For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

July 2016 Blog Posts (184)

राम-रावण कथा (पूर्व पीठिका) 26

कल से आगे ........

सुमाली और वज्रमुष्टि आज दक्षिण की ओर भ्रमण पर निकल पड़े थे। सुमाली अपने विशेष अभियानों में अधिकांशतः वज्रमुष्टि को ही अपने साथ लेकर निकलता था। वह उसके पुत्रों और भ्रातृजों में सबसे बड़ा भी था और उसकी सोच भी सुमाली से मिलती थी।



तीव्र अश्वों पर भी दक्षिण समुद्र तट तक पहुँचने में पूरा दिन लग गया था। इन लोगों ने मुँह अँधेरे यात्रा आरंभ की थी और अब दिन ढलने के करीब था। रावण प्रहस्त से सर्वाधिक संतुष्ट था इसलिये वह सदैव उसी के साथ रहता था। अक्सर…

Continue

Added by Sulabh Agnihotri on July 20, 2016 at 9:47am — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - हर इक चेहरा बोल रहा वो लुटा हुआ है - गिरिराज भंडारी

22   22   22   22   22   22 ( बहरे मीर )

कोई किसी की अज़्मत पीछे छिपा हुआ है

कोई ले कर नाम किसी का बड़ा हुआ है

 

यातायात नियम से वो जो चलना चाहा

बीच सड़क में पड़ा दिखा, वो पिटा हुआ है

 

किसने लूटा कैसे लूटा कुछ समझाओ

हर इक चेहरा बोल रहा वो लुटा हुआ है

 

दूर खड़े तासीर न पूछो, छू के देखो

आग है कैसी ,इतना क्यूँ वो जला हुआ है

 

चौखट अलग अलग होती हैं, लेकिन यारो

सबका माथा किसी द्वार पर झुका हुआ…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on July 20, 2016 at 8:30am — 14 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - वो बयान से खुद साबित कर देते हैं - ( गिरिराज भंडारी )

22   22  22   22   22   2



गदहा अन्दर हो जाये, तैयारी है

धोबी का रिश्ता लगता सरकारी है

 

वो बयान से खुद साबित कर देते हैं

जहनों में जो छिपा रखी बीमारी है

 

बात धर्म की आ जाये तो क्या बोलें ?

समझो भाई ! उनकी भी लाचारी है   

 

बम बन्दूकें बहुत छिपा के रक्खे हैं

अभी फटा जो, वो केवल त्यौहारी है

 

सरहद कब आड़े आयी है रिश्तों में

हमसे क्यूँ पूछो, क्यूँ उनसे यारी है ?

 

कभी फटा था…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on July 20, 2016 at 8:30am — 12 Comments

सावन मनभावन

घेरि-घेरि घनघोर घटा अति स्नेह-सुधा बरसाए जन में।

चमक चंचला हाय! विरही मन की तपन बढ़ाये छन में।।



भीग-भीग हिय गीत प्रीत के गाये सुख पाये सावन में।

झूम-झूम तरु राग वागश्री गाएं हरषाएं जीवन में।।



टर्र-टर्र टर्राएं दादुर अति रति भाव जगा निज मन में।

म्याव-म्याव धुन गाये, नाचे मोर मोरनी के सँग वन में।।



कुहुक-कुहुक कर गाये कोयल हृदय चुराए छिप उपवन में।

सुखमय यह सावन मनभावन अति सुख लाये हर जीवन में।।





रचना-रामबली गुप्ता

मौलिक एवं… Continue

Added by रामबली गुप्ता on July 19, 2016 at 9:58pm — 7 Comments

गुरु-महिमा(आल्हा छंद पर प्रयास)

आज पर्व पावन है आया,होता है जो गुरु के नाम

कोटि-कोटि नत गुरु चरणों में,उनसे सीखे हैं सब काम

ज्ञान-सुधा बरसाते हैं जो,दे सकता क्या उनका दाम

माँ शारद को उनके पीछे,ही करता हूँ मैं परनाम!



मूढ़ पड़े पत्थर जैसे थे,जब तक मिला नहीं था ज्ञान

कोई काम सधा कब साधे, हम तो बने रहे अनजान

एक ज्योति पुँज हमें दिखाया,अज्ञान हुआ अंतर्ध्यान

हिंदी की सेवा हो जाए,बना रहे इसका सम्मान

.

