“मम्मा मेरे लिए ब्रेकफास्ट में केवल फ्रूट सलाद बनाना.”
“आज फ्रूट्स नहीं है... कुछ और बना दूं ?”
“नहीं” - परी ने मना कर दिया क्योकिं पार्टी में हैवी डाईट के कारण ब्रेकफास्ट लाईट करना चाहती थी. तभी बेडरूम से पापा बाहर आये. अपनी इकलौती बेटी को देर रात से घर आने के लिए समझाते रहें और मॉर्निंग-वाक के लिए निकल गए.
“मम्मा... ये पापा सुबह-सुबह चालू हो जाते है, ये करो, ये मत करो.... ये लेट नाईट पार्टीज हमारा कल्चर नहीं है. ब्ला ब्ला ब्ला.......”
“तुम्हारी केयर करते है पापा, इसलिए…
Added by मिथिलेश वामनकर on July 29, 2015 at 2:58am — 23 Comments
खिजाँ आयी है किस्मत में बहारों का भी दम निकले,
जहाँ ढूँढू मैं अरमां को , वहां अरमां भी कम निकले |
हजारों गम मेरे दिल में न मुझको राख ये कर दें ,
कहीं इन सुर्ख आँखों से नदी बन के न हम निकले |
तुम्हें लिख-लिख के ख़त अक्सर कभी मैं भूल जाता था,
पुराने ख़त दराजों से जो निकले आज, नम निकले |
किसी की जुस्तजू करके कि खुद को खो चुका हूँ मैं,
उधर से बेरुखी उनकी इधर दुनिया से हम निकले |
जगह छोड़ी है जख्मों ने कहाँ अब 'हर्ष' सीने में,…
Added by Harash Mahajan on July 28, 2015 at 7:00pm — 4 Comments
खूब सूरत है नज़ारे क्या करें
गुरबतों के लोग मारे क्या करें
सो गए फुटपाथ पर जोखिम मगर
नींद जो उनको पुकारे क्या करें
साल मे इक माह मिलती छुट्टियां
चॉंद को गर ना निहारे क्या…
ContinueAdded by Ravi Shukla on July 28, 2015 at 5:30pm — 9 Comments
बर्न वार्ड के बाहर भैंसे पर सवार यमराज खड़े थे
" प्रभु क्या सोच रहे हैं ? जल्दी प्राण हरिये और चलिए I आप तो मेरे ऊपर सवार घंटे भर से उस स्त्री को देखे जा रहे हैं,मेरी पीठ की दशा का भी कुछ ध्यान है ?"
"इस पुरुष ने अपनी पत्नी को जलाने का प्रयास किया और स्वयं जल गया I और ये स्त्री ,अपने सारे गहने बेच कर इसका इलाज करवा रही है, देखो कैसे बदहवास बाहर खड़ी रोये जा रही है Iमैं सोच रहा हूँ पुत्र ..............."
"कि इसके प्राण छोड़ दूं .,यही ना प्रभु ?और ये पुरुष ठीक होकर फिर से…
ContinueAdded by pratibha pande on July 28, 2015 at 9:30am — 22 Comments
"अमर! गाडी पंडितजी के घर के आगे लगाकर जरा उन्हे तनिक बाहर बुला लाओ।" सेठ जी ने अपने ड्राईवर को आज्ञा दी।......
कुछ ही क्षण बाद अमर के पीछे पंडितजी बाहर आते नजर आये। "सेठजी राधे राधे। मैं गीता पाठ कर रहा था आप के आने की बात सुन पाठ छोड़ चला आया, कहिये कैसे याद किया आपने?"
"राधे राधे पंडितजी।" सेठजी मुस्कराने लगे। "कुछ खास नही, आप के लिये कुछ वस्त्र लिये थे सोचा गुजरते हुये देता चलूँ।"
पंडितजी से 'आयुष्मान भव:' का आशिर्वाद पा सेठजी की गाडी आगे चल पड़ी। अमर 'बैक मिरर' में सेठजी…
Added by VIRENDER VEER MEHTA on July 28, 2015 at 8:00am — 13 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 27, 2015 at 10:30pm — 11 Comments
एक पहाड़ी स्त्री का दर्द
मेरे और उनके बीच
एक पारदर्शी दीवार खड़ी है.
वे हँसती, ठिठोली करती
कभी बुरांश की लाली को छेड़ती
चाय के बागानों में उछलती कूदती
मुझे बुलाती हैं –
मैं पारदर्शी दीवार के इस पार
छटपटाकर रह जाती हूँ.
