कल से आगे ........
सुमाली और वज्रमुष्टि आज दक्षिण की ओर भ्रमण पर निकल पड़े थे। सुमाली अपने विशेष अभियानों में अधिकांशतः वज्रमुष्टि को ही अपने साथ लेकर निकलता था। वह उसके पुत्रों और भ्रातृजों में सबसे बड़ा भी था और उसकी सोच भी सुमाली से मिलती थी।
तीव्र अश्वों पर भी दक्षिण समुद्र तट तक पहुँचने में पूरा दिन लग गया था। इन लोगों ने मुँह अँधेरे यात्रा आरंभ की थी और अब दिन ढलने के करीब था। रावण प्रहस्त से सर्वाधिक संतुष्ट था इसलिये वह सदैव उसी के साथ रहता था। अक्सर…
Added by Sulabh Agnihotri on July 20, 2016 at 9:47am — 4 Comments
22 22 22 22 22 22 ( बहरे मीर )
कोई किसी की अज़्मत पीछे छिपा हुआ है
कोई ले कर नाम किसी का बड़ा हुआ है
यातायात नियम से वो जो चलना चाहा
बीच सड़क में पड़ा दिखा, वो पिटा हुआ है
किसने लूटा कैसे लूटा कुछ समझाओ
हर इक चेहरा बोल रहा वो लुटा हुआ है
दूर खड़े तासीर न पूछो, छू के देखो
आग है कैसी ,इतना क्यूँ वो जला हुआ है
चौखट अलग अलग होती हैं, लेकिन यारो
सबका माथा किसी द्वार पर झुका हुआ…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 20, 2016 at 8:30am — 14 Comments
22 22 22 22 22 2
गदहा अन्दर हो जाये, तैयारी है
धोबी का रिश्ता लगता सरकारी है
वो बयान से खुद साबित कर देते हैं
जहनों में जो छिपा रखी बीमारी है
बात धर्म की आ जाये तो क्या बोलें ?
समझो भाई ! उनकी भी लाचारी है
बम बन्दूकें बहुत छिपा के रक्खे हैं
अभी फटा जो, वो केवल त्यौहारी है
सरहद कब आड़े आयी है रिश्तों में
हमसे क्यूँ पूछो, क्यूँ उनसे यारी है ?
कभी फटा था…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 20, 2016 at 8:30am — 12 Comments
Added by रामबली गुप्ता on July 19, 2016 at 9:58pm — 7 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 19, 2016 at 9:30pm — 10 Comments
नशीली आग़ोश ....
अरसा हुआ तुमसे बिछुड़े हुए
ख़बर ही नहीं
हम किस अंधी डगर पर
चल पड़े
हमारी गुमराही पर तो
कायनात भी खफ़ा लगती है
बाद बिछुड़ने के
मुददतों हम
आईने से नहीं मिले
ख़ुद अपनी शक्ल से भी हम
नाराज़ लगते हैं
तुम्हें क्या खोया
कि अँधेरे हम पर
महरबान हो गए
यादों के अब्र
चश्मे-साहिल के
कद्रदान गए
दरमानदा रहरो की मानिंद
हमारी हस्ती हो गयी
इश्क-ए-जस्त की फ़रियाद
करें…
Added by Sushil Sarna on July 19, 2016 at 3:44pm — 14 Comments
अगला कदम उठाते ही उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे सैकड़ों टन का भार उसके पैरों पर रखा हो, वह लड़खड़ा उठा और उसने अपने साथी के कंधे का सहारा लिया, लेकिन साथी भी बहुत थका हुआ था, वह डगमगा गया, बर्फ के पर्वत पर चढ़ते हुए सेना के उन दोनों जवानों ने तुरंत एक-दूसरे को थाम लिया|
उसके साथी ने उसकी बांह को जोर से पकड़ते हुए कहा, "सोलह घंटों से चल रहे हैं, अब तो पैर उठाने की ताकत भी नहीं बची..."
"लेकिन चलना तो है ही...", उसने उत्तर दिया
"क्यों न कुछ खा लिया जाये?"…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 19, 2016 at 12:30pm — 22 Comments
कल से आगे ...........
-24-
‘‘प्रिये लंका में आपका स्वागत है।’’ रावण ने कक्ष में प्रवेश करते हुये कहा।
मंदोदरी पर्यंक से उठकर खड़ी हो गयी और उसने आगे बढ़कर झुककर रावण के चरणों में अपना मस्तक रख दिया।
‘‘अरे ! यह क्या करती हैं ? आपका स्थान तो रावण के हृदय में है।’’ कहते हुये रावण ने उसे उठा कर अपने सीने से लगा लिया।
मंदोदरी ने भी पूर्ण समर्पण के साथ अपना सिर उसके विशाल वक्ष पर रख दिया।
यह तय हुआ था कि कुबेर के प्रस्थान से…
ContinueAdded by Sulabh Agnihotri on July 19, 2016 at 9:54am — No Comments
2122-2122-212
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
झूठ की बुनियाद पर रिश्ते हुए,
ख़त्म सारे वास्ते उस से हुये.
बेवजह तुमने मिटाईं दूरियां,
पास रह कर भी न हम तेरे हुए.
गाल पर गिर कर भी जो लहरा रहे,
हर नज़र में कान के झुमके हुए.
जिंदगी से आज भी उम्मीद है,
हम नहीं रहते हैं अब सहमे हुए.