शिष्य श्रेष्ठ हो जाता है तो,गुरु का भी बढ़ता है मान

इक दूजे के पूरक… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 19, 2016 at 9:30pm — 10 Comments

नशीली आग़ोश .....

नशीली आग़ोश ....

अरसा हुआ तुमसे बिछुड़े हुए 

ख़बर ही नहीं

हम किस अंधी डगर पर

चल पड़े

हमारी गुमराही पर तो

कायनात भी खफ़ा लगती है

बाद बिछुड़ने के

मुददतों हम

आईने से नहीं मिले

ख़ुद अपनी शक्ल से भी हम

नाराज़ लगते हैं



तुम्हें क्या खोया

कि अँधेरे हम पर

महरबान हो गए

यादों के अब्र

चश्मे-साहिल के

कद्रदान गए

दरमानदा रहरो की मानिंद

हमारी हस्ती हो गयी

इश्क-ए-जस्त की फ़रियाद

करें…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 19, 2016 at 3:44pm — 14 Comments

बढ़ते कदम (लघुकथा)

अगला कदम उठाते ही उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे सैकड़ों टन का भार उसके पैरों पर रखा हो, वह लड़खड़ा उठा और उसने अपने साथी के कंधे का सहारा लिया, लेकिन साथी भी बहुत थका हुआ था, वह डगमगा गया, बर्फ के पर्वत पर चढ़ते हुए सेना के उन दोनों जवानों ने तुरंत एक-दूसरे को थाम लिया|

 

उसके साथी ने उसकी बांह को जोर से पकड़ते हुए कहा, "सोलह घंटों से चल रहे हैं, अब तो पैर उठाने की ताकत भी नहीं बची..."

"लेकिन चलना तो है ही...", उसने उत्तर दिया

"क्यों न कुछ खा लिया जाये?"…

Continue

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 19, 2016 at 12:30pm — 22 Comments

राम-रावण कथा (पूर्व पीठिका) 24, 25

कल से आगे ...........

-24-

‘‘प्रिये लंका में आपका स्वागत है।’’ रावण ने कक्ष में प्रवेश करते हुये कहा।

मंदोदरी पर्यंक से उठकर खड़ी हो गयी और उसने आगे बढ़कर झुककर रावण के चरणों में अपना मस्तक रख दिया।

‘‘अरे ! यह क्या करती हैं ? आपका स्थान तो रावण के हृदय में है।’’ कहते हुये रावण ने उसे उठा कर अपने सीने से लगा लिया।

मंदोदरी ने भी पूर्ण समर्पण के साथ अपना सिर उसके विशाल वक्ष पर रख दिया।

यह तय हुआ था कि कुबेर के प्रस्थान से…

Continue

Added by Sulabh Agnihotri on July 19, 2016 at 9:54am — No Comments

ग़ज़ल: पास रह कर भी न हम तेरे हुए.

2122-2122-212

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

 

झूठ की बुनियाद पर रिश्ते हुए,

ख़त्म सारे वास्ते उस से हुये.

 

बेवजह तुमने  मिटाईं दूरियां,

पास रह कर भी न हम तेरे हुए.

 

गाल पर गिर कर भी जो लहरा रहे,

हर नज़र में कान के झुमके हुए.

 

जिंदगी से आज भी उम्मीद है,

हम नहीं रहते हैं अब सहमे हुए.

 

आपसे अक्सर  सुना मैंने  सनम

चार दिन की चांदनी कहते हुए

 

है मुखौटा आदमी का आज…

Continue

Added by Abha saxena Doonwi on July 19, 2016 at 8:30am — 10 Comments

सब आहिस्ता सीखोगे (ग़ज़ल)

बह्र : २२ २२ २२ २

जल्दी में क्या सीखोगे

सब आहिस्ता सीखोगे

 

एक पहलू ही गर देखा

तुम सिर्फ़ आधा सीखोगे

 

सबसे हार रहे हो तुम

सबसे ज़्यादा सीखोगे

 

सबसे ऊँचा, होता है,

सबसे ठंडा, सीखोगे

 

सूरज के बेटे हो तुम

सब कुछ काला सीखोगे

 

सीखोगे जो ख़ुद पढ़कर

सबसे अच्छा सीखोगे

 

पहले प्यार का पहला ख़त

पुर्ज़ा पुर्ज़ा सीखोगे

 

हाकिम बनते ही…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 18, 2016 at 11:00pm — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मूल में क्या नशा बो रहा (महालक्ष्मी छंद )

महालक्ष्मी छंद

 

घूस से जो खड़ा हो गया

क्या सभी से बड़ा हो गया?

