For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

September 2015 Blog Posts (160)

ग़ज़ल- तुम मिले तो धडकनों में फिर रवानी सी लगी।

2122 2122 2122 212



तुम मिले तो धडकनों में फिर रवानी सी लगी।

तुम मिले तो जिन्दगानी जिन्दगानी सी लगी।



तुम मिले तो आज ये दुनिया सुहानी सी लगी।

तुम मिले तो सच मुहब्बत जाविदानी सी लगी।



तुम मिले तो दिल के हर इक मोड पर खुशियाँ सजी।

तुम मिले तो साँस सुख की राजधानी सी लगी।



तुम मिले तो प्यार का हर एक किस्सा दिलरुबा।

मुझको अपनी और तेरी ही कहानी सी लगी।



जब तुम्हें पहली दफा देखा मेरे जज्बात ने।

तुम कोई पिछले जनम की जानी जानी सी… Continue

Added by Rahul Dangi Panchal on September 7, 2015 at 2:30pm — 14 Comments

जाता नहीं अब कोई भी दर्द दवा लेकर (ग़ज़ल)

(221 1222 221 1222)

जाता नहीं अब कोई भी दर्द दवा लेकर..

ज़ख्मों को भरा दिल के,यादों का नशा लेकर..

-

अब तक न मेरे फ़न को पहचान सके हैं जो,

फिर बाद में ढूंढेंगे वो मुझको दिया लेकर..

-

फीके सभी पकवानों के स्वाद हो जाते हैं,

खाता है नमक रोटी, जब भी वो मज़ा लेकर..

-

खोले खिड़की बैठा मैं देख रहा रस्ता,

शायद पहुँचे, कोई पैगाम हवा लेकर..

-

न ढूंढ सकेगा सारी उम्र खुदा को 'जय',

फिर बोल करेगा क्या, तू उसका पता…

Continue

Added by जयनित कुमार मेहता on September 6, 2015 at 11:53pm — 10 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
ब्राह्मणवाद (अतुकान्त) // --सौरभ

अतिशय उत्साह

चाहे जिस तौर पर हो 

परपीड़क ही हुआ करता है 

आक्रामक भी. 

 

व्यावहारिक उच्छृंखलता वायव्य सिद्धांतों का प्रतिफल है 

यही उसकी उपलब्धि है 

जड़हीनों को…

Continue

Added by Saurabh Pandey on September 6, 2015 at 7:30pm — 31 Comments

गजल(मनन)

हर तरफ आखिर हँसी छा गयी है

आज कौवे को चिड़ी भा गयी है।



काँव कितनी बार करता रहा वह,

ठाँव उसके आज मैना गयी है।



टक लगा बगुला रहा था कभी से,

चोंच मछली एक छलक आ गयी है।



देख वंशी है लगी हो कहीं कुछ,

लोग बोलें टोना' ले जा गयी है।



साँढ़ बूढ़ा कुलबुलाया शहर में,

देख बछिया खुद अचंभा गयी है।



विश्व-जय सी हो गयी तो अभी है

कंत-घर अमृत नवोढ़ा गयी है।



बाग़ में बुलबुल अभी गा रही थी,

क्यूँ न जाने चुप हवा छा गयी…

Continue

Added by Manan Kumar singh on September 6, 2015 at 7:30pm — 5 Comments

गरीब /लघुकथा /कान्ता राॅय

" पापा , हम गरीब क्यों है ? "

" नहीं बेटा हम गरीब कहाँ .... देखो तो ....तुम शहर के सबसे बडे़ स्कूल में जो पढते हो ! " बेटे को दुलारते हुए पिता ने गोद में बिठा लिया ।

"लेकिन पापा , मेरे दोस्त कहते है कि मै गरीब हूँ । " बच्चे का मन बेहाल सा था ।

" क्यूँ कहते है तुम्हें वो गरीब ... अभी तो ...उस दिन तुम्हारे जन्मदिन पर शानदार दावत दी तुम्हारे दोस्तों को ! " पिता मन को कड़ा कर रहे थे ।

