“हैलो! क्या चल रहा है ?”
“सर! अभी प्रमुख नेताओं का भाषण बाकी है, लगता है लम्बा चलेगा । भीड़ भी काफी है।“
"ओके!"
“हैलो! , सर ! मंच के ठीक सामने कुछ दूरी पर एक पेड़ है, उस पर एक आदमी फांसी लगाने की कोशिश कर रहा है।“
“अरे! “सोच क्या रहे हो ? , कैमरा घुमाओ उसकी तरफ !, फोकस करो! , हिलना भी मत जबतक................!”
मौलिक व अप्रकाशित
Added by MAHIMA SHREE on May 1, 2015 at 7:02pm — 20 Comments
एक सर्प ने समझ मूषिका
ज्यों पकड़ा एक छछुंदर को
उसी समय एक मोर झपट
कर दिया चोंच उस विषधर को |
फिर मोर भी हुआ धराशायी
घायल जो किया व्याध-शर ने
पर व्याध निकट जैसे पहुँचा
डस लिया व्याध को फणधर ने |
शेष रही बस छद्म-सुन्दरी
सृष्टि-रूप धर जीवन-थल पर
और सभी अंधे हो-होकर
नियति-भक्ष बन गए परस्पर |
(मौलिक व अप्रकाशित)
-- संतलाल करुण
Added by Santlal Karun on May 1, 2015 at 6:00pm — 10 Comments
किसने कहा प्रेम अंधा होता है
****************************
किसने कहा प्रेम अंधा होता है
रहा होगा उसी का , जिसने कहा
मेरा तो नहीं है
देखता है सब कुछ
वो महसूस भी कर सकता है
जो दिखाई नहीं देता उसे भी
वो जानता है अपने प्रिय की अच्छाइयाँ और
बुराइयाँ भी
वो ये भी जानता है कि ,
उसका प्रेम, पूर्ण है ,
बह रहा है वो तेज़ पहाड़ी नदी के जैसे , अबाध
साथ मे बह रहे हैं ,
डूब उतर रहे हैं साथ साथ
व्यर्थ की…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 1, 2015 at 12:20pm — 8 Comments
किसने कहा प्रेम अंधा होता है
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किसने कहा प्रेम अंधा होता है
रहा होगा उसी का , जिसने कहा
मेरा तो नहीं है
देखता है सब कुछ
वो महसूस भी कर सकता है
जो दिखाई नहीं देता उसे भी
वो जानता है अपने प्रिय की अच्छाइयाँ और
बुराइयाँ भी
वो ये भी जानता है कि ,
उसका प्रेम, पूर्ण है ,
बह रहा है वो तेज़ पहाड़ी नदी के जैसे , अबाध
साथ मे बह रहे हैं ,
डूब उतर रहे हैं साथ साथ
व्यर्थ की…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 1, 2015 at 12:20pm — 19 Comments
वो ज़माना ही कुछ और था
हौसलों और उम्मीदों का दौर था !
आसमां के सितारे भी पास नज़र आते थे!
हर हद से गुज़र जाने का दौर था!!
माना कि मुफलिसी भरी थी वो ज़िन्दगी!
उस ज़िन्दगी में जीने का, मज़ा ही कुछ और था!!
नींद आती नही महलों के नर्म गद्दों पर!
झोपडी के चीथड़ों पर सोने का, मज़ा ही कुछ और था!!
न जाने क्यों हर वो शख़्स ख़फ़ा ख़फ़ा सा नज़र आता है!
मुस्कुराकर कर जिनसे गले लग जाने का,मज़ा ही कुछ और था!!