आपसे अक्सर सुना मैंने सनम
चार दिन की चांदनी कहते हुए
है मुखौटा आदमी का आज…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on July 19, 2016 at 8:30am — 10 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २
जल्दी में क्या सीखोगे
सब आहिस्ता सीखोगे
एक पहलू ही गर देखा
तुम सिर्फ़ आधा सीखोगे
सबसे हार रहे हो तुम
सबसे ज़्यादा सीखोगे
सबसे ऊँचा, होता है,
सबसे ठंडा, सीखोगे
सूरज के बेटे हो तुम
सब कुछ काला सीखोगे
सीखोगे जो ख़ुद पढ़कर
सबसे अच्छा सीखोगे
पहले प्यार का पहला ख़त
पुर्ज़ा पुर्ज़ा सीखोगे
हाकिम बनते ही…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 18, 2016 at 11:00pm — 12 Comments
महालक्ष्मी छंद
घूस से जो खड़ा हो गया
क्या सभी से बड़ा हो गया?
आग में जो तपा झूठ की
एक थोथा घड़ा हो गया
ज्ञान वाला यहाँ हारता
मूर्ख बाजी यहाँ मारता
मार देता वही साँच को
झूठ का वेष जो धारता
आज का हाल क्या हो रहा
क्यूँ युवा देश का खो रहा
सूखती पौध आशा भरी
मूल में क्या नशा बो रहा
सोचता है युवा क्यूँ पढूँ
है कहाँ राह आगे बढूँ
हो न पूरे यहाँ जो…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 18, 2016 at 9:09pm — 12 Comments
मेरी जान
बनकर दुल्हन
बनी ठनी
सजी संवरी
मृदु मुस्कान
भर चली ।
मेरी लाडो
बन दुल्हन
घर चली |
वीरान आँगन
वो मेरा
कर चली ।
मेरी जान
अपने सजन की
हो चली ।
घर बाबुल का
पीछे छोड़
चल पड़ी…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 18, 2016 at 8:30pm — 8 Comments
२२१ २१२१ १२२१ २१२
जब छीनने छुडाने के साधन नए मिले
हर मोड़ पर कई-कई सज्जन नए मिले
कुछ दूर तक गई भी न थी राह मुड़ गई
जिस राह पर फूलों भरे गुलशन नए मिले
काँटों से खेलता रहा कैसा जुनून था
उफ़! दोस्तों की शक्ल में दुश्मन नए मिले
जितने भी काटता गया जीवन के फंद वो
उतने ही जिंदगी उसे बंधन नए मिले
अपनों से दूर कर न दे उनका मिज़ाज भी
गलियों से अब जो गाँव की आँगन नए…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on July 18, 2016 at 2:00pm — 19 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 18, 2016 at 11:30am — 9 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on July 18, 2016 at 10:54am — 4 Comments
कल से आगे ...
‘‘महर्षि प्रणाम स्वीकार करें।’’ महर्षि अगस्त्य के आश्रम में प्रवेश करते हुये इंद्र ने कहा।
‘‘देवेंद्र को क्या आशीर्वाद दूँ मैं ?’’ अगस्त्य ने हँसते हुये कहा ‘‘देवेन्द्र के सौभाग्य से तो सारा विश्व पहले ही ईष्र्या करता है।’’
‘‘क्या गजब करते हैं मुनिवर ! इस समय तो इंद्र को आपके आशीर्वाद की सर्वाधिक आवश्यकता है। इस समय यह कृपणता, दया करें, इस समय भरपूर आशीर्वाद दें।’’
‘‘ महर्षि गौतम के साथ ऐसा घात करने के बाद भी जो विश्व में पूजनीय है भला उसे अगस्त्य के…
Added by Sulabh Agnihotri on July 18, 2016 at 9:00am — 3 Comments
Added by shree suneel on July 18, 2016 at 2:00am — 9 Comments
थक गए थे जलील चचा, कोई भी उनकी बात सुनने को तैयार नहीं था| सबको बस एक ही बात समझ आ रही थी कि बड़ी बड़ी बंदूकें उठाओ और हर उस शख्श को रास्ते से हटा दो जो उनकी बात नहीं माने| पता नहीं ये उन भड़काऊ तकरीरों का असर था या उनके द्वारा दिखाए गए प्रलोभन का असर| आज उनको बेहद अफ़सोस हो रहा था, अपने ऊपर और पत्नी के ऊपर भी जो उनको अकेला छोड़कर जन्नत सिधार गयी थी| काश उनको एक औलाद दे गयी होती तो कम से कम उसे तो सही रास्ते पर चला पाते|
आज शाम की मीटिंग में फिर से सबने उनके शांति और सौहार्द के प्रस्ताव को…
Added by विनय कुमार on July 17, 2016 at 3:23pm — 8 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 17, 2016 at 12:00pm — 4 Comments
कल से आगे ........
समय का चक्र अपनी गति से चलता रहा।
महाराज दशरथ पिता बन गये। बड़ी रानी कौशल्या ने पुत्र को जन्म दिया। दशरथ का मन खुशी से नाचने लगा। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अपना उल्लास कैसे व्यक्त करें। उनका बस चलता तो वे मुकुट आदि सारे राजकीय आडम्बरों को एक ओर रखकर नाचते, गाते, चिल्लाते अयोध्या की सड़कों पर निकल जाते और एक-एक आदमी को पकड़ कर उसे यह शुुभ समाचार सुनाते। पर हाय री पद की मर्यादा ! वे ऐसा नहीं कर सकते थे। फिर भी अयोध्या का कोष खोल दिया गया था। पूरी पुरी…
Added by Sulabh Agnihotri on July 17, 2016 at 10:26am — 1 Comment
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