Added by Samar kabeer on April 29, 2015 at 10:43am — 29 Comments
22/22/22/22 (सभी संभावित कॉम्बिनेशन्स)
ज़ुल्फों को जंजीर लिखेगा,
तो कैसे तकदीर लिखेगा.
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जंग पे जाता हुआ सिपाही,
हुस्न नहीं शमशीर लिखेगा.
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राज सभा में मर्द थे कितने,
पांचाली का चीर लिखेगा.
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ईमां आज बिका है उसका,
अब वो छाछ को खीर लिखेगा.
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कोई राँझा अपनें खूँ से,
जब भी लिखेगा, हीर लिखेगा.
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शेर कहे हैं जिसने कुल दो,
वो भी खुद को मीर लिखेगा.
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नहीं जलेगा वो ख़त तुझसे,
जो आँखों का…
Added by Nilesh Shevgaonkar on April 29, 2015 at 9:04am — 24 Comments
जिंदगी में कोई
क्यूँ नहीं मिलता
एक नया तूफ़ान
क्यूँ नहीं खिलता
मैं भी देख लूँ जी के
ऊँचे टीलों पे
क्या होते हैं एहसास
इन कबीलों के !
मैं भी उड़ लूँ
तूफ़ानी फिज़ाओं में
जानता हूँ एक दिन
तूफ़ान थम जायेंगे
फिर खुशिओं के
उत्सव ढल जायेंगे
और बेवफाईओं के
ख़ामोश पल आयेंगे !
मौत आ जाये बेधड़क
तूफ़ान के बवंडर में
न होने से तो
कुछ होना अच्छा होगा
प्यार ना मिलने से तो
मिलकर खोना अच्छा…
ContinueAdded by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 29, 2015 at 7:35am — 12 Comments
उन दिनों जमशेद पुर में फैक्ट्री में फोर्जिंग प्लांट पर मेरी ड्यूटी थी फोर्जिंग प्लांट अत्यंत व्यस्त हो चुके थे। मार्च के महीने में टार्गेट पूरा करने प्रेशर जोरो पर था । बिजली के हलके फुल्के फाल्ट को नजर अंदाज इसलिए कर दिया जाता था क्यों कि सिट डाउन लेने का मतलब था उत्पादन कार्य को बाधित करना जिसे बास कभी भी बर्दास्त नहीं कर सकते थे । फिर कौन जाए बिल्ली के गले में घण्टी बाँधने । जैसा चल रहा है चलने दो बाद में देखा जायेगा । सेक्शन में लाइटिंग की सप्लाई की केबल्स को बन्दरों ने उछल कूद…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on April 28, 2015 at 5:30pm — 4 Comments
Added by मनोज अहसास on April 28, 2015 at 5:17pm — 3 Comments
एक जोर बड़ी आवाज हुयी
जैसे विमान बादल गरजा
आया चक्कर मष्तिष्क उलझन
घुमरी-चक्कर जैसे वचपन
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अब प्राण घिरे लगता संकट
पग भाग चले इत उत झटपट
कुछ ईंट गिरी गिरते पत्थर
कुछ भवन धूल उड़ता चंदन
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माटी से माटी मिलने को
आतुर सबको झकझोर दिया
कुछ गले मिले कुछ रोते जो
साँसे-दिल जैसे दफन किया
------------------------------
चीखें क्रंदन बस यहां…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 28, 2015 at 4:30pm — 18 Comments
2212 2212 2212
आसान राहों पे ले आती है मुझे
उसकी दुआ है, लग हीं जाती है मुझे.
ये शोर दिन का चैन लूटे है मेरा
औ' रात की चुप्पी जगाती है मुझे.
किस किस को रोकूं कौन सुनता है मेरी
ये भीङ पागल जो बताती है मुझे.
कूचे में जो मज्कूर है उस्से अलग
दहलीज़ तो कुछ औ' सुनाती है मुझे.
पहलू में मेरे बैठी है मुँह मोङ कर
ये ज़िन्दगी यूँ आजमाती है मुझे.
