For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,988)

मसाला तो है ही नहीं! (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी

स्मार्ट फोन के पटल (स्क्रीन) पर सोशल साइट की एक तस्वीर को देखकर रोहित ने अपने मित्र विशाल से कहा- "यह चित्र किसी फ़िल्म का हो, या सच्ची घटना का, तुम तो यह बताओ कि बीच सड़क पर बिखरे हुए काग़ज़ों व दस्तावेज़ों के बीच अकेला ये कौन बैठा हुआ है? अभागा या अभागिन? शोषित या शोषिता?"



"इसकी वेशभूषा, बैठने के अंदाज़ और घुटनों पर कसी हुई मांसपेशियों वाली भुजाओं की मुद्रा देखकर तो यह कोई दृढ़ संकल्पित, आंदोलित, कुछ परेशान सा युवक लग रहा है!"- विशाल ने उत्तर दिया।



"युवक नहीं, युवती है यार!… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 9, 2016 at 5:31am — 2 Comments

रात रो देते हैं बच्चे और जी जाता है वो (ग़ज़ल)

बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२

 

धूप से लड़ते हुए यदि मर कभी जाता है वो

रात रो देते हैं बच्चे और जी जाता है वो

 

आपको जो नर्क लगता, स्वर्ग के मालिक, सुनें

बस वहीं पाने को थोड़ी सी खुशी जाता है वो

 

जिन की रग रग में बहे उसके पसीने का नमक

आज कल देने उन्हीं को खून भी जाता है वो

 

वो मरे दिनभर दिहाड़ी के लिए, तू ऐश कर

पास रख अपना ख़ुदा ऐ मौलवी, जाता है वो

 

खौलते कीड़ों की चीखें कर रहीं पागल उसे

बालने…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 9, 2016 at 12:07am — No Comments

दोहे (एक प्रयास ) /अलका चंगा

दोहे (एक प्रयास )

-.-

नैनन में ममता लिए,होंठों पर मुस्कान।

भिड़ जाए सन्सार से , जातक पे कुर्बान।।

-.-

अञ्चल में माँ सींचती,अमृत का भण्डार।

ऋषि हो चाहे देवता ,सीस झुकाते द्वार।।

-.-

संघर्षों से डरू नहीं ,माँ तुम हो जो पास ।

अंधेरे जब बढ़ गए,पाई तुमसे आस ।।

-.-

माता तुम जो बोलती, वहि मेरा है कर्म।

पाया भाव यहि तुमसे , जीवित रखना धर्म।।

-.-

कान्हा हो सुत रूप में ,चाहे हो बलराम।

मात यसोदा रूप है, नित्ये करो प्रणाम…

Continue

Added by अलका 'कृष्णांशी' on September 8, 2016 at 3:30pm — 7 Comments

ये छुआ छूत घाव है भाई

बहर:-2122-1212-22

ये छुआ छूत घाव है भाई।।
आदमी का स्वभाव है भाई।।

उनसे रिश्ता जुड़ा जुदा तो है ।
अपना अपना झुकाव है भाई।।

लोग दर्दो गमो के मारे हैं ।
बस सजगता बचाव है भाई।।

ये बहर ही गजल का नक्शा है।
इसपे लिखना ही चाव है भाई।।

आज आमोद तुम भी रुस्वा हो।
अब ये कैसा पड़ाव है भाई।।..आमोद बिन्दौरी

Added by amod shrivastav (bindouri) on September 7, 2016 at 11:09pm — 5 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल -तेरी ईंटें, न पत्थर हो के लौटें ( गिरिराज भंडारी )

तेरी ईंटें, न पत्थर हो के लौटें

1222   1222   122  

*****************************

ये रिश्ते भी न बदतर होके लौटें

तेरी ईंटें, न पत्थर हो के लौटें

 

ये चट्टानें , न ऐसा हो कि इक दिन

मैं टकराऊँ तो कंकर हो के लौटें

 

इसी उम्मीद में कूदा भँवर में

मेरे ये डर शनावर हो के लौंटें  

 

बनायें ख़िड़कियाँ दीवार में जब

दुआ करना, कि वो दर हों के लौटें

 

दिवारो दर, ज़रा सी छत औ ख़िड़की

मै छोड़ आया कि वो घर…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on September 7, 2016 at 9:15am — 29 Comments

ग़ज़ल

बहर : २ १ २ २  २ १ २ २   २ १  २  

 