आग में जो तपा झूठ की

एक थोथा घड़ा हो गया

 

ज्ञान वाला यहाँ हारता

मूर्ख बाजी यहाँ मारता

मार देता वही साँच को    

झूठ का वेष जो धारता   

 

आज का  हाल क्या हो रहा

क्यूँ युवा देश का खो रहा

सूखती पौध आशा भरी

मूल में क्या नशा बो रहा

 

सोचता है युवा क्यूँ पढूँ

है कहाँ राह आगे बढूँ

हो न पूरे यहाँ जो…

Continue

Added by rajesh kumari on July 18, 2016 at 9:09pm — 12 Comments

मेरी जान

मेरी जान

बनकर दुल्हन

बनी ठनी 

सजी संवरी

मृदु मुस्कान

भर चली ।

मेरी लाडो

बन दुल्हन

घर चली | 

वीरान आँगन

वो मेरा

कर चली ।

मेरी जान

अपने सजन की 

हो चली ।

घर बाबुल का 

पीछे छोड़ 

चल पड़ी…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 18, 2016 at 8:30pm — 8 Comments

दुश्मन नए मिले.

२२१  २१२१ १२२१ २१२

 

जब छीनने छुडाने के साधन नए मिले

हर मोड़ पर कई-कई सज्जन नए मिले

 

कुछ दूर तक गई भी न थी राह मुड़ गई

जिस राह पर फूलों भरे गुलशन नए मिले

 

काँटों से खेलता रहा कैसा जुनून था

उफ़! दोस्तों की शक्ल में दुश्मन नए मिले

 

जितने भी काटता गया जीवन के फंद वो  

उतने ही जिंदगी उसे बंधन नए मिले

 

अपनों से दूर कर न दे उनका मिज़ाज भी  

गलियों से अब जो गाँव की आँगन नए…

Continue

Added by Ashok Kumar Raktale on July 18, 2016 at 2:00pm — 19 Comments

दोहे : सतविन्द्र कुमार

दोहे



जग से ईर्ष्या क्यों करें,क्यों हो कोई होड़

सबकी अपनी राह है,दौड़ें या दें छोड़।।



प्रेम-प्रीत की रीत से,जग को लेते जीत

ईर्ष्या व बुरी भावना, रखती है भयभीत।



जिसको कोई चाहता ,वह ही उसका मीत

स्नेह-प्रेम के जोर से,बने हार भी जीत।।



ठाले बैठे क्यों रहें, कर लें कुछ तो काम

ईर्ष्या जाती यूँ उपज,कर देती बदनाम।



सबकुछ उनके पास है,हम ही हैं कंगाल

बैठे खाली सोचते,कैसे आए माल।।



सोच-सोच कर मन मुआ,विचलित हुआ… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 18, 2016 at 11:30am — 9 Comments

घुमावदार प्रश्न -- ( लघु-कथा ) -- डॉo विजय शंकर

अधिकारी - सर , इस बार पब्लिक ने जो प्रश्न उठाया है , वह बड़ा घुमावदार है। कोई हल मिल नहीं रहा है।
माननीय नेता जी - फिर तो बड़ा अच्छा है , हम भी उसे घुमाते रहेंगे। घुमाते-घुमाते उसे ही घुमा देंगे।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on July 18, 2016 at 10:54am — 4 Comments

राम-रावण कथा (पूर्व पीठिका) 23

कल से आगे ...



