Added by Rahul Dangi Panchal on September 7, 2015 at 2:30pm — 14 Comments
(221 1222 221 1222)
जाता नहीं अब कोई भी दर्द दवा लेकर..
ज़ख्मों को भरा दिल के,यादों का नशा लेकर..
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अब तक न मेरे फ़न को पहचान सके हैं जो,
फिर बाद में ढूंढेंगे वो मुझको दिया लेकर..
-
फीके सभी पकवानों के स्वाद हो जाते हैं,
खाता है नमक रोटी, जब भी वो मज़ा लेकर..
-
खोले खिड़की बैठा मैं देख रहा रस्ता,
शायद पहुँचे, कोई पैगाम हवा लेकर..
-
न ढूंढ सकेगा सारी उम्र खुदा को 'जय',
फिर बोल करेगा क्या, तू उसका पता…
Added by जयनित कुमार मेहता on September 6, 2015 at 11:53pm — 10 Comments
अतिशय उत्साह
चाहे जिस तौर पर हो
परपीड़क ही हुआ करता है
आक्रामक भी.
व्यावहारिक उच्छृंखलता वायव्य सिद्धांतों का प्रतिफल है
यही उसकी उपलब्धि है
जड़हीनों को…
ContinueAdded by Saurabh Pandey on September 6, 2015 at 7:30pm — 31 Comments
हर तरफ आखिर हँसी छा गयी है
आज कौवे को चिड़ी भा गयी है।
काँव कितनी बार करता रहा वह,
ठाँव उसके आज मैना गयी है।
टक लगा बगुला रहा था कभी से,
चोंच मछली एक छलक आ गयी है।
देख वंशी है लगी हो कहीं कुछ,
लोग बोलें टोना' ले जा गयी है।
साँढ़ बूढ़ा कुलबुलाया शहर में,
देख बछिया खुद अचंभा गयी है।
विश्व-जय सी हो गयी तो अभी है
कंत-घर अमृत नवोढ़ा गयी है।
बाग़ में बुलबुल अभी गा रही थी,
क्यूँ न जाने चुप हवा छा गयी…
Added by Manan Kumar singh on September 6, 2015 at 7:30pm — 5 Comments
" पापा , हम गरीब क्यों है ? "
" नहीं बेटा हम गरीब कहाँ .... देखो तो ....तुम शहर के सबसे बडे़ स्कूल में जो पढते हो ! " बेटे को दुलारते हुए पिता ने गोद में बिठा लिया ।
"लेकिन पापा , मेरे दोस्त कहते है कि मै गरीब हूँ । " बच्चे का मन बेहाल सा था ।
" क्यूँ कहते है तुम्हें वो गरीब ... अभी तो ...उस दिन तुम्हारे जन्मदिन पर शानदार दावत दी तुम्हारे दोस्तों को ! " पिता मन को कड़ा कर रहे थे ।
" तभी तो कहा ! उस दिन हमारे घर आने से ही तो उनको मालूम हुआ की हम गरीब है । वो कहते है कि…
Added by kanta roy on September 6, 2015 at 7:00pm — 13 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on September 6, 2015 at 2:47pm — 5 Comments
सांझ का समय था. किसनलाल अपने बेलों को चारा खिलाने में मग्न था. मंद-मंद पूरबा चल रही थी. कुछ पल के लिए वह ठिठक गया और कमर सीधी करते हुए नथुना फूलाकर इधर-उधर सर घुमाते हुए कुछ पयान करने लगा. जोर-जोर से वह सांसें भर रहा था, सीआईडी कुत्ते की तरह जैसे किसी चीज का सुराग खोज रहे हो. हाँ, वह सुराग ही खोज रहा था. बासमती चावल की खीर की सुगंध का सुराग. खीर की सुगंध आ कहां से रही थी इसका अंदाजा लगाने का वह भरसक प्रयास कर रहा था.…
ContinueAdded by Govind pandit 'swapnadarshi' on September 6, 2015 at 11:00am — No Comments
2122 2122 2122 212
यार मेरे आज फिर से दिल दुखाने आ गए
इस बहाने वो चलो मिलने मिलाने आ गए
जब कभी परदेश में मुझको सताया यादों ने
साथ देने दादी के किस्से सुहाने आ गए
बोझ से लगते हैं उनको आज बूढ़े माँ-पिता
जेब में बच्चों के जब भी चार आने आ गए
पढ़ किताबें शहर से जब गाँव आया तो मुझे
बस अना से दूर रहना सब बताने आ गए
कर चुका मैं मय से तौबा फिर हुआ ऐसा यहाँ
हुश्न वाले आँखों से मुझको पिलाने…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on September 6, 2015 at 9:17am — 5 Comments
"देख ली अपने चेले की करतूत?" वयोवृद्ध शायर के सामने एक पत्रिका को लगभग फेंकते हुए एक समकालीन ने कहा।
"क्या हो गया भाई ? इतना भड़क क्यों रहे हो ?"