" तभी तो कहा ! उस दिन हमारे घर आने से ही तो उनको मालूम हुआ की हम गरीब है । वो कहते है कि…

Continue

Added by kanta roy on September 6, 2015 at 7:00pm — 13 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मेरी भी दास्ताँ समझे कोई

1222 1222 12
मेरी भी दास्ताँ समझे कोई
मुझे इंसाँ यहाँ समझे कोई

मुहब्बत में तनाफ़ुर ढूँढ ले
मुझे फिर हमज़बाँ समझे कोई

दिखाता हूँ उजालों की तरफ़
ये कोशिश रायगाँ समझे कोई

मुझे भी दर्द होता है बहुत
तड़प मेरी कहाँ समझे कोई

जला के निकला हूँ इक शम्अ मैं
मगर आतिश-फिशाँ समझे कोई

(रायगाँ= व्यर्थ, आतिश-फिशाँ= ज्वालामुखी)

मौलिक व अप्रकाशित

Added by शिज्जु "शकूर" on September 6, 2015 at 2:47pm — 5 Comments

पाखण्डी समाज (कहानी)

सांझ का समय था. किसनलाल अपने बेलों को चारा खिलाने में मग्न था. मंद-मंद पूरबा चल रही थी. कुछ पल के लिए वह ठिठक गया और कमर सीधी करते हुए नथुना फूलाकर इधर-उधर सर घुमाते हुए कुछ पयान करने लगा. जोर-जोर से वह सांसें भर रहा था, सीआईडी कुत्ते की तरह जैसे किसी चीज का सुराग खोज रहे हो. हाँ, वह सुराग ही खोज रहा था. बासमती चावल की खीर की सुगंध का सुराग. खीर की सुगंध आ कहां से रही थी इसका अंदाजा लगाने का वह भरसक प्रयास कर रहा था.…

Continue

Added by Govind pandit 'swapnadarshi' on September 6, 2015 at 11:00am — No Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी ,,,,,,,

2122  2122  2122  212

यार मेरे आज फिर से दिल दुखाने आ गए

इस बहाने वो चलो मिलने मिलाने आ गए

जब कभी परदेश में  मुझको सताया यादों ने

साथ देने दादी के किस्से सुहाने आ गए

बोझ से लगते हैं उनको आज बूढ़े माँ-पिता

जेब में  बच्चों के जब भी चार आने आ गए

पढ़ किताबें शहर से जब गाँव आया तो मुझे

बस अना से दूर रहना सब बताने आ गए

कर चुका मैं मय से तौबा फिर हुआ ऐसा यहाँ

हुश्न वाले आँखों से मुझको पिलाने…

Continue

Added by gumnaam pithoragarhi on September 6, 2015 at 9:17am — 5 Comments


प्रधान संपादक
गुरु गोविन्द (लघुकथा) - शिक्षक दिवस पर विशेष

"देख ली अपने चेले की करतूत?" वयोवृद्ध शायर के सामने एक पत्रिका को लगभग फेंकते हुए एक समकालीन ने कहा। 

"क्या हो गया भाई ? इतना भड़क क्यों रहे हो ?"

"इसमें अपने चेले का आलेख पढ़िए ज़रा।" 

"कैसा आलेख है?"

"आपकी ग़ज़लों में नुक्स निकाले हैं उसने इस पत्रिका में, आपकी ग़ज़लों में। मैं कहता था न कि मत सिखाओ ऐसे कृतघ्न लोगों को?" 

समकालीन बोले जा रहे थे, किन्तु वयोवृद्ध शायर बड़ी तल्लीनता से आलेख पढ़ने में व्यस्त थे। 

"देख लिया न? अब बताइए, क्या मिला आपको ऐसे लोगों…

Continue

Added by योगराज प्रभाकर on September 5, 2015 at 5:19pm — 19 Comments

ग़ज़ल

२ १ २ २ १ १ २ २ १ १ २ २ २ २

याद तेरी को ऐसे दिल में छुपा रक्खा है 

राह जिस पे चले उस को भी भूला रक्खा है 

लोग सो जाए हमें नींद न आती है अब ,

रात कैसा तेरा अब साथ निभा रक्खा है 

क्यूँ बता दी हमें उसकी ये कहानी तुमने ,

जो  रहा…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on September 5, 2015 at 4:30pm — 4 Comments

हस्ताक्षर

उकेर दिया है

समय की रेत पर

अपना हस्ताक्षर.