आई जब तू जिन्दगी हँसने लगी

तू मेरे हर  सपने में रहने लगी |

धीरे धीरे तेरी चाहत बढ़ गई

देखा तू भी  प्रेम में झुकने लगी |

जिन्दगी का रंग परिवर्तन हुआ

प्रेम धारा जान में बहने लगी |

राह चलते हम गए मंजिल दिखा

फिर भी जीना जिन्दगी गिनने लगी |

देखिये शादी के इस बाज़ार में

हाट में दुल्हन यहाँ  बिकने लगी |

शमअ बिन तो तम…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on September 7, 2016 at 7:30am — 8 Comments

ग़ज़ल

नग़मे अजीब रोज सुनाते रहे हैं हम
बस दूसरों के ऐब गिनाते रहे हैं हम

खुद को कभी करीब से जाना नहीं मगर
कहने को इस जहाँ से निभाते रहे हैं हम

जाते हुए जरा सा पलट कर तो देखते
कितनी सदाएं देके बुलाते रहे हैं हम

उनकी वफ़ा की लोग मिसालें सुनायेंगे
रुसवाइयों के दाग़ छिपाते रहे हैं हम

अश्कों में सिसकियों में कराहों में दब गए
कुछ शेर जो वफ़ा के सुनाते रहे हैं हम

- पुष्पेन्द्र 'पुष्प'
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Pushpendra pushp on September 7, 2016 at 6:13am — 3 Comments

जानाँ

बिना तेरे हर एक लम्हा मुझे दुशवार है जानाँ 

अगर ये प्यार है जानाँ, तो मुझको प्यार है जानाँ

हसीं चेहरे बहुत देखे फ़िदा होना भी मुमकिन था 

फ़िदा हो कर फ़ना होना ये पहली बार है जानाँ

हमें कहना नहीं आया ,और समझा भी नहीं तुमने 

मेरा हर लफ़्ज़ तुमसे प्यार का इज़हार है …

Continue

Added by saalim sheikh on September 7, 2016 at 5:30am — 3 Comments

ये हवा मस्ती भरी...

ये हवा मस्ती भरी इस पार तक आती तो है।।

तन को मेरे छु के मुझसे प्यार फ़रमाती तो है।।



गाँव की सुन्दर सी गालियाँ और उनकी याद सब।

संग मेरे खेतों की मिट्टी ये हवा लाती तो है।।



जिनकी नजरों में सिवा नफरत के न कुछ और था।

ये हवा झकझोर कर के जात बतलाती तो है।।



क्यों बुराई कर रहा है बाप माँ ही शान हैं।

नाव कितनी भी हो जर्जर पार ले जाती तो है।।



क्यों नही है काम की लिक्खी गई ये पुस्तकें।

धूल इनपर है चढ़ी दीमक इन्हें खाती तो… Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on September 7, 2016 at 1:49am — 5 Comments

दर्द अपना कह रही बस प्रीत गजलों की मेरे।

2122-2122-2122-212



मत करो तारीफ फ़र्जी गीत गजलों की मेरी।।

दर्द अपना कह रही बस प्रीत गजलों की मेरी।।



कशमकश है आप की मेरे दिले दरबार में।

लिख रहा हूँ आज जो भी जीत गजलों की मेरी ।।



राह में निकला मुसाफिर मुफलिसी हूँ ख्वाब हूँ।

चल रही गुपचुप सी बाता चीत गजलों की मेरी।।



मानता हूँ दर्द से लिपटी रही है उम्र भर।

दौरे पर्दा उठ गया है मीत गजलों की मेरी।।



वाह वाही लूटते दिख जायेगे बेशक हमीं।

बज्म बेशक जानती है रीत गजलों की… Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on September 7, 2016 at 1:30am — 7 Comments

बराबरी--

"मैं संजू से शादी कर रही हूँ और हम लोग चेन्नई शिफ्ट कर रहे हैं", घर में घुसते ही उसने माँ से कह दिया| बैग को टेबल पर रखकर उसने फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और पीने लगी, माँ उसे देखे जा रही थी|

"लेकिन चेन्नई शिफ्ट करने की क्या जरुरत है, मुझे तो कोई ऐतराज नहीं है तुम लोगों की शादी से", माँ ने पूछा|

"दर असल उसको एक बढ़िया जॉब मिल गयी है चेन्नई में और मैंने भी अपने ट्रांसफर की अर्जी लगा दी है", उसने सोफे पर बैठते हुए कहा|

"तो अब तुम उसके हिसाब से चलोगी, ख़त्म हो गयी सब बराबरी की…

Continue

Added by विनय कुमार on September 6, 2016 at 7:33pm — 12 Comments

कुछ दोहे

कुछ दोहे

----------



१.

केवल धन की चाह में,भूला खान व पान

आपा-धापी में सदा, पड़ा रहे इंसान।

२.

