गमजदा लोग ये ऐसा कमाल कर देंगे
इतना रोयेंगे के हँसना मुहाल कर देंगे
झूठ कहने में उन्हें इस कदर महारत है
के सजर को भी वो तो नौ निहाल कर देंगे
कैसे हैं आज के बच्चे कहें भी क्या उनको
इक जबाब आता नहीं सौ सवाल कर देंगे
है यकीं अपनी मुहब्बत पे इस कदर उनको
इश्क जब होगा सनम को जमाल कर देंगे
हैं हम आजाद हवा इन्कलाब लाने को
"दीप" को एक सुलगती मशाल कर देंगे
संदीप कुमार पटेल…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on November 11, 2013 at 2:30pm — 11 Comments
देश काल निमित्त की सीमाओं में जकड़े तुम
और तुम्हारे भीतर एक चिरमुक्त 'तुम'
-जिसे पहचानते हो तुम !
उस 'तुम' नें जीना चाहा है सदा
एक अभिन्न को-
खामोश मन मंथन की गहराइयों में
चिंतन की सर्वोच्च ऊचाइंयों में
पराचेतन की दिव्यता में.....
पूर्णत्वाकांक्षी तुम के आवरण में आबद्ध 'तुम'
क्या पहचान भी पाओगे
अभिन्न उन्मुक्त अव्यक्त को-
एक सदेह व्यक्त प्रारूप में......?
(मौलिक और…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on November 11, 2013 at 2:30pm — 39 Comments
Added by Poonam Shukla on November 11, 2013 at 2:00pm — 16 Comments
मुझको पता नहीं यह कैसे,गीत स्वयं लिख जाते हैं
कुछ भावों के बादल जैसे, उमड़-घुमड़ कर आते हैं
दिल में जन्म लिया शब्दों ने , बूँदें बन कर ज्यों बरसे
अंतर्मन से भाव निकल कर, गीतों में ढल जाते हैं
…
ContinueAdded by rajesh kumari on November 11, 2013 at 11:00am — 31 Comments
२१२२, २१२२, २१२
चाँद सूरज और सितारे आ गए,
ख्व़ाब में क्या क्या नज़ारे आ गए.
.
ख़ूब मौका डूबने का था मिला,
और हम फिर भी किनारे आ गए.
.
जब नज़र की बात नज़रों नें सुनी,
दरमियाँ क्या कुछ इशारे आ गए.
.
है समाई धडकनों में धडकनें,
पास वो इतने हमारे आ गए.
.
जब मिला ग़म या ख़ुशी कोई मिली,
आँखों में दो अश्क़ खारे आ गए.
.
मौलिक व अप्रकाशित
निलेश 'नूर'
Added by Nilesh Shevgaonkar on November 10, 2013 at 9:30pm — 22 Comments
देखे भाई दूज में, रिश्तो का संसार,
प्यारा भाई जा रहा,प्रिय बहना के द्वार
प्रिय बहना के द्वार,बोला खिलाओ खाना
भरकर ह्रदया नेह,प्यार से मुझे खिलाना
सदियों का इतिहास,भाई बहन के लेखे
आती भाई दूज, भाई बहन को देखे ||
(4)
सभी देव करते रहे, गौमाता में वास
खुशहाली मिलती रहे,गाय रखे यदि पास
गाय रखे यदि पास,न दूध दही का घाटा
बिना दही अरु दूध, शरीर रहे ये नाटा |
संतो का अनुरोध,गौ ह्त्या न करे कभी
ब्रहमा विष्णु…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 10, 2013 at 7:00pm — 14 Comments
!!! सत्य खुलकर पारदर्शी हो गई !!!
बह्र - 2122 2122 212
आज कल की धूप हल्की हो गई।
रंग बातें अब चुनावी हो गई।।
आईना तो खुद बड़ा जालिम यहां
सत्य खुल कर पारदर्शी हो गई।
प्यार का अहसास सुन्दर सांवरा,
दर्द बाबुल की कहानी हो गई।
जब कभी उम्मीद मुशिकल से जगे,
आस्था भी दूरदर्शी हो गई।
आईना को तोड़कर बोले खुदा,
श्वेत दाढ़ी आज पानी हो गई।
शोर है कलियुग यहां दानव हुआ,
साधु सन्तों सी…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 10, 2013 at 3:13pm — 26 Comments
वो हमें कब मिला है खुदा की तरह ।
जो रहा है सदा बन हवा की तरह ।
अब उसे कैसे पहचान वो पायेगा,
जो यहाँ बदलता है अदा की तरह ।
अब वही राह दिखाने आया है मुझे,
जो मेरा था कभी बेवफा की तरह।
वो क्या भर देगा खुशिय़ा दामन तेरे,
जिन का अपना रहा है खला की तरह।
हम भुलाया जमाने को जिस के लिये ,
साथ वो फिर क्यूँ है सज़ा की…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on November 10, 2013 at 1:30pm — 10 Comments
चाल बड़ी मनमोहक लागत, खेलत खात फिरै इतरावै !
लाल कपोल लगे उसके अरु ,होंठ कली जइसे मुसकावै !!
भाग रहा नवनीत लिये जब, मात पुकारत पास बुलावै !
नेह भरे अपने कर से फिर ,लाल दुलारत जात खिलावै !!