मौलिक व अप्रकाशित
Added by shree suneel on April 28, 2015 at 3:36pm — 24 Comments
अतुकांत - दवा स्वाद में मीठी जो है
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मोमबत्तियाँ उजाला देतीं है
अगर एक साथ जलाईं जायें बहुत सी
तो , आनुपातिक ज़ियादा उजाला देतीं हैं
कभी इतना कि आपकी सूरत भी दिखाई देने लगे
दुनिया को
लेकिन आपको ये जानना चाहिये कि ,
इस उजाले की पहुँच बाहरी है
किसी के अन्दर फैले अन्धेरों तक पहुँच नही है इनकी
भ्रम में न रहें
कानून अगर सही सही पाले जायें
तो, ये व्यवस्था देते…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 28, 2015 at 11:30am — 27 Comments
Added by Ravi Prakash on April 28, 2015 at 11:30am — 10 Comments
कोई झील बे-चैन सी,
कोई प्यास बे-खुद सी,
कोई शोखी बे-नज़ीर सी,
तेरी आँखों के और कितने नाम है.....
कोई ख़्याल बे-शक्ल सा,
कोई सितारा बे-नूर सा,
कोई बादल बे-आब सा,
मेरे अरमानों के और कितने नाम है.....
कोई रात बे-पर्दा सी,
कोई बिजली बे-तरतीब सी,
कोई अंगडाई बे-करार सी,
तेरी अदाओं के और कितने नाम है ....
कोई पत्थर बे-दाम सा,
कोई झरना बे-ताब सा,
कोई मुसाफिर बे-घर…
ContinueAdded by Nilesh Shevgaonkar on April 28, 2015 at 9:08am — 27 Comments
धरती के सीने में
अमृत छलकता है
धरती के ऊपर पानी है
अन्दर भी पानी है
ये धरती की मेहेरबानी है
कि बादल में पानी है
बादल तरसते हैं
तो धरती अपना पानी
नभ तक पहुंचा
उनकी प्यास बुझाती है
बादल बरस कर
एहसान नहीं करते
सिर्फ़ बिन सूद
कर्ज चुकाते हैं
क्यूंकि पानी तो वो
धरती से ही पाते हैं
फिर भी धरती पर गरजते हैं
बिजली गिराते हैं
जहाँ से जीवन पाते हैं
उसी को सताते हैं
जननी का हाल
कुछ ऐसा ही बताया था
परमार्थ का बीज बोया…
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 28, 2015 at 7:59am — 14 Comments
....जागते रहो
शहर के उस कोने में बजबजाता
एक बड़ा सा बाजार
जहॉ बिखरे पड़े हैं सामान
असहजता के शोरगुल में
तोल-मोल करते लोग
कुछ सुनाई नहीं देता
बस! दिखाई देता है, एक गन्दा तालाब
उसमें कोई पत्थर नहीं फेंकता
उसमे तैरती हैं...मछलियां, बत्तखें और
बेखौफ पेंढुकी भी
वे जानती है, और सब समझतीं भी हैं...
इस संसार में सब कुछ बिकाऊ हैं-
कुछ पैसे लेकर और कुछ पैसे देकर
यहां शरीर से लेकर आस्था तक, .....सब!
तालाब की मिट्टी में सने ...देव…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 27, 2015 at 9:42pm — 14 Comments
याद आते हैं
अक्सर
पुराने जमाने ,
बैलों की गाड़ी
वो भूजे के दाने ,
दादी माँ की कहानी
उन्हीं की जुबानी,
भूले से भी न भूले
वो पुरवट का पानी |
अक्सर ही बागों में
घंटों टहलना
पके आमों पे
मुन्नी का मचलना
गुलेलों की बाज़ी
गोलियों का वो खेला
सुबह शाम जमघट पे
लगे मानो मेला
वो मुर्गे की बांग पे
भैया का उठना
रट्टा लगाके
दो दूना पढ़ना
कपडे के झूले पे
करेजऊ का झुलना
छोटी-छोटी…
Added by Chhaya Shukla on April 27, 2015 at 9:30pm — 8 Comments
किसी साहित्यिक गोष्ठी में पहली बार शामिल हुआ था वह I सीखने को आतुर मन !! चर्चा जोरों पर थी साहित्य का स्वरुप क्या हो ? असमंजस में पड़ गया वो !! दिल से लिखी गयी कुछ पंक्तियों के लिए कल कितनी कटु आलोचना सहनी पड़ी थी उसे I मन का लेखक अब लेखनी से त्रस्त होकर सोच रहा था कि ...... " किसके लिए लिखे वो ? "
मीना पाण्डेय
बिहार
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by meena pandey on April 27, 2015 at 9:00pm — 4 Comments
तन्हाईयों में लौट जाएगी......
