For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

June 2014 Blog Posts (163)

उफ़ गर्मी बहुत है रे ....

उफ़ गर्मी बहुत है रे

पैसे कौड़ी रह रह दिखाए

पास खड़ी खूब इतराए

महंगी से महंगी साड़ी पहने

गले में हीरो के लादे गहने

उफ़ गर्मी बहुत है रे ....



मंहगे पार्लर में जा के आये

कृतिम सुन्दरता पर भी इतराए

बालों की सफेदी मंहगे कलर से छुपाये

पैडी-मैनी क्योर न जाने क्या क्या करवाए

दात भी डाक्टर से चमकवाये

अपनी हर कुरूपता छुपाये

उफ़ गर्मी बहुत है रे.....



पति की नौकरी…

Continue

Added by savitamishra on June 18, 2014 at 11:21am — 18 Comments

जैसे तैसे काम चलाता है आदमी - डा० विजय शंकर

बहुत दिन हो गए हँसी मजाक किये हुए ,

बहुत दिन हो गए कोई व्यंग लिखे हुए ,

तो चलो आज ही ये काम भी कर लेतें हैं

बीते बहुत दिन परेशान जमाने को हँसे हुए ।

मित्रों , हँसना है तो विवेक-मुक्त होकर हँसे अन्यथा शब्दों में ही रह जायेगें और हस भी नहीं पायेगें .



जैसे तैसे काम चलाता है आदमी ,

कोई काम ठीक से कर नहीं पाता है आदमी .

यह तो सृष्टि की अद्वितीय रचना हैं , जो

एक साथ सत्रह - अदठ्ठारह काम

कर लेतीं हैं , बिना कोई गलती किये .

वो एक साथ खाना बना… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 18, 2014 at 8:06am — 22 Comments

आओ ! जश्न मनायें …

कभी कभी

जब/ वाणी ,कलम और अनुभूतियाँ

यूँ छिटक जाते हैं

जैसे पहाड़ी बाँध से छूटी

उत्श्रिङ्खल लहरें

बहा ले जाती हैं /अचानक

खुशियाँ /सपने /और जिंदगियाँ …

जब /बदहवास रिश्ते

बहा नहीं पाते

अपनी आँखों और मन से

पीड़ा /स्मृतियाँ

और वो

जो ढह जाता है

ताश के महल की तरह

जब एक हूक उठती है

सीने में /और

भर देती है

अनंत आसमान का

सारा खालीपन

कभी सारा समन्दर

और उसका खारापन

जब जुगलबंदी…

Continue

Added by dr lalit mohan pant on June 18, 2014 at 1:00am — 12 Comments

है ताब मुझे / एक ताज़ा तरही गज़ल

2122 1212 112

इश्क में जायेगी ये जान भी क्या

सब्र तोड़ेगा इम्तेहान भी क्या

.

ठोकरें हमको कर गयीं हैरां

आपने बदली है जबान भी क्या

.

गिर के नज़रों में कोई तुम ही कहो

जीत पायेगा ये जहाँन भी क्या

.

चाँद देखा था रात सहमा सा

'इस जमीं पर है आसमान भी क्या'

.

काट दे पर मेरे है ताब मुझे

रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या

.

फिर मुझे प्यार पर यकीन हुआ

नर्म दिल में तेरा निशान भी क्या

.

एक जुम्बिश हुयी है दिल में…

Continue

Added by वेदिका on June 18, 2014 at 12:42am — 40 Comments

आदमी (गीतिका छंद)

आदमी से आदमीयत, खो ग है रे कहां ।

आदमी से आदमी को, डर तभी तो है यहां ।।

आदमी में जो पड़ा है, स्वार्थ का साया जहां ।

आदमी अब आदमी से, बच नही पाये यहां ।।



आदमी आतंकवादी, उग्रवादी जो बने ।

आदमी के हाथ दोनो, खून से ही हैं सने ।।

मर्द जो है आदमी में, वो बलत्कारी लगे ।

गोद की बेटी उसे तो, ना दिखे अपने सगे ।।



आदमी को आदमी जो, है बनाना फिर कहीं ।

आदमी में तो जगाओ, आदमीयत फिर वही ।।

आदमी जो आदमी से, प्रेम करने फिर लगे…

Continue

Added by रमेश कुमार चौहान on June 17, 2014 at 11:00pm — 6 Comments

सूरज भी आ गया था आशिकी के दांव में..