अब तो दिल की बातें दिल…
Added by Mala Jha on May 1, 2015 at 11:56am — 14 Comments
11212 11212 11212 11212
******************************************
नई ताब दे नई सोच दे जो पुरानी है वो निकाल दे
रहे रौशनी बड़ी देर तक वो दिया तू अब यहाँ बाल दे
***
है तमस भरी कि हवस भरी नहीं कट रही ये जो रात है
तू ही चाँद है तू ही सूर्य भी मेरी रात अब तो उजाल दे
***
जो नहीं रहे वो तो फूल थे ये जो बच रहे वो तो खार हैं
मेरे पाँव भी हुए नग्न हैं मेरी राह अब तू बुहार दे
***
न तो पीर दे न चुभन ही दे मेरे पाँव में ये…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2015 at 10:46am — 10 Comments
सडक एक नदी है।
बस स्टैण्ड एक घाट।
इस नदी मे आदमी बहते हैं। सुबह से शाम तक। शाम से सुबह तक। रात के वक्त यह धीरे धीरे बहती है। और देर रात गये लगभग रुकी रुकी बहती है। पर सुबह से यह अपनी रवानी पे रहती है। चिलकती धूप और भरी बरसात मे भी बहती रहती है । भले यह धीरे धीरे बहे। पर बहती अनवरत रहती है।
सडक एक नदी है इस नदी मे इन्सान बहते हैं। सुबह से शाम बहते हैं। जैसा कि अभी बह रहे हैं।
बहुत से लोग अपने घरों से इस नदी मे कूद जाते हैं। और बहते हुये पार उतर जाते हैं। कुछ लोग…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on May 1, 2015 at 10:27am — 8 Comments
1222 1222 1222 1222
अगर दिल साफ है, आ सामने, कह मुद्दआ क्या है
खुला दर है तो फिर तू खिड़कियों से झाँकता क्या है
यहाँ तू थाम के बैठा है क्यूँ अजदाद के क़िस्से
बढ़ आगे छीन ले हक़ , गिड़गिड़ा के मांगता क्या है
अगर भीगे बदन के शेर पे इर्शाद कहते हो
तो फिर बारिश में मै भी भीग जाऊँ तो बुरा क्या है
जो पुरसिश को छिपाये हाथ आयें हैं उन्हें कह दो
मुझे निश्तर न समझाये , कहे ना उस्तरा क्या है
दुआयें जब…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 1, 2015 at 10:00am — 22 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on May 1, 2015 at 9:42am — 14 Comments
सत्यांजलि
धन्य धन्य हे मात तू, धन्य हुआ यह पूत।
असहायों की मदद कर, यश-धन मिला अकूत।।1
क्षितिज द्वार पर नित्य ही, कुमकुम करे विचार।
स्वर्ण किरण के जाल में, क्यों फॅसता संसार।।2
उपकारी बन कर फलें, ज्यों दिनकर का तेज।
दिन भर तप कर दे रहा, रात्रि सुखद की सेज।।3
धर्म कार्य जन हित रहे, चींटी तक रख ध्यान।
मात्र द्वेष निज दम्भ रख, ज्ञानी भी शैतान।।4
जनहित मन्तर धर्म का, स्वार्थी पगे अधर्म।
सच्चा सेवक त्यागमय,…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 30, 2015 at 9:30pm — 8 Comments
मदर्स दे आने वाला है बस एक दिन के लिए
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माँ क्यों चुप हो कुछ बोलो तो ?
अपने मन की पीड़ा को
मेरे आगे खोलो तो
माँ तुम क्यों चुप हो ?
कर्तव्य निष्ठ की बेदी बन
तुमने अपने को…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on April 30, 2015 at 8:30pm — 7 Comments
२१२२ २१२२ २१२२
दर्द दिल में ऑसू टपके हैं धरा पे
कुछ लिखूंगा तो लिखूंगा में जफा पे
तुम न होते ज़िन्दगी में गर मेरी तो
मैं कभी कुछ कह नहीं पाता बफा पे
रख के सर जानो पे मरने की तमन्ना
और मत जिंदा मुझे रख तू दवा पे
लोग जिससे खौफ अब भी खा रहे
मुझको आता है तरस अब उस क़ज़ा पे
गोपियों सा प्रेम दिल में जब भी होगा
कृष्ण भागे आयेंगे तेरी सदा पे
पापियों के पाप से धरती हिली जब
थी कहानी दर्द की वादे सवा पे…
Added by Dr Ashutosh Mishra on April 30, 2015 at 5:30pm — 22 Comments
सैलाब
मानव-प्रसंगों के गहरे कठिन फ़लसफ़े
अब न कोई सवाल
न जवाब
कहीं कुछ नहीं
"कुछ नहीं" की अजीब
यह मौन मनोदशा
अपार सर दर्द
ठोस, पत्थर के टुकड़े-सा
हृदय-सम्बन्ध सतही न होंगे, सत्य ही होंगे
वरना वीरान अन्तस्तल-गुहा में
दिन-प्रतिदिन पल-पल पल छिन
गहन-गम्भीर घावों से न रिसते रहते
दलदली ज़िन्दगी के अकुलाते
अर्थ अनर्थ
कुछ हुआ कि झपकते ही पलक
विश्व-दृश्य…
ContinueAdded by vijay nikore on April 30, 2015 at 11:10am — 14 Comments
“माँ! तुम कह रही थी न, शादी कर ले ! सोचता हूँ, कर ही लूँ।“
“कोई पसंद है क्या ? बता दे ?”