"इसमें अपने चेले का आलेख पढ़िए ज़रा।"
"कैसा आलेख है?"
"आपकी ग़ज़लों में नुक्स निकाले हैं उसने इस पत्रिका में, आपकी ग़ज़लों में। मैं कहता था न कि मत सिखाओ ऐसे कृतघ्न लोगों को?"
समकालीन बोले जा रहे थे, किन्तु वयोवृद्ध शायर बड़ी तल्लीनता से आलेख पढ़ने में व्यस्त थे।
"देख लिया न? अब बताइए, क्या मिला आपको ऐसे लोगों…
ContinueAdded by योगराज प्रभाकर on September 5, 2015 at 5:19pm — 19 Comments
२ १ २ २ १ १ २ २ १ १ २ २ २ २
याद तेरी को ऐसे दिल में छुपा रक्खा है ।
राह जिस पे चले उस को भी भूला रक्खा है ।
लोग सो जाए हमें नींद न आती है अब ,
रात कैसा तेरा अब साथ निभा रक्खा है ।
क्यूँ बता दी हमें उसकी ये कहानी तुमने ,
जो रहा…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on September 5, 2015 at 4:30pm — 4 Comments
उकेर दिया है
समय की रेत पर
अपना हस्ताक्षर.
जानता हूँ
ख़त्म हो जाएगा
रेत के बिखराव से
मेरा वज़ूद.
संभावना यह भी
किसी संकुचन क्रियावश
घनीभूत हो रेत
प्रस्तर बन जाय .
तब देख पाओगे
खंडित होने तक
मेरा हस्ताक्षर.
कुच्छ भी तो नहीं है
अनंत.
(विजय प्रकाश)
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on September 5, 2015 at 1:30pm — 12 Comments
"यार , शिक्षा , आई मीन , एजुकेशन , है बड़ी इम्पॉर्टेंट चीज़।"
"अच्छा तुझे भी टीचर्स डे पर ही शिक्षा याद आ रही है "
"हाँ यार , गागर में सागर भर देती है , सागर से मोती निकालना सिखा देती है। "
"ठीक कहते हो यार, पर लगता नहीं यार कि हमारे यहां तो लोग पढ़ कर या तो सागर पार चले जाते हैं ,
या फिर इस पार रेत माफिया जैसे बन कर रह जाते हैं। "
"तुम्हारा मतलब सागर में उतरता कोई नहीं। "
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Dr. Vijai Shanker on September 5, 2015 at 11:30am — 6 Comments
2122—1122—1122—22 |
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मेरी नींदों को सताने से बता क्या होगा? |
इस तरह ख़ाब में आने से बता क्या होगा? |
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आज अहसास का सागर जो कहीं गुम यारों … |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 5, 2015 at 10:00am — 24 Comments
"बहू, पेपर पढ़ा आज का ? एक तरफ द्रोणाचार्य पुरस्कार पाने वाले शिक्षकों के बारे में लिखा है ,वहीँ दूसरी तरफ एक दूसरे गुरूजी की महिमा मंडिता है I ये महाशय अपने शिष्यों से दूसरों के खेतों से सब्जी और भुट्टे चोरी करवा के मंगवाते हैं " दादाजी भुनभुना रहे थे I
"ये तो कुछ भी नहीं है बाबूजी Iआजकल के टीचर्स के बारे में कितनी बातें पढने में आती हैं ,जिन्हें पढ़कर सिर शर्म से झुक जाता है "बहू ने अपना ज्ञान जोड़ा I
"तो क्या हो गया दादाजी ?" ये 17..18 वर्ष का पोता थाI
"क्या हो गया…
ContinueAdded by pratibha pande on September 5, 2015 at 9:00am — 16 Comments
1212 1122 1212 22/112
चलो! दुआ ये अभी बैठकर ख़ुदा से करें
कुछेक मुश्किलों के हल तो अब दुआ से करें.