कल घूमने गया था समंदर के गांव में,
हिचकोलियां खाती रही कश्ती बहाव में।
 
निकले उधर से जब वो समंदर ठहर गया,…
Continue

Added by atul kushwah on June 17, 2014 at 10:00pm — 16 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ये नुमायाँ है किसे क्या चाहिये - ग़ज़ल

2122/ 2122/ 212

ये नुमायाँ है किसे क्या चाहिये

बेख़िरद को सिर्फ़ चेहरा चाहिये                      बेख़िरद =कम अक्ल

 

हो गया है ताज़िरों का ये वतन                        ताज़िर=व्यापारी

खुश हुये वो जिनको वादा चाहिये

 

बच तो आयें लहरों से अहले जिगर

बस उन्हें कोई किनारा चाहिये

 

तख़्त पर जिसने बिठाया उनका कर्ज़

जानो दिल से अब चुकाना चाहिये

 

आप भी हँस लीजिये इस बात पर

झूठे को अब काम सच्चा…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on June 17, 2014 at 9:59pm — 23 Comments

अपनी हर सांस में …

अपनी हर सांस में …

अपनी हर सांस में...तुझे करीब पाता हूँ

तुझे हर ख्याल में अपना हबीब पाता हूँ

बिन तेरे ज़िंदगी की हर मसर्रत है झूठी

राहे वफ़ा में तुझे अपना नसीब पाता हूँ

तुम्हारे वाद-ए-फ़र्दा पर ..यकीं करूँ कैसे

हर दीद में इक तिश्नगी ..अजीब पाता हूँ

कूए कातिल से गुजरना ..आदत है मेरी

अपने ज़ख्मों में .अपना अज़ीज़ पाता हूँ

रूए-ज़ेबा को भला ज़हन से भुलाऊँ कैसे

बिन तुम्हारे तो मैं खुद को गरीब पाता…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 17, 2014 at 4:30pm — 20 Comments

किताबें कहती हैं/गज़ल/कल्पना रामानी

मात्रिक छंद

हमसे रखो न खार, किताबें कहती हैं।

हम भी चाहें प्यार, किताबें कहती हैं।



 घर के अंदर एक हमारा भी घर हो।  

भव्य भाव संसार, किताबें कहती हैं।



 बतियाएगा मित्र हमारा नित तुमसे,  

हँसकर  हर किरदार, किताबें कहती हैं।



 खरीदकर ही साथ सहेजो, जीवन भर,

लेना नहीं उधार, किताबें कहती हैं।



 धूल, नमी, दीमक से डर लगता हमको,

रखो स्वच्छ आगार, किताबें कहती हैं।



 कभी न भूलो जो संदेश…

Continue

Added by कल्पना रामानी on June 17, 2014 at 2:30pm — 22 Comments

दौर...(लघु-कथा)

“ आज का मैच तो बड़ा रोमांचक है यार, बड़े जबर्दस्त फार्म में  है टीम...”

“अरे हाँ यार!   तेरे घर  तो मैच देखने का आनंद ही अलग है, पर यार ये अन्दर से कराहने की आवाज तेरी मम्मी की आ रही है क्या..?”