जानता हूँ

ख़त्म हो जाएगा

रेत के बिखराव से

मेरा वज़ूद.

संभावना यह भी

किसी संकुचन क्रियावश

घनीभूत हो रेत

प्रस्तर बन जाय .

तब देख पाओगे

खंडित होने तक

मेरा हस्ताक्षर.

कुच्छ भी तो नहीं है

अनंत.

(विजय प्रकाश)

मौलिक व अप्रकाशित

Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on September 5, 2015 at 1:30pm — 12 Comments

शिक्षा का महत्त्व --- डॉo विजय शंकर

"यार , शिक्षा , आई मीन , एजुकेशन , है बड़ी इम्पॉर्टेंट चीज़।"
"अच्छा तुझे भी टीचर्स डे पर ही शिक्षा याद आ रही है "
"हाँ यार , गागर में सागर भर देती है , सागर से मोती निकालना सिखा देती है। "
"ठीक कहते हो यार, पर लगता नहीं यार कि हमारे यहां तो लोग पढ़ कर या तो सागर पार चले जाते हैं ,
या फिर इस पार रेत माफिया जैसे बन कर रह जाते हैं। "
"तुम्हारा मतलब सागर में उतरता कोई नहीं। "

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on September 5, 2015 at 11:30am — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
बता क्या होगा?-- ग़ज़ल -- (मिथिलेश वामनकर)

2122—1122—1122—22

 

मेरी नींदों को सताने से बता क्या होगा?

इस तरह ख़ाब में आने से बता क्या होगा?

 

आज अहसास का सागर जो कहीं गुम यारों  …

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 10:00am — 24 Comments

तो क्या ? (लघुकथा) शिक्षक दिवस पर विशेष

"बहू, पेपर पढ़ा आज का ? एक तरफ द्रोणाचार्य पुरस्कार पाने वाले शिक्षकों के बारे में लिखा है ,वहीँ दूसरी तरफ एक दूसरे गुरूजी  की महिमा मंडिता है I ये महाशय अपने शिष्यों से दूसरों  के खेतों से सब्जी और भुट्टे  चोरी  करवा के मंगवाते हैं " दादाजी भुनभुना रहे थे I

"ये तो कुछ भी नहीं है बाबूजी Iआजकल के टीचर्स के बारे में कितनी बातें पढने में आती हैं ,जिन्हें पढ़कर सिर शर्म से झुक जाता है "बहू ने अपना ज्ञान जोड़ा I

"तो क्या हो गया दादाजी ?"  ये 17..18 वर्ष का पोता थाI

"क्या हो गया…

Continue

Added by pratibha pande on September 5, 2015 at 9:00am — 16 Comments

चलो! दुआ ये अभी बैठकर /श्री सुनील

1212 1122 1212 22/112



चलो! दुआ ये अभी बैठकर ख़ुदा से करें

कुछेक मुश्किलों के हल तो अब दुआ से करें.



वो अम्नो चैन यहाँ यूँ बह़ाल हों शायद

ख़िरद से काम लें गर बात क़ाइदा से करें.



अ़जीब नस्ल के इस दर्द पे कहा ये तबीब

अब ऐसे दर्द का दरमां भी किस दवा से करें.



ख़ुदा है सबपे, अगर सच यही है तो ऐ दिल!

चराग़ तू तो जला, बात क्या हवा से करें.



