काफिया आनी : रदीफ़ :मुझे
बह्र :२१२२ २१२२ २१२२ २१२
राह सब दुर्गम, लिखाई में है’ आसानी मुझे
यार दुनिया-ए-सुख़न ही अब है अपनानी मुझे' |
'राज़ की हर बात पर्दे में छुपी थी राज़दाँ
फिर भी जाने क्यों लगी दुश्नाम उरियानी मुझे'|
'मैं नहीं था जानता, ईमान क्या है देश में
ज़ीस्त ने नक़ली बनाया है बलिदानी मुझे'||
अच्छा था वो शाह का शासन, मुकद्दर और था
जीस्त मेरी पलटी खाई, सख्त हैरानी मुझे…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 13, 2017 at 10:30am — 4 Comments
नंगे सच का द्वंद
मुझे सड़क पार करने की जल्दी थी और मैं डीवाईडर पर खड़ा था |मेरी दृष्टी उसकी पीठ पर पड़ी और मैं कुछ देर तक चोरों की भांति उसे देखता रहा |क्षत-विक्षत शाल से ढकी और पटरी की दो समांतर ग्रील से कटती उसकी पीठ रामलीला का टूटा शिव-धनुष प्रतीत हो रही थी |
एक दिन पहले ही आई बरसात से मुख्य मार्ग की किनारियाँ कीचड़ से पटी पड़ी थी और सभ्य और जागरूक समाज द्वारा यहाँ-वहाँ फैलाया गया कचरा ऐसे लग रहा था मानों किसी प्लेन काली साड़ी के स्लेटी बार्डर पर जगह-जगह…
ContinueAdded by somesh kumar on December 13, 2017 at 9:53am — 4 Comments
सब जन हैं आगोश में, धुन्ध धुएँ के आज
अतिशय कम है दृश्यता, सभी प्रभावित काज
सभी प्रभावित काज, नहीं कुछ अपने कर में
जन जीवन बेहाल, छुपे सब अपने घर में
यहीं रहा जो हाल, धुन्ध होगी और सघन
इसका एक निदान, अभी से सोचें सब जन।1।
बच्चे मानों पट्टिका, चाक आपके हाथ
चाहे इच्छा जो लिखें, उनके ऊपर नाथ
उनके ऊपर नाथ, असर वो होगा गहरा
परखें उनके भाव, यथोचित देकर पहरा
दिए जरा जो ध्यान, बनेंगे फिर वो सच्चे
कच्चे घड़े…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on December 13, 2017 at 5:07am — 8 Comments
2122 1122 1122 22
लोग तन्हाई में जब आप को पाते होंगे।
मेरा मुद्दा भी सलीके से उठाते होंगे ।।
लौट आएगी सबा कोई बहाना लेकर ।
ख्वाहिशें ले के सभी रात बिताते होंगे ।।
सर फ़रोसी की तमन्ना का जुनूं है सर पर ।
देख मक़तल में नए लोग भी आते होंगे ।।
सब्र करता है यहां कौन मुहब्बत में भला।
कुछ लियाकत का असर आप छुपाते होंगे ।।
उम्र भर आप रकीबों को न पहचान सके ।।
गैर कंधो से वे बन्दूक…
Added by Naveen Mani Tripathi on December 13, 2017 at 1:30am — 12 Comments
मृत्यु भोज - लघुकथा –
राघव के स्वर्गीय पिताजी का तीसरा संपन्न हुआ था अतः सारे परिवार के सदस्य आगे क्या करना है, इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे थे।
"क्यों राघव, तेरहवीं का क्या सोचा है? हलवाई बगैरह तय कर दिया या मैं किसी से बात करूं"?