“ आने दे यार!  वो तो उनकी रोज की आदत है, बूढी जो हो गई है थोड़ी देर में सो जाएँगी. तू तो मैच देख  मैच”

 

              जितेन्द्र ’गीत’

      ( मौलिक व् अप्रकाशित )

Added by जितेन्द्र पस्टारिया on June 17, 2014 at 12:35pm — 36 Comments

साथ जीने की सज़ा

चाहतों ने गुलज़मीं पे चाँदनी जब छा दिया

आहटों ने बढ़ तराना प्यार का तब गा दिया |

 

हाथ क़ैदी की तरह सहमे हुए थे क़ैद में

क़ैदख़ाने में किसी ने दिल थमा बहका दिया |

 

पाँव में थीं बेड़ियाँ, बेदम नज़र, मंजिल न थी

हौसले ने वक़्त पे सिर से कफ़न फहरा दिया |

 

होंठ काँटों के हवाले खूँ से लथपथ थे पड़े

फूल की ख़ुशबू ने टाँके खींचकर महका दिया |…

Continue

Added by Santlal Karun on June 16, 2014 at 9:00pm — 20 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी

 २२  २२ २२  २

शायद सूरज हार गया

छुप के दरिया पार गया

शाह हुए गुम हरमों में

कड़ी खिंचा बेकार गया

चुनाव आये फिर से तो

संसद गुनाहगार गया

कपडा जब हुआ…

Continue

Added by gumnaam pithoragarhi on June 16, 2014 at 5:03pm — 5 Comments

बनाया था महल मैनें गजल

1222 1222 1222 122

हमारे प्‍यार को वो अब निभाती भी नहीं है

जलाये क्‍यों हमारा दिल बताती भी नहीं है

लिखा जो गीत उसने वेवफाई पे हमारी

कभी वह गीत हमको तो सुनाती भी नहीं है

बनाया था महल मैनें कभी उनके लिये जो

पड़ा है आज भी सूना जलाती भी नहीं है

बड़े अरमान थे उनसे सजाये जिन्‍दगी में

मगर उनको कभी अब वो सजाती भी नहीं है

करें किससे शिकायत जिन्‍दगी की हम बताओ

कभी भी प्‍यार से मुझको बुलाती भी नहीं है

मौलिक व अप्रकाशित अखंड…

Continue

Added by Akhand Gahmari on June 16, 2014 at 2:09pm — 17 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
उड़ेगा कहाँ तक परों पे लिखा क्या ?(ग़ज़ल 'राज')

122  122 122 122

मनाज़िर नए हैं, सवेरा नया क्या ?

वतन पूछता है, अँधेरा हटा क्या ?

 

नई  खुशबुएँ  हैं नई सुब्ह महकी

सदी से बुझा था जो चूल्हा जला क्या ?

 

परिंदा नया है नए पंख निकले

उड़ेगा कहाँ तक परों पे लिखा क्या ?

 

सभी कह रहे हैं शजर विष भरा है

तुम्ही ये बताओ बिना जड़ उगा क्या ?

 

वहीँ  आग होगी  धुआँ है  जहाँ पर

हवा है गली में नया गुल खिला क्या ?

 

 

वो बुधवा की बेवा नहीं दी…

Continue

Added by rajesh kumari on June 16, 2014 at 9:28am — 22 Comments

महज पाना किसी को भी मुहब्बत तो नहीं होती - ग़ज़ल

*******

1222 1222 1222 1222

*******

हुआ    जाता    नहीं   बच्चा   कभी   यारो   मचलने   से

नहीं    सूरत    बदलती   है   कभी   दरपन   बदलने   से

***

जला  ले  खुद  को  दीपक  सा  उजाला   हो   ही  जायेगा

मना   करने   लगे   तुझको  अगर  सूरज  निकलने  से

***

हमारी   सादगी   है   ये   भरोसा   फिर   जो   करते   हैं

कभी  तो  बाज  आजा  तू  सियासत  हमको  छलने  से

***

बता  बदनाम  करता  क्यों  पतित  है  बोल अब…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 16, 2014 at 9:26am — 14 Comments

बाल मज़दूरी -हमारी मज़बूरी .