“हाँ पसंद तो है । मेरे साथ काम करती है। तुम्हें और पिता जी को ऐतराज तो नहीं होगा ?“
“हमें क्यों ऐतराज होगा भला ! तेरी खुशी में ही हमारी खुशी है। पर हाँ! लड़की मांगलिक नही होनी चाहिए!, अपने से छोटी जाति की भी नहीं , और स्वागत में कोई कमी भी न हो !“
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by MAHIMA SHREE on April 29, 2015 at 6:30pm — 20 Comments
बचपन में
हजार बुरी बलाओं पर
पर भारी था
मेरी माँ का टोटका
माँ के हाथों से
माथे पर छोटा सा
काला टीका लगते ही
भयमुक्त हो जाता था
एक असीम ताकत
दे जाता था मन को
वो ममता में लिपटा
माँ का टोटका
अब तो मैंने कैसे कैसे
कृत्यों से कर लिया है
पूरा मुँह काला
मगर फिर भी
भय से व्याप्त मन
हमेशा व्याकुल रहता है
मौलिक व अप्रकाशित
उमेश कटारा
Added by umesh katara on April 29, 2015 at 6:28pm — 16 Comments
रे पथिक, रुक जा! ठहर जा! आज कर कुछ आकलन
बाँच गठरी कर्म की औ’ झाँक अपना संचयन
हैं यहाँ साथी बहुत जो संग में तेरे चले
स्वप्न बन सुन्दर सलोने कोर में दृग की पले,
प्रीतिमय उल्लास ले सम्बन्ध संजोता रहा
या कपट,छल,तंज से निर्मल हृदय तूने छले ?
ऊर्ध्वरेता बन चला क्या मुस्कुराहट बाँटता ?
छोड़ आया ग्रंथियों में या सिसकता सा रुदन ?.......रे पथिक..
कर्मपथ होता कठिन, तप साधता क्या तू रहा ?
या नियतिवश संग…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on April 29, 2015 at 5:00pm — 22 Comments
उसकी सासें गातीं हैं सरगम
अौर रात रक़्स करती है/
मैं चाँद की डफली बजाता हूँ,
मगर ये गीत जाने कौन गाता है!
हमने चाँद को चिकुटी काटी /
शरारत सूझी/
उसे प्यार आया, फिर सहलाया /
और,
दे गया चाँदनी रात भर के लिये.
उसे चाँद दे दिया
और ख़ुद चाँदनी ले ली.
ठग लिया यूँ आसमाँ को आज हमने.
सुना है,
आसमां सितारों से शिकायत करता है.
रात की मिट्टी में,
तेरी यादों की एक डाली रोपी
जज्बात से सींचा उसे,
फिर,…
Added by shree suneel on April 29, 2015 at 4:00pm — 16 Comments
| २२१२ २२१२ २२१२ २२१२ - रजज मुसम्मन सालिम |
| कोई दबा घर में कहीं आशा लगाये और का | |
| इस जिंदगी का क्या भरोसा ये मुद्दा है गौर का | |
| बारिश कहीं आँधी कहीं आकर गिराये घर नगर … |
Added by Shyam Narain Verma on April 29, 2015 at 3:01pm — 11 Comments
पापा तुम बहुत याद आते हो ..
समय की बेलगाम रफ़्तार ने
पापा आपकी छत्रछाया से
साँसों के प्रवाह से
आपको मुक्त कर दिया
दुनिया कहती हैं कि ईश्वर है कहाँ ?
शायद दुनिया पागल हैं
पर पापा आप ही तो ईश्वर का रूप हो
मुझसे पूछे ये दुनिया, जब पिता नहीं होते
तो ईश्वर के नाम से जाने जाते है
आपके जाने के बाद
तमाम कोशिशों के बावजूद
सामने की दीवार पे
आपकी तस्वीर नहीं लगा…
Added by sunita dohare on April 29, 2015 at 1:30pm — 14 Comments
में अपने छोटे बेटे के साथ शहर में रहता हुI और मेरी घरवाली गाव में बड़े बेटे के साथ रहती हैI समय के अनुसार जायदाद के साथ साथ हमारा भी बंटवारा हो गयाI आज उसकी बहुत याद आ रही थीI फ़ोन में रिचार्ज खत्म होने की वजह से कई दिनों से उस से बात नहीं हो पाईI पिछले तीन दिनों से बेटे को बोल रहा थाI पर बेटे को ऑफिस में टाइम नहीं मिलने की वजह से रिचार्ज नहीं करवा पायाI आज भी में बेटे को ऑफिस जाते समय रिचार्ज याद दिला रहा थाI तभी बहु की पीछे से आवाज आई, बावजी - आप को कितनी बार बोला…
ContinueAdded by harikishan ojha on April 29, 2015 at 12:40pm — 19 Comments
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