वो ख़ुशनिहाद है, ख़ुशदिल है, ख़ुशज़बाँ है तो

अब ऐसे शख्स का पैमाई किस उला से…

Continue

Added by shree suneel on September 5, 2015 at 1:00am — 6 Comments

ग़ज़ल :- थक गया मैं

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा



समझा समझा कर हरजाई थक गया मैं

दुनिया फिर भी समझ न पाई थक गया मैं



मेरे घर में पाँव न रक्खा ख़ुशियों ने

बजा बजा कर ये शहनाई थक गया मैं



पूरा करते करते सात सवालों को

कहता है अब हातिम ताई थक गया मैं



जाहिल आक़िल को तस्लीम नहीं करते

करते करते उनसे लड़ाई थक गया मैं



मेरी बुराई करते करते आज तलक

थक न पाई सारी ख़ुदाई थक गया मैं



मैंने सबसे मिलना जुलना छोड़ दिया

दरवाज़े पर लिख दो भाई थक… Continue

Added by Samar kabeer on September 4, 2015 at 10:00pm — 23 Comments

बचत (लघुकथा)

अन्य  दिनों की अपेक्षा , सुमेर के चेहरे पर तनाव की जगह संतोष झलक रहा था . उनके मन में पत्नी के प्रति क्रतज्ञता के भाव बार - बार उभर कर , शब्दों के माध्यम से निकलना चाहते थे . " बहुत बार तुम जटिल सिचुऐशन को भी बड़े अच्छे से टेकल कर लेती हो . मुझे जरा भी उम्मीद नहीं थी कि इस मामले में इतनी आसानी से सफलता मिल जाएगी .वरना भागीरथ - बाबू ने तो डरा ही दिया था .”  खाने की थाली में चपाती की मांग के साथ उसने  पत्नी की तारीफ़ की . 

 " लो यह क्या बात हुई , जी ! हम उस पुलिसीए को कुछ दे ही रहे…

Continue

Added by सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा on September 4, 2015 at 9:00pm — 5 Comments

यादों के दरीचों में .....

यादों के दरीचों में .....

सच, तुम्हारी कसम

उस वक्त तुम बहुत याद आये थे

जब सावन की पहली बूँद

मेरी ज़ुल्फ़ों से झगड़ा करके

मेरे रुखसारों पर

फिसलने की ज़िद करने लगी

सबा को भी उस वक्त

मेरी ज़ुल्फ़ों से

छेड़खानी करने की ज़िद थी

इस छेड़खानी में कभी बूंदें

रेतीली ज़मीन पर गिर कर

अपना अस्तित्व खो देती थी

तो कभी पलकों की चिलमन पर

सज के बैठ जाती थी

कभी हौले से

रुख़्सार पर फिसलती हुई

मेरी ठोडी पर

किसी को प्यार के…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 4, 2015 at 8:13pm — 10 Comments

मित्रता की परिभाषा (लघुकथा)

काम से शहर आते वक्त धीरज ने मोतीचूर के लड्डू भी ले लिए अपने कमिश्नर हो चुके बचपन के मित्र नील के लिए । उत्साह भरे कदमों से जैसे ही बंगले में कदम रखा कि गार्ड ने रोक लिया । गार्ड के रोके जाने के बाद भी उसे उम्मीद थी कि उसका नाम सुनते ही नील दौड़ा आयेगा लेकिन गार्ड की नजरों के गहरे भाव नें मित्र की व्यस्तता की सूचना के साथ ही वो भ्रम भी तोड़ दिया। 

लड्डू के डिब्बे पर नजर गई तो वो सकुचा उठा ।गार्ड मानों उसे ताड़ चुका था ।

"साहब तो काजू कतली के सिवा कोई मिठाई नहीं खाते है । "

"ओह…

Continue

Added by jyotsna Kapil on September 4, 2015 at 4:30pm — 15 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
इसी तरह से ग़ज़ल हुई है -- (ग़ज़ल) -- मिथिलेश वामनकर

121-22---121-22---121-22---121-22

 

मेरी पुरानी जो वेदना थी वो आज थोड़ी सबल हुई है

ज़रा सी फिर आँख डबडबाई इसी तरह से ग़ज़ल हुई है

 

खुदा के अपने ये…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on September 4, 2015 at 10:00am — 30 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service