”बचपन आज देखो किस कदर है खो रहा खुद को ,

उठे न बोझ खुद का भी उठाये रोड़ी ,सीमेंट को .”

........................................................................

”लोहा ,प्लास्टिक ,रद्दी आकर बेच लो हमको ,

हमारे देश के सपने कबाड़ी कहते हैं खुद को .”

.......................................................................

”खड़े हैं सुनते आवाज़ें ,कहें जो मालिक ले आएं ,

दुकानों पर इन्हीं हाथों ने थामा बढ़के ग्राहक को .”…

Continue

Added by shalini kaushik on June 15, 2014 at 11:30pm — 3 Comments

बेटियाँ

पिता

गर बेटियाँ है  तुम्हारा  स्वाभिमान

फिर क्यों

समाज के  विद्रूपताओं से  भयभीत होकर

रोकते  हो  उसकी हर  उड़ान

बनाने क्यों नहीं देते  उसकी

स्वयं की साहसी  पहचान

असुरक्षा के  डर से

देना  चाहते  हो उसको

किसी का साथ

खर्च  कर लाखोँ  लाते हो

छान बिन कर एक जोड़ी  अदद हाथ

जो  बनेगा  तुम्हारी बेटी का आजीवन रक्षक

पर क्या  होता  है सही ये फैसला

हर बार

वक्त के साथ देख  बेटियों की  दुर्दशा

क्या…

Continue

Added by MAHIMA SHREE on June 15, 2014 at 3:00pm — 8 Comments

वेदना -निग्रही

माँ
मान भरे ममता का आँचल
तो पिता
सर पर नीलाभ आसमान है
दोनों का स्नेह एक सामान है.
माँ
बच्चों के दर्द से बिलबिला जाती है
तो पिता की चिंता
दर्द की दवा बन जाती है.
माँ कोमलता से भरी है
तो पिता के परुष से
विपत्तियाँ भी डरी है.
बच्चों के लिए
दोनों का स्नेह ही
वेदना -निग्रही है.

डॉ.विजय प्रकाश शर्मा
(मौलिक और अप्रकाशित)

Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on June 15, 2014 at 12:05pm — 10 Comments

जिंदगी तू भी अजीब है -- डॉo विजय शंकर

जिंदगी भी अजीब है

जब भी उदास होती है ,

बेहद पास होती है |

खुश होती है तो ,

हमीं से दूर होती है ||

खुश हो तो लापरवाह इतनी

कि खुद हमसे नहीं सम्हलती ,

उदास होती है तो हमें ही

नहीं संभाल पाती है ||

जिंदगी अपनी होते हुये भी

क्यों अंजानी सी लगती है

दूसरे की जिंदगी क्यों अच्छी ,

जानी पहचानी सी लगती है ||

साथ बैठें तेरे कभी आ

कुछ बात करें, तुझी से

आ जिंदगी तुझको

थोड़ा देंखें करीब से |

इक हम हैं जो जीते हैं

सिर्फ… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on June 15, 2014 at 11:57am — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मेरा ग़म लगता है हमसाया मुझे

2122/ 2122/ 212

मेरा ग़म लगता है हमसाया मुझे

जीने का फन ग़म ने सिखलाया मुझे

 

ये हवा मेरे मुताबिक तो नहीं

कौन तेरे शह्र में लाया मुझे

 

मुश्किलों में सिर्फ मेरी जाँ नहीं

खौफ़ में हर इक नज़र आया मुझे

 

हौसला, हिम्मत, दुआएँ, दोस्ती

तज़्रिबे ने बख़्शा सरमाया मुझे

 

धूप की शिद्दत बहुत थी राह में

माँ के आँचल से मिली छाया मुझे

 

कौन सा मैं रंग दूँ तुझको ग़ज़ल

ज़ीस्त के रंगों ने…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on June 15, 2014 at 8:00am — 6 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service