ये जो है लड़की
उसकी जो आँखे
आँखों में सपना
सपने में घर
उसका अपना घर
जिसके बाहर
वो लिख सके
यह मेरा घर है दुकान नहीं है…
ContinueAdded by amita tiwari on October 16, 2018 at 12:30am — 7 Comments
122 122 122 12
डरे जो बहुत,बुदबुदाने लगे
मसीहे,लगा है, ठिकाने लगे।1
तबाही का' आलम बढ़ा जा रहा
चिड़ी के भी' पर फड़फड़ाने लगे।2
नचाते रहे जो हसीं को बहुत
सलीके से' नजरें चुराने लगे।3
नहीं कुछ किया,कहते' आँखें भरीं
गये वक्त अब याद आने लगे।4
उड़ाते न तो कोई' उड़ता कहाँ?
यही कह सभी अब चिढ़ाने लगे।5
"मौलिक वअप्रकाशित"
Added by Manan Kumar singh on October 15, 2018 at 9:53pm — 6 Comments
पागल मन ..... (400 वीं कृति )
एक
लम्बे अंतराल के बाद
एक परिचित आभास
अजनबी अहसास
अंतस के पृष्ठों पे
जवाबों में उलझा
प्रश्नों का मेला
एकाकार के बाद भी
क्यूँ रहता है
आखिर
ये
पागल मन
अकेला
तुम भी न छुपा सकी
मैं भी न छुपा सका
हृदय प्रीत के
अनबोले से शब्द
स्मृतियाँ
नैन घनों से
तरल हो
अवसन्न से अधरों पर
क्या रुकी कि
मधुपल का हर पल
जीवित हो उठा
मन हस पड़ा…
Added by Sushil Sarna on October 15, 2018 at 7:48pm — 14 Comments
Added by V.M.''vrishty'' on October 15, 2018 at 12:24pm — 9 Comments
२१२२/२१२२/२१२२/२१२
अब न केवल प्यार की ही दुख बयानी है गजल
भूख गुरबत जुल्म की भी अब कहानी है गजल।१।
कल तलक लगती रही जो बस गुलाबों का बदन
अब पलाशों की उफनती धुर जवानी है गजल।२।
वो जमाना और था जब जुल्फ लब की थी कथा
माँ पिता के प्यार की भी अब निशानी है गजल।३।
पंछियों की चहचहाहट फूल की मुस्कान भी
गीत गाती एक नदी की ज्यों रवानी है…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 14, 2018 at 3:30pm — 23 Comments
"व्रत ने पवित्र कर दिया।" मानस के हृदय से आवाज़ आई। कठिन व्रत के बाद नवरात्री के अंतिम दिन स्नान आदि कर आईने के समक्ष स्वयं का विश्लेषण कर रहा वह हल्का और शांत महसूस कर रहा था। "अब माँ रुपी कन्याओं को भोग लगा दें।" हृदय फिर बोला। उसने गहरी-धीमी सांस भरते हुए आँखें मूँदीं और देवी को याद करते हुए पूजा के कमरे में चला गया। वहां बैठी कन्याओं को उसने प्रणाम किया और पानी भरा लोटा लेकर पहली कन्या के पैर धोने लगा।
लेकिन यह क्या! कन्या के पैरों पर उसे उसका हाथ राक्षसों के हाथ जैसा…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 14, 2018 at 2:23pm — 17 Comments
2122 1122 1122 22/ 112
याद की तह से कई भूले फ़साने निकले
आज हम तेरे लिखे ख़त जो जलाने निकले //1
चाहता हूँ मैं तुझे अपनी अना से बढ़कर
इस यकीं तक तुझे लाने में ज़माने निकले //२
ये भी अहसान जताने की नई कोशिश है
ख़त्म जब हो चुका रिश्ता तो मनाने निकले //3
अब कोई इनको बताए कि क़ज़ा क्या शय है
जा चुके छोड़ के दुनिया तो बुलाने निकले //4
जिनने खाई थी क़सम मुझको नहीं देखेंगे
आज काँधे पे मेरी लाश…