"ताऊजी, आपको तो पता ही है कि पिताजी इन सब पाखंडों के खिलाफ़ थे। और मृत्यु भोज तो उन्हें बिल्कुल भी पसंद नहीं था। इसीलिये माँ की मृत्यु पर उन्होंने हवन किया और अनाथालय के बच्चों को भोजन कराया था"।
"देख बेटा, तेरे पिता तो चले गये। उनके रीति…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on December 12, 2017 at 6:49pm — 14 Comments
Added by Neelam Upadhyaya on December 12, 2017 at 3:48pm — 2 Comments
जीवन-कविता
बिटिया बैठी पास में
खेल रही थी खेल
मैं शब्दों को जोड़-तोड़
करता मेल-अमेल |
उब के अपने खेल से
आ बैठी मेरी गोद
टूट गया यंत्र भाव
मन को मिला प्रमोद |
बिना विचारे ही पत्नी ने
दी मुझको आवाज़
मैं दौड़ा सिर पाँव रख
ना हो फिर से नाराज़ |
लौटा सोचता सोचता
क्या जोड़ू आगे बात
पाया बिटिया पन्ना फाड़
दिखा रही थी दांत…
ContinueAdded by somesh kumar on December 12, 2017 at 10:30am — 5 Comments
2122 1122 1122 22
इससे पहले कि नई और ख़ता हो जाए
इश्क़ करने की चलो आज सजा हो जाए
बेवफाई का तो दस्तूर निभाया तुमने
अब कोई रस्म जुदाई की अदा हो जाए
लो झुका दी है जबीं आप निकालो अरमां
आज पूरी ये चलो दिल की रज़ा हो जाए
कू ब कू हो कोई चर्चा यहाँ अपना वल्लाह
शह्र में फिर कोई बदनाम वफ़ा हो जाए
जाते जाते मेरे दीयों को बुझाते जाना
साथ जिनके मेरा हर ख़्वाब फ़ना हो जाए
---मौलिक एवं…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 12, 2017 at 10:09am — 20 Comments
1212 1212 1212
जगी थीं जो भी हसरतें, सुला गए ।
निशानियाँ वो प्यार की मिटा गए।।
उन्हें था तीरगी से प्यार क्या बहुत।
चिराग उमीद तक का जो बुझा गए ।।
पता चला न, सर्द कब हुई हवा।
ठिठुर ठिठुर के रात हम बिता गए ।।
लिखा हुआ था जो मेरे नसीब में ।
मुक़द्दर आप अदू का वो बना गए।।
नज़र पड़ी न आसुओं पे आपकी
जो मुस्कुरा के मेरा दिल दुखा गये ।।
न जाने कहकशॉ से टूटकर कई ।
सितारे क्यों…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on December 11, 2017 at 11:09pm — 5 Comments
अब तो आओ कृष्ण धरा ये थर्राती है।
लुटने को है लाज द्रौपदी चिल्लाती है।।
द्युत क्रीड़ा में व्यस्त युधिष्ठिर खोया है,
अर्जुन का गांडीव अभी तक सोया है।
दुर्योधन निर्द्वन्द हुआ है फिर देखो,
दुःशासन को शर्म तनिक ना आती है।।
लुटने को है लाज द्रौपदी चिल्लाती है।।
धधक रही मानवता की धू धू होली,
विचरण करती गिद्धों की वहशी टोली।
नारी का सम्मान नहीं अब आँखों में,
भीष्म मौन फिर गांधारी सकुचाती है।।
लुटने को है लाज द्रौपदी चिल्लाती…
Added by डॉ पवन मिश्र on December 11, 2017 at 8:30pm — 15 Comments
आज चुनावी रंग में, रँगे गली औ' गाँव।
प्रत्याशी हर व्यक्ति के, पकड़ रहे हैं पाँव।।1।।
पोस्टर बैनर से पटे, हैं सब दर-दीवार।
सभी मनाएँ प्रेम से, लोकतंत्र-त्यौहार।।2।।
सोच-समझ कर ही चुनें, जन प्रतिनिधि हे मीत!
सच्चे नेता यदि मिलें, लोकतंत्र की जीत।।3।।
धन-जन-बल-षडयंत्र से, वोट रहे जो मोल।
अरि वे राष्ट्र-समाज के, मत दें हिय में तोल।।4।।
जाति-धर्म के भेद हर आग्रह से हो मुक्त।
चुनें सहज नेतृत्व निज, कर्मठ…
Added by रामबली गुप्ता on December 11, 2017 at 8:00pm — 10 Comments
सो गया बच्चा
नींद की पालकी में सवार
सो गया बच्चा
शरारती बन्दर बना बछड़ा
लगा बहुत अच्छा |
------------सो गया बच्चा
दिन भर की चपलता
लेटा आँख मलता
“सोना है मुझे “
भाव सीधा-सच्चा |
--------------सो गया बच्चा |
गीत में उमंग नहीं
फूल में सुगंध नहीं
चित्र में रंग नहीं
घर ना लगे अच्छा
----------------सो गया बच्चा |
सपनों का…
ContinueAdded by somesh kumar on December 10, 2017 at 11:42pm — 7 Comments
तेवर देखे ठंड के , थर-थर काँपे गाँव ।
सभी तलाशे धूप को , सूनी लगती छाँव ।।
यार बढ़े हैं आज तो , ठंडक के वो भाव ।
बस्ती के हर मोड़ पर , सुलगे देख अलाव ।।
बदला मौसम ने ज़रा , देखो अपना रूप ।
कितनी प्यारी लग रही , जाड़े की ये धूप ।।
अदरक वाली चाय से , होती सबकी भोर ।
बच्चों का भी शाम से , थम जाता है शोर ।।
किट-किट करते दाँत हैं , काँप रहे हैं हाथ ।
गर्मी लाने के लिये , गर्म चाय का साथ ।।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on December 10, 2017 at 10:35pm — 16 Comments
Added by Manan Kumar singh on December 10, 2017 at 11:52am — 19 Comments
उसे होश में आया देख डॉक्टर का नुमाइंदा पास आया और फरमान सुनाने लगा । अपने घर बात करके 15 हज़ार रुपये काउंटर में जमा करवा दो बाकि के पैसे डिस्चार्ज के समय जमा करा देना । मगर साहब मै बीमार नहीं, बस दो दिन से भूखा हूँ। उसकी आवाज़ घुट के रह गई, नुमाइंदा जा चुका था ।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by नादिर ख़ान on December 9, 2017 at 10:00pm — 12 Comments
"फाइनली ख़ुदकुशी करने का इरादा है क्या? सुसाइड नोट लिखने जा रही हो?"