जब काले-सफेद बादलों के हुजूम
आसमान से उतरते, वादियों से चढ़ते
उन्हें घेर लेते,
वे ओझल हो जाती हैं और,
मैं प्यासी, बोझिल ह्र्दय ले
पारदर्शी दीवार के इस पार
छटपटाकर रह जाती…
Added by sharadindu mukerji on July 27, 2015 at 9:30pm — 9 Comments
212 212 212 212
छन के रौजन से आती हुई रौशनी
ख़्वाब के कण उड़ाती हुई रौशनी
तीरगी से गुज़रती हुई फ़र्श पर
डर के पैकर बनाती हुई रौशनी
मैं किसी के तसव्वुर में खोया था और
आई दिल को जलाती हुई रौशनी
रात भर का जगा ग़म से बेज़ार दिल
और मुझको सताती हुई रौशनी
इस तग़ाफ़ुल से नाशाद हो मुझसे वो
रुठ के दूर जाती हुई रौशनी
-मौलिक व अप्रकाशित
Added by शिज्जु "शकूर" on July 27, 2015 at 9:01pm — 6 Comments
Added by Manan Kumar singh on July 27, 2015 at 12:30pm — 4 Comments
“ये देखो विज्ञान आज कितनी तरक्की कर रहा है कितनी अद्दभुत मशीन बना डाली, पुरुष भी महसूस करके देख सकते हैं अब प्रसव वेदना को|" टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में हेडिंग Chinese men get a taste of labor pain with a machine को पढ़ते हुए प्रोफ़ेसर बक्शी अपनी पत्नी से अचानक बोल उठे
”पापा क्या कभी कोई ऐसी मशीन भी बन पाएगी जो रेप के दर्द को भी पुरुष महसूस कर सकें” थोड़ी दूरी पर बैठी बेटी के अचानक इस प्रश्न ने पापा को अन्दर तक झिंझोड़ कर रख दिया बेटी के सिर पर…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 27, 2015 at 10:00am — 26 Comments
2122 / 2122 / 2122 / 212 (इस्लाही ग़ज़ल) |
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बेबसी को याख़ुदा मुझ नातवाँ से दूर रख |
या तो ऐसा कर मुझे मुश्किल जहाँ से दूर रख |
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उस परीवश को घड़ी भर आज जाँ से… |
Added by मिथिलेश वामनकर on July 26, 2015 at 11:58pm — 37 Comments
Added by Samar kabeer on July 26, 2015 at 11:34pm — 16 Comments
Added by shashi bansal goyal on July 26, 2015 at 10:31pm — 8 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 26, 2015 at 9:52pm — 12 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on July 26, 2015 at 9:30pm — 12 Comments
है काम बहुत कुछ करने को, यूँ हमने कब आराम किया दिन न देखा रात न देखी बस जीवन भर काम किया
मज़दूर हूँ मै, मजबूर हूँ मै, हर हाल में मैंने काम किया फिर भी सबने मेरे आगे, दर्द का कड़वा जाम किया
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Added by नादिर ख़ान on July 26, 2015 at 4:30pm — 7 Comments
2122 2122 2122 212
इश्क़ मे बेहाल होकर इतना हासिल हो गया
तेरी आहट से यहाँ हर लम्हा महफ़िल हो गया
फैसला करना मुझे ये आज मुश्किल हो गया
दिल से मुझको गम मिला या गम से यूँ दिल हो गया
रात सी चादर लपेटे बर्फ से वो सामने
आखिरी लम्हा मेरा जीने के काबिल हो गया
यूँ तो उसने बेबसी के सब फ़साने लिख दिए
ये नहीं कह पाया कैसे खुद का कातिल हो गया
डबडबाया कुछ ज़रा फिर जज्ब सब कुछ हो गया
किस कदर महफूज़ उन झीलों का साहिल हो गया…
Added by मनोज अहसास on July 26, 2015 at 4:00pm — 11 Comments
अपनी जान बचा तो पाया,
डूबा था पर बाहर आया।
जब इल्ज़ामों की बारिश थी,
पास नहीं था मेरे साया।
मुझको गैर बताकर उसने,
हाय गजब ये कैसा ढाया।
तन्हाई में खाली दिल ने,
साज़ उठाया नग़मा गाया।
जबसे सच्चाई जानी है,
हर रिश्ते से दिल घबराया।
प्यार भरा दिल तोड़ा जिसने,
मानो उसने मंदिर ढाया।
कुछ मिसरे ये टूटे फूटे,
हैं मेरा सारा सरमाया।
हम…
Added by इमरान खान on July 26, 2015 at 3:18pm — 8 Comments
चार लोग अलग-अलग देशों की यात्रा कर पानी के जहाज़ से अपने घर लौट रहे थे|
पहले ने कुछ दिखाते हुए कहा, "यह एक विशेष प्रकार की बन्दूक ली है, इसका निशाना कभी नहीं चूकता|"
दूसरे ने कहा, "मैं बारूद लेकर आया हूँ, यह देखो|"
तीसरे ने बताया, "और मैं बारूद से कारतूस बनाने का यह सामान|"
चौथे ने गर्व से कहा, "मैं सालों मेहनत कर अपने परिवार के लिये धन ले जा रहा हूँ, देखो मेरी हीरों से जड़ी घड़ी|"
यह सुनकर तीनों ने अपने साथ लाई चीज़ों को मिला दिया और चौथे का जीवन-काल समाप्त कर…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 26, 2015 at 2:30pm — 5 Comments
सुनो सखी !
लगती मनमोहक
पावस की धुली हुई भोर
करती सबको आत्म विभोर
पुष्प से मांगती है मकरंद
छोने दुलराती बागों में मोर
अटकती बलरियों
लटकती वसुधा जी की गोद
देखो लगती मौन मुखर सी
पावस की धुली हुई भोर
भाल प्राची का सजाती
केशर तिलक वो लगाती
अलिक्षित शांति से परिपूर्ण
दर्पण ऑस बूंदों को बनाती
सम्हलती तिमिर के उर में
लजाती नव दुल्हन सी
पावस की धुली हुई भोर
कमल…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on July 26, 2015 at 2:00pm — 4 Comments
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