ContinueAdded by राज़ नवादवी on October 14, 2018 at 10:00am — 13 Comments
2122 1122 1122 112/22
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जिसको भी चाहा मुहब्बत में हमारा न हुआ
दिल हमारा किसी सूरत भी गवारा न हुआ //1
मेरे क़िरदार में पाने की लियाक़त नहीं थी
मुझपे जो फैज इनायत का दुबारा न हुआ //2
आज फिर बाम पे छाई थी अमावस काली
आज फिर बिन्ते अशीयत का नज़ारा न हुआ //3
है जईफी तो सताती है हमें तन्हाई
जब जवाँ थे तो मुहब्बत का इशारा न हुआ //4
मौजें उठतीं है मगर रोक लेता है…
Added by राज़ नवादवी on October 14, 2018 at 10:00am — 8 Comments
हे! जगदीश! सुनो विनती अब, भक्त तुम्हें दिन-रैन पुकारे।
व्याकुल नैन निहार रहे पथ, पावन दर्शन हेतु तुम्हारे।।
कौन भला जग में अब हे हरि संकट से यह प्राण उबारे।
आ कर दो उजियार प्रभो! हिय, जीवन के हर लो दुख सारे।।
रचनाकार-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
सूत्र-भगण×7+गुरु गुरु; 211×7+22
Added by रामबली गुप्ता on October 13, 2018 at 9:48pm — 6 Comments
Added by V.M.''vrishty'' on October 13, 2018 at 12:34pm — 12 Comments
"सुनो, किसी से चर्चा मत करना! अपने दफ़्तर का प्रोजेक्ट अधूरा भी छोड़ना पड़े, तो भी तुरंत ही अगली बस से यहां लौट आओ!"
"क्यों? क्या हुआ? घबराई हुई सी क्यों हो?"
"ऑफ़िस से लौटने पर आज तो मुझे मेरा सूटकेस ही पूरा खुला हुआ मिला.. और कपड़े बिखरे हुए!"
"कोई क़ीमती सामान चोरी तो नहीं हुआ?"
"क़ीमती ही नहीं.. हमारे जिगर का टुकड़ा भी! .. स्मिता अभी तक घर नहीं लौटी है! ... सूटकेस से मेरी कुछ मंहगी ड्रेसिज़, महंगा हेअर रिमूवर और सेनेटरी नैपकिन्ज़ वग़ैरह सब ग़ायब हैं!"
"तो क्या…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 13, 2018 at 6:35am — 5 Comments
Added by V.M.''vrishty'' on October 13, 2018 at 12:09am — 8 Comments
122 122 122 122
मेरी हर निशानी मिटाने से पहले ।
वो रोया बहुत भूल जाने से पहले ।।1
गयी डूब कश्ती यहाँ चाहतों की ।
समंदर में साहिल को पाने से पहले ।। 2
जफ़ाओं के मंजर से गुज़रा है कोई ।
मेरा ख़त गली में जलाने से पहले ।।3
वो दिल खेलने के लिए मांगते हैं ।
मुहब्बत की रस्मे निभाने से पहले ।। 4
ये तन्हाइयां हो न जाएँ सितमगर ।
चले आइये याद आने से पहले ।।6
मेरे हाल पर छोड़ दे मुझको जालिम ।
मुझे और…
Added by Naveen Mani Tripathi on October 12, 2018 at 11:15pm — 20 Comments
© बसंत कुमार शर्मा
मापनी - १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
सदा देता, न लेता कुछ, बुरी नजरों से ताड़ो मत
शजर है घर परिंदों का, उसे तुम यूँ उजाड़ो मत
बड़ी उम्मीद होगी, मगर कुछ भी न पाओगे
सयानी है बहुत जनता, यूँ मंचों पर दहाड़ो…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on October 12, 2018 at 5:27pm — 16 Comments
ये क्या हो रहा मेरे प्यारे शहर को,