किसको सदायें देते हो
कोई रूह को चुराये जाता है
यादों के खंज़र से
आज खामोशी का दामन
तार- तार हुआ जाता है
हवाओं में
साँसों की सरगोशियों का शोर है
आँखों की मुंडेरों पर
दर्द के मौसम आ बैठे है
धड़कनें ज़ंजीरों में कैद हैं
भला दिल की सदा
कौन सुन पायेगा
ये पत्थरों का शहर है
यहां दिल शीशे सा टूट जायेगा
हर मौसम का यहां
अलग मजाज़ है
हर मौसम अब यहां
चश्मे सावन में डूब जाएगा…
Added by Sushil Sarna on April 27, 2015 at 8:04pm — 14 Comments
उस घर के आँगन में लोगों का जमावड़ा लगा हुआ और माहौल एकदम शांत था. अचानक जैसे ही तिरंगे में लिपटे हुए शव को सेना के वाहन से लाया गया तो सबसे पहले अपना होश खोकर वो घर के अन्दर से पागलों की तरह चीख मारती हुयी अपने दस वर्षीय बेटे के साथ, बाहर आकर सीमा पर शहीद हुए अपने पति के शव से लिपट-लिपट कर रोने लगी. शहीद सीमा सुरक्षा बल का जवान था. उसने दुश्मनों की सीमा में घुसकर उनके दल-बल को तहस-नहस कर डाला. बाद में दुश्मनों ने धोखे से उसे बंदी बनाकर रखा, फिर उसकी आँखें फोड़ दी गईं और शरीर को गोलियों से…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on April 27, 2015 at 12:18pm — 23 Comments
Added by विवेक मिश्र on April 27, 2015 at 8:30am — 9 Comments
पूरी जवानी उसने नशे और जुएँ की लत और बाप की नीली बत्ती के रौब में होम कर दी ।
"अभी माँ व बाप को मरे अभी साल भर ही नहीं हुआ, और तुम्हारा नशे में यूँ दिन रात झूमना , आखिर तुम कब इसे छोड़ोगे ?
देखना रमन ! यह ड्रग्स कभी तुम्हारी जान ले के छोड़ेगी आज घर की एक एक चीज नीलाम हो चुकी है , यहाँ तक की नाते-रिश्तेदार , नौकर चाकर सब साथ छोड़ कर चले गये । मैं तुमसे तंग आ चुकी हूँ अब तुम्हारे साथ और नहीं…
ContinueAdded by Pankaj Joshi on April 27, 2015 at 7:30am — 14 Comments
देह में तृष्णा के सागर
रेशम में ढकी गागर
इत्र से दबी गंध
लहू के धब्बों में
धुन्दलाया चेहरा
मुखोटों के पीछे
छिपाया मोहरा
न कोई मंजिल
ना कोई पहचान
बैठ ऊँचे मचान पर
ढूंढे नये आसमान
बे-माईने वक़्त का ये जहान
प्रेम परिभाषा ढूँढता वासना में
तम के घेरे में घिरा इंसान !!
******************************************
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on April 27, 2015 at 6:30am — 18 Comments
आरव ने खेल खेल में मेज पर प्लेट और गिलास से एक मीनार बना दी थी।""
"आरव बेटा यह क्या किया आपने"
आरव की मम्मा ने जिज्ञासावश आरव से पूछा।
"मम्मा मैंने यह अलार्म बनाया है ,अब जैसे ही भूकंप आयेगा हम जल्दी से घर से बाहर निकल जायेगे।कैसा है यह अलार्म मम्मा "
"बेटा जी अलार्म तो बहुत अच्छा है ।पर भगवान ना करें कि इसके बजने की नौबत आये"!
"मौलिक एवंम अप्रकाशित"
Added by neha agarwal on April 27, 2015 at 2:00am — 18 Comments
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