वो अम्नो चैन यहाँ यूँ बह़ाल हों शायद
ख़िरद से काम लें गर बात क़ाइदा से करें.
अ़जीब नस्ल के इस दर्द पे कहा ये तबीब
अब ऐसे दर्द का दरमां भी किस दवा से करें.
ख़ुदा है सबपे, अगर सच यही है तो ऐ दिल!
चराग़ तू तो जला, बात क्या हवा से करें.
वो ख़ुशनिहाद है, ख़ुशदिल है, ख़ुशज़बाँ है तो
अब ऐसे शख्स का पैमाई किस उला से…
Added by shree suneel on September 5, 2015 at 1:00am — 6 Comments
Added by Samar kabeer on September 4, 2015 at 10:00pm — 23 Comments
अन्य दिनों की अपेक्षा , सुमेर के चेहरे पर तनाव की जगह संतोष झलक रहा था . उनके मन में पत्नी के प्रति क्रतज्ञता के भाव बार - बार उभर कर , शब्दों के माध्यम से निकलना चाहते थे . " बहुत बार तुम जटिल सिचुऐशन को भी बड़े अच्छे से टेकल कर लेती हो . मुझे जरा भी उम्मीद नहीं थी कि इस मामले में इतनी आसानी से सफलता मिल जाएगी .वरना भागीरथ - बाबू ने तो डरा ही दिया था .” खाने की थाली में चपाती की मांग के साथ उसने पत्नी की तारीफ़ की .
" लो यह क्या बात हुई , जी ! हम उस पुलिसीए को कुछ दे ही रहे…
ContinueAdded by सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा on September 4, 2015 at 9:00pm — 5 Comments
यादों के दरीचों में .....
सच, तुम्हारी कसम
उस वक्त तुम बहुत याद आये थे
जब सावन की पहली बूँद
मेरी ज़ुल्फ़ों से झगड़ा करके
मेरे रुखसारों पर
फिसलने की ज़िद करने लगी
सबा को भी उस वक्त
मेरी ज़ुल्फ़ों से
छेड़खानी करने की ज़िद थी
इस छेड़खानी में कभी बूंदें
रेतीली ज़मीन पर गिर कर
अपना अस्तित्व खो देती थी
तो कभी पलकों की चिलमन पर
सज के बैठ जाती थी
कभी हौले से
रुख़्सार पर फिसलती हुई
मेरी ठोडी पर
किसी को प्यार के…
Added by Sushil Sarna on September 4, 2015 at 8:13pm — 10 Comments
काम से शहर आते वक्त धीरज ने मोतीचूर के लड्डू भी ले लिए अपने कमिश्नर हो चुके बचपन के मित्र नील के लिए । उत्साह भरे कदमों से जैसे ही बंगले में कदम रखा कि गार्ड ने रोक लिया । गार्ड के रोके जाने के बाद भी उसे उम्मीद थी कि उसका नाम सुनते ही नील दौड़ा आयेगा लेकिन गार्ड की नजरों के गहरे भाव नें मित्र की व्यस्तता की सूचना के साथ ही वो भ्रम भी तोड़ दिया।
लड्डू के डिब्बे पर नजर गई तो वो सकुचा उठा ।गार्ड मानों उसे ताड़ चुका था ।
"साहब तो काजू कतली के सिवा कोई मिठाई नहीं खाते है । "
"ओह…
Added by jyotsna Kapil on September 4, 2015 at 4:30pm — 15 Comments
121-22---121-22---121-22---121-22 |
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मेरी पुरानी जो वेदना थी वो आज थोड़ी सबल हुई है |
ज़रा सी फिर आँख डबडबाई इसी तरह से ग़ज़ल हुई है |
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खुदा के अपने ये… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 4, 2015 at 10:00am — 30 Comments
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