कहीं क़त्ल-ओ-गारत कहीं ख़ून के छीटें,
के घायल हैं चंदर कहीं पे सिकंदर,
के हर ओर फैले हुए अस्थि पंजर,
के तुम ही कहो कैसे देखूँ ये मंजर,
के आँखों के सूखे पड़े हैं समंदर ।।…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on October 12, 2018 at 3:00pm — 3 Comments
बाज
--
चिड़िया ने पंख फड़फड़ाये।उड़ने को उद्यत हुई।उड़ी भी,पर पंख लड़खड़ा गये।उसे सहसा एक झोंका महसूस हुआ।।वह गिरते-गिरते बची,उसमें कुछ दूर उड़ती गयी।वह एक बड़ा पंख था,जो उसे हवा दे रहा था।वह उड़ती जा रही थी।कभी-कभी उसे उस बड़े पंख का दबाव सताता।वह कसमसाती,पर और ऊपर तक उड़ने की ख्वाहिश और जमीन पर गिरने के भय में टंगी वह घुटी भी,उड़ी भी......उड़ती रही।ऊँची शीतल हवाओं का सिहरन भरा स्पर्श उसे आंनदित करता।वह उस कंटकित पंख की चुभन जनित अपने सारे दुःख-दैन्य भूलकर उड़ती रही,तबतक जबतक उसे एक ऊँचाई न मिल…
Added by Manan Kumar singh on October 12, 2018 at 1:30pm — 16 Comments
Added by V.M.''vrishty'' on October 12, 2018 at 8:44am — 11 Comments
221-1221-1221-122.
तपती जमीं है आज तू छाने के लिए आ ।
ऐ अब्र जरा आग बुझाने के लिए आ ।।
यूँ ही न गुजर जाए कहीं तिश्नगी का दौर ।
तू मैकदे में पीने पिलाने के लिए आ ।।
ये जिंदगी तो हम ने गुज़ारी है खालिस में ।
कुछ दर्द मेरा अब तो बटाने के लिए आ ।।
जब नाज़ से आया है कोई बज़्म में तेरी ।
क़ातिल तू हुनर अपना दिखाने के लिए आ।।
शर्मो हया है तुझ में तो वादा निभा के देख ।
मेरी वफ़ा का कर्ज चुकाने के…
Added by Naveen Mani Tripathi on October 11, 2018 at 7:30pm — 8 Comments
आन बान है घर की बेटी
इसको सदा बचाएंगे
बेटी से घर रोशन होता
मिलकर सभी पढ़ाएंगे ll
मन में लें सौगंध सभी जन
नहीं कोंख में मारेंगे
बेटी को खुद पढ़ा लिखाकर
अपना चमन सुधारेंगे ll
भेदभाव बेटी बेटा में
कभी नहीं होने देंगे
बेटी घर की रौनक होती
इसे नहीं रोने देंगे ll
सभी क्षेत्र में बेटी आगे
अपने बल से जाती है
आसमान को छूती बेटी
घर का मान बढ़ाती है ll
दो दो घर बेटी सँवारती
सारी खुशियाँ देती…
Added by डॉ छोटेलाल सिंह on October 11, 2018 at 5:48pm — 12 Comments
अस्त व्यस्त -लघुकथा -
पैतीस वर्षीय गल्ला व्यापारी राजेश्वर को दिल का दौरा पड़ा।आनन फानन में चिकित्सालय पहुँचाया गया।
विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा गहन परीक्षण और उचित चिकित्सा के बाद घर भेज दिया मगर बहुत सारी हिदायतों के साथ।
उनके अनुसार दिल का दौरा हल्का था और समय पर चिकित्सा मिलने से खतरा टल गया है लेकिन जीवन भर सावधानी रखनी होगी।
सगे संबंधी, रिश्तेदार, मोहल्ले के लोग,मित्रों एवम व्यापारियों का ताँता लग गया।
हाल चाल जानने राजेश्वर के सत्तर वर्षीय नानाजी भी…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on October 11, 2018 at 1:26pm — 10 Comments
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