफिर इस पर भी ग़ौर कर ले
यह राहे ग़म है इस में कोई मज़ा नहीं है |
माली तेरी कमी से गुलशन में है तबाही
तू अब भी कह रहा है तुझको पता नहीं है |
दीदार मैं अभी तक चहरे का कर रहा हूँ
ठहरो अभी न जाओ यह दिल भरा नहीं है |
ग़मदीदा दिलसे उल्फ़त तुझसे न निभ सकेगी
कर तर्के इश्क़ कुछ भी…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on October 17, 2017 at 4:30pm — 12 Comments
"सरकार, आज अगर एक बार देख लिया जाए तो हमका तसल्ली होइ जात", लच्छू की आवाज़ बहुत घबराई लग रही थी| उसने एक बार सर ऊपर उठाया और लच्छू को गौर से देखा, दोनों हाथ जोड़े हुए उसका चेहरा बेहद कातर लग रहा था|
"किसको देखना था लच्छू?, लच्छू कई बार किसी के लिए कह रहा था, इतना तो याद आया लेकिन किसके लिए कहा था, याद नहीं आया| कितनी बार तो टाल चुके हैं इसको, फिर भी!
"सरकार, पतोहू कई दिन से बीमार है और लड़का बाहर काम करत है, एक बार आप देख लेते तो ठीक हो जात", लच्छू की आवाज़ में अब थोड़ी उम्मीद जग…
Added by विनय कुमार on October 17, 2017 at 3:48pm — 7 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on October 17, 2017 at 1:07pm — 8 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 17, 2017 at 12:43pm — 8 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 17, 2017 at 7:34am — 12 Comments
Added by santosh khirwadkar on October 16, 2017 at 10:52pm — 5 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 16, 2017 at 10:30pm — 11 Comments
क्यों न दिवाली कुछ ऐसे मनायें
दिवाली यानी रोशनी, मिठाईयाँ, खरीददारी , खुशियाँ और वो सबकुछ जो एक बच्चे से लेकर बड़ों तक के चेहरे पर मुस्कान लेकर आती है।
प्यार और त्याग की मिट्टी से गूंथे अपने अपने घरौंदों को सजाना भाँति भाँति के पकवान बनाना नए कपड़े और पटाखों की खरीददारी !
दीपकों की रोशनी और पटाखों का शोर…
Added by dr neelam mahendra on October 16, 2017 at 10:14pm — 4 Comments
221 2121 1221 212
..
दिल का ये मसअला है कोई दिल लगी नहीं,
मुमकिन तेरे बग़ैर मेरी ज़िन्दगी नही
..
ये और बात है कि वो मिलते नहीं मगर,
किसने कहा कि उनसे मेरी दोस्ती नहीं
..
तेरे ही दम से खुशियां है घर बार में मेरे,
होता जो तू नहीं तो ये होती ख़ुशी नहीं
..
वो क्या गया की रौनके महफ़िल चली गयी,
जल तो रही है शम्अ मगर रोशनी नहीं
..
ख़ून-ए-जिगर से मैंने सवाँरी है हर ग़ज़ल,
मेरे, सुख़न का रंग…
ContinueAdded by SALIM RAZA REWA on October 16, 2017 at 10:00pm — 14 Comments
“जय हिन्द सर।” उसने जोश भरे स्वर में कहा। मोबाइल फोन पर बात करते हुए वह तन कर भी खड़ा था।
“जय हिन्द।” दूसरी तरफ से आवाज़ आई।
“हुजूर, बात यह है कि... मॉडर्न स्कूल के प्रिंसिपल साब ने बुलाया था। दिवाली पर वे आपको लैपटॉप और ए.सी. उपहार में देना चाहते हैं।”
“क्यूँ?” दूसरी तरफ से प्रश्न पूछा गया लेकिन संयत स्वर में।
“हुजूर, उनके स्कूल में फीस दूसरे स्कूलों से थोड़ी-बहुत ज़्यादा है, ऐसी ही कुछ और छोटी-मोटी कमियाँ थीं तो... जिला शिक्षा अधिकारी साहब ने उनको पाबन्द कर दिया।…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 16, 2017 at 4:30pm — 5 Comments
Added by munish tanha on October 16, 2017 at 9:30am — 4 Comments
Added by Manan Kumar singh on October 16, 2017 at 9:07am — 10 Comments
२१२२, १२१२, २२ (११२) +१
.
किसी साधू के गहरे ध्यान से हम
बैठे रहते है इत्मिनान से हम.
.
तुम हो इक टूटती हुई दीवार
एक ढहते हुए मकान से हम.
.
गर ख़ुदा को वहाँ नहीं पाया,
लौट आयेंगे आसमान से हम.
.
बात जो कुछ है साफ़ साफ़ कहें
ऊँचा सुनने लगे हैं कान से हम.
.
बुतकदे में जलाने को दीपक
जाग जाते हैं इक अज़ान से हम.
.
एक एल्बम में तुम हसीं थी बहुत
साथ में थे बड़े जवान से हम.
.
वस्ल का पल, ये…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 16, 2017 at 8:18am — 21 Comments
Added by दिनेश कुमार on October 15, 2017 at 11:56pm — 14 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on October 14, 2017 at 11:01pm — 7 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on October 14, 2017 at 10:30pm — 17 Comments
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