बुद्धिमान भी मूढ़ है,क्रोध चले जब जीत

पलभर में ही खत्म हो,वर्षों की सब प्रीत।

३.

सबको दें उपदेश जो,हो खुद उससे दूर

कोरी उस बकवास को,क्यों सब मानें नूर।

४.

पढ़े शास्त्र को बैठ कर,नीयत हो नापाक

बस झूठे ही ज्ञान से,फिरे जमाता धाक।

५.

ढाई आखर प्रेम के,रखते शक्ति अपार

वहाँ चली तलवार कब,जहाँ चला है प्यार।

६.

कलम… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 6, 2016 at 4:00pm — 14 Comments

व्यवस्था/ लघुकथा

"सारी व्यवस्था आपको ही करना है। लोगों को बुलाना और कार्यक्रम का उद्देश्य को सफलता से प्रस्तुत करना है।"

"जी, लेकिन मैं अकेले कैसे कर पाऊँगी?"

" अकेले कहाँ हैं आप! मैं पीछे से समस्त इंतजाम कर दूँगा , पैसों की चिंता बिलकुल मत करना । बैनर आपका पैसा हमारा, अब सिर्फ हमारे लिये काम करेंगी आप ।"

वह चुप हो इत्मीनान से सुनती रही।जिंदगी अपना नया दाँव चल रही थी।

" अरे मैडम , हम आपको भी पेमेंट करेंगे।"

" मुझे " पे " करेंगे यानि मेरी कीमत देंगे ?"

"जी हाँ, आप अपना समय दे रही…

Continue

Added by kanta roy on September 6, 2016 at 2:30pm — 3 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
'फटफटिया' लघु कथा (राज )

घुर्र्र घुर्र.. फट. फट..फट..फट  ... “या अल्लाह आग लगे इसकी फटफटिया को  मरदूद कहीं का जब देखो हमें फूँकने के लिए घर के सामने ही फट फट करता रहता है इसे दूसरे के सिर दर्द की  क्या परवाह ” |

“बस करो.. बस करो.. बेगम, क्यूँ बिला बजह कोसती रहती हो, आग लगे.. आग लगे.. हरदम यही बददुआ देती रहती हो खुदा  से डरो मोटरसाइकिल है तो आवाज तो करेगी ही”|

“बस बस!!  तुम तो चुप ही रहो तुम्हें कुछ समझ नही आता| अब्बाजान को भी कितनी तकलीफ होती है ये तेज आवाज सुनकर मालूम है ” |

“किसी को…

Continue

Added by rajesh kumari on September 6, 2016 at 11:31am — 29 Comments

एक देश (अतुकांत कविता)/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

अपनों से ही जुदा

अपनों से ही लुटता

बहुचर्चित एक देश।



एक देश का ग़ुलाम

हथियार पाकर है बदनाम

ख़ुद बेलगाम एक देश।



ख़ुद को ख़ुद से भुलाता

मज़हब की आड़ लेता

कट्टरों का ग़ुलाम एक देश।



आतंक की ले पहचान

आतंक की खुली दुकान

पलता, पालता एक देश।



एक देश का है टुकड़ा

'आधा' खाकर, 'आधे' पर अकड़ा

छोटे से छोटा होता एक देश।



**



[2]



अपनों से ही संवरता

अपनों को ही उलझाता

बहुचर्चित… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 5, 2016 at 11:45pm — 10 Comments

ग़ज़ल : गालों पर है रंग गुलाबी तौबा तौबा

2221 21122 2222



गालों पर है रंग गुलाबी तौबा तौबा ।

मतवाली की चाल शराबी तौबा तौबा ।।



कातिल शम्मा रात जला कर लूटे हस्ती।

नयी अदा में बात नबाबी तौबा तौबा ।।



अंदाजों से हुस्न बयां वो आधा है अब ।

हुई हया से आँख हिजाबी तौबा तौबा ।।



खंजर दिल पे मार गई है हक से यारों ।

पढ़ती है वो रोज तराबी तौबा तौबा ।।



खैरातों में इश्क बटा कब उस के दर पे ।

निकली वह भी खूब हिसाबी तौबा तौबा ।।



अंगड़ाई न ले तू खुले दरीचों से अब…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on September 5, 2016 at 9:30pm — 8 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
ग़ज़ल - फ़िक्रमन्दों से सुना, ये उल्लुओं का दौर है // --सौरभ

2122  2122  2122  212

 

एक दीये का अकेले रात भर का जागना..

सोचिये तो धर्म क्या है ?.. बाख़बर का जागना !