******************************************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 1:30pm — 28 Comments
चाँदनी छिटकी हुई पर मन मेरा खामोश है।
बेखबर इस रात में सारा जहाँ मदहोश है।
वक्त आगे भागता, जम से गये मेरे कदम,
हाँ, सहारा दे रहा तन्हाई का आगोश है।
हँस रहा चेह्रा मेरा तुम तो बस इतना जानते,
क्योंकि गम दिल संग सीने में ही परदापोश है।
माँगता मैं रह गया, दे दो बहारों कुछ मुझे,
अनसुना कर बढ़ गईं, इसका बड़ा आक्रोश है।
अब कहाँ रौनक बची "गौरव" उमंगों की यहाँ,
घट रहा साँसों सहित धड़कन का पल-पल जोश…
Added by कुमार गौरव अजीतेन्दु on November 10, 2013 at 9:30am — 28 Comments
स्वप्न विलक्षण:
स्मृतिओं की सुखद फुहारें
झिलमिलाती चाँदनी
की किरणों की झालरें
अनन्त तारिकाएँ
सपने में ... और सपने में साक्षात
तुम ... कब से
पूनों में, अमावस में, मध्य-रात्रि के सूने में
इस एक सपने से तुमने, मुझसे
रखा है अविरल अटूट संबंध
वरना स्मृति-पटल पर चन्द्र-किरण-सा
कभी प्रकाश-दीप-सा तैरता
यूँ लौट-लौट न आता ...
…
ContinueAdded by vijay nikore on November 10, 2013 at 6:30am — 34 Comments
पियें मोरी अखियाँ श्याम रूप रस को ।
कण कण में देखें अपने सरबस को ।
शीश मोर मुकुट गले पुष्प माला ।
बड़ो प्यारो लागे मेरा नन्द लाला ।
ललचाये दिल मेरा उनके दरस को |
पियें मोरी अखियाँ श्याम रूप रस को ।
रेशम सी बालों कि लट प्यारी प्यारी ।
चन्दा से मुखड़े पे घटा कारी कारी ।
होंठ छलकाते हैं मधुर मय रस को ।
पियें मोरी अखियाँ श्याम रूप रस को ।
एक हाथ वंशी है तो दूजे लकुटिया ।
मोहताज़ उनकी…
ContinueAdded by Neeraj Nishchal on November 9, 2013 at 10:51pm — 22 Comments
अंतस मन में विद्यमान हो,
तुम भविष्य हो वर्तमान हो,
मधुरिम प्रातः संध्या बेला,
प्रिये तुम तो प्राण समान हो....
अधर खिली मुस्कान तुम्हीं हो,
खुशियों का खलिहान तुम्हीं हो,
तुम ही ऋतु हो, तुम्हीं पर्व हो,
सरस सहज आसान तुम्हीं हो.
तुम्हीं समस्या का निदान हो,
प्रिये तुम तो प्राण समान हो....
पीड़ाहारी प्रेम बाम हो,
तुम्हीं चैन हो तुम्हीं अराम हो,
शब्दकोष तुम तुम्हीं व्याकरण,…
Added by अरुन 'अनन्त' on November 9, 2013 at 12:30pm — 28 Comments
Added by योगराज प्रभाकर on November 9, 2013 at 12:00pm — 23 Comments
बताशा लगती हो तुम
.
हिंदी के समान प्यारी, कोमल, सुरीली, मृदु,
घोले जो मिठास ऐसी भाषा लगती हो तुम,
जीवन में नीरसता, जैसे चहुँ ओर फैले,
तिमिर निराशाओं में आशा लगती हो तुम,…
ContinueAdded by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 9:30am — 34 Comments
अंजुमन प्रकाशन की नई पेशकश "ग़ज़ल के फ़लक पर - १"
(२०० युवा शाइरों का साझा ग़ज़ल संकलन)
पुस्तक परिचय
पुस्तक – ग़ज़ल के फ़लक पर - १
संपादक – राणा प्रताप सिंह
२०० शाइरों की ३-३ ग़ज़लें…
Added by वीनस केसरी on November 9, 2013 at 12:00am — 22 Comments
नव युवा हे ! चिर युवा तुम
उठो ! नव युग का निर्माण करो ।
जड़ अचेतन हो चुका जग,
तुम नव चेतन विस्तार करो ।
पथ भ्रष्ट लक्ष्य विहीन होकर
न स्व यौवन संहार करो ।
उठो ! नव युग का निर्माण करो ...............
दीन हीन संस्कार क्षीण अब
तुम संस्कारित युग संचार करो ।
अभिशप्त हो चला है भारत !!
उठो ! नव भारत निर्माण करो ।
नव युवा हे ! चिर युवा ..............................
गर्जन तर्जन ढोंगियों का
कर रहा मानव मन…
ContinueAdded by annapurna bajpai on November 8, 2013 at 7:00pm — 31 Comments
2122 2121 222
आप तो सचमुच कमाल करते हो
बेवफा होकर सवाल करते हो
जंग में तो हार जीत जायज है
हारने का क्यों मलाल करते हो
क्या हुआ जो बेवफा मुहब्बत थी
मुद्दतों से ही बवाल करते हो
.
पत्थरों के शह्र में बसर है तो
क्यों बिखरने का ख़याल करते हो
.
आदमी तो मर गया कभी से था
आत्मा को भी हलाल करते हो
उमेश कटारा
मौलिक एंव अप्रकाशित रचना
Added by umesh katara on November 8, 2013 at 7:00pm — 18 Comments
Added by Poonam Shukla on November 8, 2013 at 3:20pm — 17 Comments
बह्र : २१२ २१२ २१२ २१२
सूखते नल के आँसू टपकने लगे
देख छागल के आँसू टपकने लगे
भूख से चूक पत्थर गिरे याँ वहाँ
देखकर फल के आँसू टपकने लगे
था हवा की नज़र में तो बरसा नहीं
किंतु बादल के आँसू टपकने लगे
आइने ने कहा कुछ नहीं इसलिए
रात काजल के आँसू टपकने लगे
घास कुहरे से शब भर निहत्थे लड़ी
देख जंगल के आँसू टपकने लगे
----------
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 8, 2013 at 12:30pm — 15 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |