For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

December 2014 Blog Posts (179)

नव वर्ष शुभ हो --- डॉ o विजय शंकर

खुशियाँ, हम हर किसी से बाँट लेते हैं,

खुश भी हो लेते हैं।

गम किस से बांटे , सोंच नहीं पाते हैं ,

खुद ही सह लेते हैं।

फिर भी कुछ तो अपने ऐसे होते ही हैं ,

जो हमारे ग़मों को बाँट लेते हैं।

वो कुछ बहुत ख़ास अपने ही होते हैं।

जो दुःख में साथ होते हैं।

कितने ऐसे हैं जो दुखों को हमारे पास

आने नहीं देते हैं।

रास्ते में रोक लेते हैं,

खुद पे ले लेते हैं।

हम उन्हें जानते नहीं ,

पहचानते भी नहीं ,

वे सामने कभी आते नहीं,

नव वर्ष… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 31, 2014 at 11:24pm — 16 Comments

ग़ज़ल----क़भी सोचा नहीं मैंने ,तेरे रुख़सार से आगे

1222 1222 1222 1222

--------------------------------------------------

कोई चाहत नहीं मेरी ,तेरे इक़ प्यार से आगे

क़भी सोचा नहीं मैंने ,तेरे रुख़सार से आगे

---------

क़भी का जीत लेता मैं,ज़माने को मेरे दम पर

मग़र वो जीत मिलनी थी,तेरी इक हार से आगे

---------

हरिक ख़्वाहिश अधूरी है,इन्हे करदे मुकम्मल तू

क़भी तो आज़मा ले तू ,मुझे इनकार से आगे

---------

जमाने की हरिक़ खुशियाँ ,तेरे कदमों तले रख़ दूँ 

तेरा हर ख़्वाब हो जाऊँ,तेरे इक़रार से…

Continue

Added by umesh katara on December 31, 2014 at 8:20pm — 9 Comments

जीवन तो है एक नदी

कभी निकटता रिश्तों में ,

ज्यों सागर की गहराई !

कभी दूरियाँ अपनों में,

ज्यों अम्बर की ऊँचाई  !

 

कभी सहजता चुप्पी में,

कभी जटिलता बोली में !

कभी बर्फ मैं ज्वाला किंतु,

आंच नहीं अब होली मैं !

 

कहीं मोहब्बत की म्यानों में,

रखी बैर की शमशीरें !

कहीं इबारत उलटी यारों ,

जहाँ लिखी हैं तक़दीरें !

 

कहीं सत्य एक झंझट,

कही झूठ है सुलझा !

कहीं किसी ने जाल बिछाया

खुद ही आकर उलझा…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on December 31, 2014 at 7:30pm — 10 Comments

नवगीत : साल गुजरे जा रहे हैं.

**साल गुजरे जा रहे हैं.

आ रहे पल, जा रहे पल

साल गुजरे जा रहे हैं.

 

वक़्त बन के पाहुना,

आ गया है द्वार पर.

साज सज्जा वाद्य धुन.

गूंज मंगलचार घर.

नवल वधु से कुछ लजा,

दिन सुनहरे आ रहे हैं.

साल गुजरे जा रहे हैं.

 

बोझ बढ़ता नित नया.

स्कूल का बस्ता हुआ,

दाम बढ़ते माल के,

आदमी सस्ता हुआ.

नाम सुरसा का सुना जब,

आमजन भय खा रहे है.

साल गुजरे जा रहे हैं.

 

सूर्य भटका…

Continue

Added by harivallabh sharma on December 31, 2014 at 7:23pm — 16 Comments

नया सूरज नई आशा चलो इक बार फिर से

1222 1222 1222 122

नया सूरज नई आशा चलो इक बार फिर से 

शब-ए-ग़म में नया  किस्सा चलो इक बार फिर से 

तेरे पिंदार का दामन तसव्वुर थाम  लेगा 

तेरी यादें तेरा चर्चा चलो इक बार फिर से 

किसे हसरत बहारों की किसे चाहत चमन की 

वही जंगल वही सहरा चलो इक बार फिर से 

किसी पर तंज़िया पत्थर उछालेंगे न हरगिज 

यही ख़ुद से करें वादा चलो इक बार फिर से 

बुझेगी तिश्नगी अपनी शरारों से हमेशा 

निगलने आग का दरिया चलो…

Continue

Added by khursheed khairadi on December 31, 2014 at 11:00am — 13 Comments

काल ग्रास होकर(चोका)

मैं चौक गया
आईना देखकर
परख कर
अपनी परछाई
मुख में झुर्री
काली काली रेखाएं
आंखों के नीचे
पिचका हुआ गाल
हाल बेहाल
सिकुड़ी हुई त्वचा
कांप उठा मैं
नही नही मैं नही
झूठा आईना
है मेरे पिछे कौन
सोचकर मैं
पलट कर देखा
चौक गया मैं
अकेले ही खड़ा हूॅं
काल ग्रास होकर ।
.......................
मौलिक अप्रकाशित

Added by रमेश कुमार चौहान on December 31, 2014 at 10:30am — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - जमीं को कभी ये इज़ाज़त नहीं है

122 - 122 - 122 - 122 - 122 - 122 - 122 - 122 (16-रुक्नी)

---------------------------------------------------------------------------

गुजारिश नहीं है, नवाजिश नहीं है, इज़ाज़त नहीं है, नसीहत नहीं है

ज़माना हुआ है बड़ा बेमुरव्वत,  किसी को किसी की जरूरत नहीं है

 

किनारे दिखाई नहीं दे रहें है, चलो किश्तियों के जनाज़े उठा लें,

यहाँ आप से है समंदर परेशाँ, यहाँ उस तरह की निजामत नहीं है

 

जमीं आसमां…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on December 31, 2014 at 12:41am — 31 Comments

राम लीला (लघुकथा )

और भाई, इस बार तो तूने पूरी राम लीला देख ली क्या सीखा ?

भईया, रामचरितमानस की कथा के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ की पिता का कहना नहीं मानना चाहिए, इससे बहुत तकलीफ उठानी पड़ती है !!

 

© हरि प्रकाश दुबे

"मौलिक व अप्रकाशित"

Added by Hari Prakash Dubey on December 30, 2014 at 11:55pm — 9 Comments

ग़ज़ल-दोस्ती कैसे निभाएं कोई पैमाना कहाँ है

(2122      2122      2122    2122)

दोस्ती कैसे  निभाएं  कोई   पैमाना  कहाँ  है

हीर रान्झू का नया सा आज अफ़साना कहाँ है

 

प्यार से ही जो बदल दे हर अदावत की फ़जा को

संत मुर्शिद सूफ़ी मौल़ा ऐसा  मस्ताना कहाँ है

 

ख़ुद गरज नेता वतन का तो करेंगे वो भला क्या

मार हक़ फिर  देखते हैं वो कि नजराना कहाँ है

 

अंजुमन में रिन्दों की भी बैठ कर देखें जरा हम

हाल सब का पूछते वो कोई अनजाना  कहाँ है

 

हर ख़ुशी कुर्बान…

Continue

Added by कंवर करतार on December 30, 2014 at 10:00pm — 19 Comments

तो क्या बुरा मानोगे ?

रात आँखों में बिता दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?

मैं आज बत्तियां जला दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?

बैठे हो सर झुकाए, कुछ गुमशुदा से बन के,

आज घूँघट फिर उठा दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?

है कंपता बदन ये, आँखों में कुछ नमी है,

लाओ सर जरा दबा दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?

लगती हो खोई-खोई, किस सोच में पड़ी हो ?

ग़र फिक्र सब मिटा दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?

ख़ामोशी क्यूँ है इतनी ? अरे गाते थे कभी हम,

मैं कुछ गीत…

Continue

Added by संदेश नायक 'स्वर्ण' on December 30, 2014 at 8:14pm — 9 Comments

अंधकार को अंधकार से मिटाते हैं -- डा० विजय शंकर

रौशनी से अन्धकार तो सब मिटा लेते हैं

हम अंधकार को अंधकार से मिटाते हैं |

एक बुराई हटाई , हटाई क्यों , हटाई नहीं ,

साइड में लगाईं , नई बुराई लगाई |

एक फेल को दूजे फेल से बदल दिया ,

एक असफल को फिर असफल होने का

अवसर दिया , और जोरदार एलान किया ,

देखो , हमने कैसा परिवर्तन कर दिया ,

और एक कमजोर का उत्थान भी कर दिया |

क्योंकि हम वीर हैं , हर हाल में जी लेते हैं ,

किसी बुराई से डरते नहीं ,

हर बुराई में जी लेते हैं ,

हर बुराई को झेल लेते हैं… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 30, 2014 at 1:03pm — 24 Comments

नवपल को दे अर्थ (दोहें) - लक्ष्मण रामानुज

दो हजार पंद्रह मने, योग लिए है आठ,

मानो यह नव वर्ष भी,लेकर आया ठाठ |

 

 नए वर्ष का आगमन, खुशिया मिले हजार,

सबको दे शुभ कामना, दूर करे अँधियार |

 

रश्मि करे अठखेलियाँ, आता तब नववर्ष

प्राची में सौरभ खिले, सुखद धूप का हर्ष |

 

अच्छे दिन की आस रख, ह्रदय रहे सद्भाव

दूर करे नव वर्ष में, रिश्तों से  अलगाव |

 

 

स्वागत हो नव वर्ष का,लेता विदा अतीत,

प्रथम दिवस के भोर से, शुभ हो समय व्यतीत…

Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 30, 2014 at 12:30pm — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
एक तरही ग़ज़ल - देखता हूँ इस चमक में बेबसी सोई हुई ( गिरिराज भंडारी )

2122     2122    2122    212 

" मोगरे के फूल पर थी चाँदनी सोई हुई -

( इस मिसरे पर गज़ल कहने की मैने भी कोशिश की है , आपके सामने रख रहा हूँ )

**************************************************************************** 

ग़म सभी बेदार लगते , हर खुशी सोई हुई

जग गई लगती है फिर से, बेकली सोई हुई  -

 

बेदार -जागे हुये, बेकली - अकुलाहट  

 

फैलती ही जा रही बारूद की बदबू जहाँ

बे ख़ुदी में लग रही बस्ती वही सोई…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on December 30, 2014 at 11:00am — 23 Comments

मन बहुत अकेला है

मन बहुत अकेला है - - - -

आँखे तुमने बंद करीं

सब संज्ञाए बदल गई

बाद तुम्हारें कितनी ठेलम-ठेला है !

मन बहुत अकेला है - - - -

रिश्ते नए क्रम में आए

प्रतिबद्धताएँ बदल गईं

मनोभाव से सबने मेरी खेला है !

मन बहुत अकेला है - - - -

बैठ अकेले में कैसे संताप करूँ

अब बीते का क्या आलाप करूँ

आगत-आज में हुआ झमेला है

मन बहुत अकेला है - - - -

तुमसे निजता का उपहार सम्भाले हूँ

खुले हाट में अपना भाव सम्भाले…

Continue

Added by somesh kumar on December 30, 2014 at 10:20am — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल- मक़बूलियत अदीब की है उनके काम से

221 2121 1221 212

लिखता हूँ हर्फ़-हर्फ़ मैं जो तेरे नाम से

जज़्बात, दर्द, अश्क़ के हर एहतमाम से

 

क्या हो गया जो कोई उन्हें जानता नहीं

मक़बूलियत अदीब की है उनके काम से

 

मिल ही गया मुकाम उसे आखिरश कहीं

बेजा भटक रहा था मुसाफिर जो शाम से

 

शाइस्तगी न बज़्म में थी कोई मस्लहत

टकरा रहे थे लोग जहाँ जाम, जाम से

 

गुरबत बिकी थी लाख टके में मगर “शकूर”

गुरबत फ़रोश जी न सका एहतराम…

Continue

Added by शिज्जु "शकूर" on December 30, 2014 at 9:57am — 9 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
सूर्यास्त - लघुकथा (मिथिलेश वामनकर)

बॉस के कमरे की अधखुली खिड़की। उसने डूबते सूरज को देखते हुए कहा- “आप मेरे प्रमोशन की बात को हमेशा टाल जाते है.... मेरे हसबेंड के लिए आहूजा ग्रुप में सिफारिश भी नहीं की अब तक... .. उन्होंने तीन महीनों से बातचीत बन्द कर रखी है। हमेशा नाराज रहते है, रोज ड्राइंग रूम में सोते है। पता है, मैं कितनी परेशान हूँ... इस बार पीरियड भी नहीं आया है।”



कहते-कहते वो अचानक मौन हो गई। कमरे में चीखता हुआ सन्नाटा पसर गया था।

क्षितिज पार सूरज तो कब का डूब चुका…

Continue

Added by मिथिलेश वामनकर on December 30, 2014 at 12:45am — 22 Comments

तरही ग़ज़ल -- मोगरे के फूल पर .....

ग़ज़ल



बुजदिलों के शह्र में मर्दानगी सोई हुई..

जुल्मतों की शब मुसलसल, रोशनी सोई हुई ।



बच्चियों पर बढ़ रहे अपराध सीना तानकर ...

हर किसी की आँखों में शर्मिंदगी सोई हुई ।



शह्र के फुटपाथ पर रातों का मंजर खौफनाक .....

मुफलिसी की ओढ़ चादर जिन्दगी सोई हुई ।



मुज़रिमों का हौसला अब दिन-ब-दिन बढ़ता गया ....

देश के सब मुन्सिफ़ों की लेखनी सोई हुई ।



चाँद सूरज फूल कलियाँ इन पे मैं लिक्खूँ ग़ज़ल ? .....

एक मुद्दत से मिरी तो शायरी सोई हुई… Continue

Added by दिनेश कुमार on December 29, 2014 at 10:32pm — 21 Comments

श्रेष्ठ कौन !

कौन जाने ?

बद्दुआओ में होता है असर 

वाणी के जहर 

ये काटते तो है

पर देते नहीं लहर

 

पुरा काल में

इन्हें कहते थे शाप

ऋषियों-मुनियों के पाप

दुर्वासा इसके

पर्याय थे आप

 

भोगता था

अभिशप्त वाणी की मार 

कभी शकुन्तला

या अहल्या सुकुमार

आह !आह ! ऋषि के

वे…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 29, 2014 at 9:30pm — 19 Comments

उनको अपने पास लिखूँ क्या?

उनको अपने पास लिखूँ क्या?
वो मेरे हैं ख़ास लिखूँ क्या?

तारीफ़ बहुत कर दी उनकी।
अपना भी उपहास लिखूँ क्या?

संत नहीं वह व्यभिचारी है।
उसका भी सन्यास लिखूँ क्या?

जिसने मेरा सबकुछ लूटा।
उसपे है विश्वास लिखूँ क्या?

जिसकी कोई नहीं कहानी।
उसका भी इतिहास लिखुँ क्या?

बूँद बूँद को तरसा है जो।
उससे पूँछो प्यास लिखुँ क्या?
************************
वज़्न_22 22 22 22
-राम शिरोमणि पाठक
मौलिक।अप्रकाशित

Added by ram shiromani pathak on December 29, 2014 at 5:17pm — 19 Comments

करके घायल .....

करके घायल ......

करके घायल नयन बाण से 

मंद-मंद मुस्काते हो
दिल को देकर घाव प्यार के
क्योँ ओझल हो जाते हो
प्यार जताने कभी स्वप्न में
दबे पाँव आ जाते हो
कुछ न कहते अधरों से
बस नयनों से बतियाते हो
क्षण भर के आलिंगन को
तुम बरस कई लगाते हो
फिर आना का वादा करके
विछोह वेदना दे जाते हो

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Sushil Sarna on December 29, 2014 at 3:26pm — 14 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service