सत्य है, दायित्व पालन और मज़बूरी के बीच

फ़र्क़ करता है सदा, अंतिम प्रहर का जागना !



फ़िक्रमन्दों से सुना, ये उल्लुओं का दौर है

क्यों न फिर हम देख ही लें ’रात्रिचर’ का जागना ।



राष्ट्र की अवधारणा को शक्ति देता कौन है ?

सरहदों पर क्लिष्ट पल में इक निडर का जागना !



क्या कहें, बाज़ार तय करने लगा है ग़िफ़्ट भी 

दिख रहा…

Continue

Added by Saurabh Pandey on September 5, 2016 at 1:30pm — 22 Comments

ग़ज़ल-तुम्हारा प्यार चंदन-रामबली गुप्ता

वह्र=1222 1222 122



तुम्हारा प्यार चंदन हो गया है।

सुवासित आज तन-मन हो गया है।।



जो' सूना बाग दिल का था सदा से।

तेरे आने से' मधुबन हो गया है।।



ये' मन-मन्दिर तू' मूरत ईश जैसी।

ये' मेरा प्यार पूजन हो गया है।।



जलाया प्यार का जो दीप तुमने।

अँधेरा दिल ये' रौशन हो गया है।।



न टूटेगा जो' मर कर भी जहां में।

मेरा तुझसे वो' बन्धन हो गया है।।



धनुष-भौहें ये' चंचल नैन तेरे।

छुरी ये हाय! अंजन हो गया… Continue

Added by रामबली गुप्ता on September 5, 2016 at 8:00am — 4 Comments

गजल(बंदिशों को तोड़कर....)

2122 2122 2122 212

बंदिशों को तोड़कर हलचल करूँगाआज भी

बात मन की बेझिझक मैं तो कहूँगा आज भी।1



फिर गयीं नजरें बहुत ही क्या हुआ कुछ गम नहीं,

आँख में बनकर सपन मैं तो रहूँगा आज भी।2



ले गये कितने बवंडर तोड़ कर कलियाँ मगर,

डाल पर इक फूल बन मैं तो सजूँगा आज भी।3



टूटती अबतक रही हैं गीत की लड़ियाँ मगर,

राग बन हमराज का मैं तो बजूँगा आज भी।4



लुट गये कितने सपन बेढ़ब फिजाओं के तले,

इक घरौंदा रेत पर फिर से रचूँगा आज भी।5



होंठ… Continue

Added by Manan Kumar singh on September 5, 2016 at 5:00am — 8 Comments

विरासत - (लघुकथा)-

विरासत - (लघुकथा)-

सुजाता मैडम पिछले तीन दिन से कक्षा सात के छात्रों को विरासत के मायने समझा रहीं थीl  जो छात्र तेज और मेधावी थे, वे तो पहले रोज ही समझ गये लेकिन अधिकांश छात्र अभी भी इसका वास्तविक मतलब नहीं जान पाये थेl मैडम ने इसे सरल तरीके से समझाने के लिये छात्रों को एक  गृह कार्य दिया कि सभी छात्र अपने परिवार के बुजुर्गों से पूछ कर पिछली तीन पीढ़ियों द्वारा छोड़ी गयी चल और अचल संपत्तियों का व्यौरा लिख कर लायेंl

आज मैडम उस शीर्षक को अंतिम रूप देकर समाप्त कर देना चाह रही थींl…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on September 4, 2016 at 9:01pm — 22 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Dayaram Methani commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, गुरु की महिमा पर बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने। समर सर…"
2 hours ago
Dayaram Methani commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"आदरणीय निलेश जी, आपकी पूरी ग़ज़ल तो मैं समझ नहीं सका पर मुखड़ा अर्थात मतला समझ में भी आया और…"
2 hours ago
Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Oct 1
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।"
Sep 30
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी। आपकी सार गर्भित टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साहित करती…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"नमस्कार। अधूरे ख़्वाब को एक अहम कोण से लेते हुए समय-चक्र की विडम्बना पिरोती 'टॉफी से सिगरेट तक…"
Sep 29
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"काल चक्र - लघुकथा -  "आइये रमेश बाबू, आज कैसे हमारी दुकान का रास्ता भूल गये? बचपन में तो…"
Sep 29
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है?…"
Sep 29
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"स्वागतम"
Sep 29
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"//5वें शेर — हुक्म भी था और इल्तिजा भी थी — इसमें 2122 के बजाय आपने 21222 कर दिया है या…"
Sep 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल है आपकी। इस हेतु बधाई स्वीकार करे। एक शंका है मेरी —…"
Sep 28

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service