‘‘महर्षि प्रणाम स्वीकार करें।’’ महर्षि अगस्त्य के आश्रम में प्रवेश करते हुये इंद्र ने कहा।

‘‘देवेंद्र को क्या आशीर्वाद दूँ मैं ?’’ अगस्त्य ने हँसते हुये कहा ‘‘देवेन्द्र के सौभाग्य से तो सारा विश्व पहले ही ईष्र्या करता है।’’

‘‘क्या गजब करते हैं मुनिवर ! इस समय तो इंद्र को आपके आशीर्वाद की सर्वाधिक आवश्यकता है। इस समय यह कृपणता, दया करें, इस समय भरपूर आशीर्वाद दें।’’

‘‘ महर्षि गौतम के साथ ऐसा घात करने के बाद भी जो विश्व में पूजनीय है भला उसे अगस्त्य के…

Continue

Added by Sulabh Agnihotri on July 18, 2016 at 9:00am — 3 Comments

तज़मींन बर तजमींन

मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन



"तज़मीन बर तजमीन समर कबीर साहिब बर ग़ज़ल हज़रत सय्यद रफ़ीक़ अहमद "क़मर" उज्जैनी साहिब"







कोई पूछे ज़रा हमसे कि क्या क्या हमने देखा है

सुलगता शह्र औ' बिखरा वो कुनबा हमने देखा है

नया तुम दौर ये देखो पुराना हमने देखा है

"ख़ज़ाँ देखी कभी मौसम सुहाना हमने देखा है

अँधेरा हमने देखा है,उजाला हमने देखा है

फ़सुर्दा गुल कली का मुस्कुराना हमने देखा है"

"ग़मों की रात ख़ुशियों का सवेरा हमने देखा है

हमें… Continue

Added by shree suneel on July 18, 2016 at 2:00am — 9 Comments

अमन की राह--

थक गए थे जलील चचा, कोई भी उनकी बात सुनने को तैयार नहीं था| सबको बस एक ही बात समझ आ रही थी कि बड़ी बड़ी बंदूकें उठाओ और हर उस शख्श को रास्ते से हटा दो जो उनकी बात नहीं माने| पता नहीं ये उन भड़काऊ तकरीरों का असर था या उनके द्वारा दिखाए गए प्रलोभन का असर| आज उनको बेहद अफ़सोस हो रहा था, अपने ऊपर और पत्नी के ऊपर भी जो उनको अकेला छोड़कर जन्नत सिधार गयी थी| काश उनको एक औलाद दे गयी होती तो कम से कम उसे तो सही रास्ते पर चला पाते|

आज शाम की मीटिंग में फिर से सबने उनके शांति और सौहार्द के प्रस्ताव को…

Continue

Added by विनय कुमार on July 17, 2016 at 3:23pm — 8 Comments

सावन गीत (उल्लाला छंद)/सतविन्द्र कुमार

क्यों अब तक सोये पड़े, सुनों पवन संगीत जी

झम झम झम बूँदें गिरें,गर्मी बनती शीत जी।



उमस बढ़ी जब जोर से,जिस्म पसीना सालता

दम घुट-घुट कर आ रहा,मुश्किल में ये डालता

राहत औ ठंडक मिले,सो बरखा से प्रीत जी

झम झम झम बूँदें गिरें,गर्मी बनती शीत जी।



धान-कटोरा सूखता,बिन पानी के मेल से

कृषक सभी उकता गए,लुक-छिप के इस खेल से

बादल अब जाओ बरस,करो नहीं भयभीत जी

झम झम झम बूँदें गिरें,गर्मी बनती शीत जी।



सावन भी यह टीसता, बिन बरखा के साथ के

अब… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 17, 2016 at 12:00pm — 4 Comments

राम-रावण कथा (पूर्व पीठिका) 22

कल से आगे ........



समय का चक्र अपनी गति से चलता रहा।



महाराज दशरथ पिता बन गये। बड़ी रानी कौशल्या ने पुत्र को जन्म दिया। दशरथ का मन खुशी से नाचने लगा। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि अपना उल्लास कैसे व्यक्त करें। उनका बस चलता तो वे मुकुट आदि सारे राजकीय आडम्बरों को एक ओर रखकर नाचते, गाते, चिल्लाते अयोध्या की सड़कों पर निकल जाते और एक-एक आदमी को पकड़ कर उसे यह शुुभ समाचार सुनाते। पर हाय री पद की मर्यादा ! वे ऐसा नहीं कर सकते थे। फिर भी अयोध्या का कोष खोल दिया गया था। पूरी पुरी…

Continue

Added by Sulabh Agnihotri on July 17, 2016 at 10:26am — 1 Comment

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service