"मैं! मैं ऐसी बेवक़ूफी करूंगी! कभी नहीं!"
"तो फिर सोशल मीडिया के ज़माने में काग़ज़ पर क्या लिखना चाहती हो?" कोई कविता, शे'अर या कथा?"
"वैसी वाली मूरख भी नहीं रही अब मैं! जो मुझे चैन से जीने नहीं देते, उन्हें भी चैन से जीने नहीं दूंगी अब मैं!"
"तो क्या एक और फ़र्ज़ी ख़त लिख रही हो अपने मायके और वकील मित्रों को झूठे ज़ुल्मो-सितम बयां करके!"
"कुछ तो इंतज़ाम करना पड़ेगा न! पता नहीं मेरा शौहर कब तलाक़ दे दे…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on December 9, 2017 at 7:32pm — 9 Comments
तेज़ अंधड़ के साथ खिड़कियों से पत्ते ,कीट-पतंगे और धूल कम्पार्टमेंट में घुस आई |जैसे ही हवा शांत हुई ट्रेन ने चलने का हार्न दिया |सीट पर आए पत्तों को साफ़ करने के लिए उन्होंने ज्यों ही हाथ बढ़ाया उनकी आँखे चमक उठी |हाँ ये वही वस्तु थी जिससे इर्द-गिर्द उनके बचपन का ग्रामीण जीवन पल्लवित-पोषित हुआ था |हृदयाकृति के बीचों-बीच जीवन का गर्भ यानि चिलबिल का बीज |
कुछ समय तक वो उस सुनहले बीज को निहारते रहे…
ContinueAdded by somesh kumar on December 9, 2017 at 4:38pm — 3 Comments
प्रश्न चिन्ह - लघुकथा –
आज छुट्टी थी तो सतीश घर के पिछवाड़े लॉन में अपने दोनों बच्चों के साथ बेडमिंटन खेल रहा था।
"सतीश,…. सतीश,…. पता नहीं बाहर क्या कर रहे हो? दो तीन बार आवाज़ दी, सुनते ही नहीं हो"?
"क्या हुआ क्यों चिल्ला रही हो सुधा जी। कोई इमरजेंसी आ गयी क्या"?
"हाँ, यही समझ लो"।
"क्या हुआ| कुछ बोलो भी"?
"पैथोलोजी लैब वाला आया था, मम्मी की ब्लड रिपोर्ट दे गया है"।
सतीश ने उत्सुकता से पूछा,"क्या लिखा है"?
"ब्लड कैंसर लिखा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on December 9, 2017 at 11:33am — 10 Comments
झूठ-सत्य के दो पलड़ों पर
टँगी हुई उम्मीदों बोलो-
कब तक झूलोगी ?
अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर
पाने की आवारा ज़िद में-
क्या-क्या भूलोगी ?
शब्दों की प्यासी बन कर तुम
चीख मौन की झुठलाती हो
बोलो आखिर क्यों ?
मनगढ़ मीठी बातें रखकर
खारापन बस तौल रही हो
इतनी शातिर क्यों…
Added by Dr.Prachi Singh on December 9, 2017 at 10:36am — 3 Comments
काफिया :आब ; रदीफ़ ;था
बह्र :२१२२ २१२२ २१२२ २१२
दिल को’ जिसने बेकरारी दी वही ऐराब था
जिंदगी के वो अँधेरी रात में शबताब था |
मेरे जानम प्यार का ईशान था, महताब था
चिडचिडा मैं किन्तु उसमे तो धरा का ताब था |
स्वाभिमानी मान कर खुद को, गँवाया प्यार को
सच यही, मैं प्यार में उनके सदा बेताब था |
आग को मैं था लगाता, बात छोटी या बड़ी
आग को ठंडा किया करता, निराला आब था |
शब कटी बेदारी’…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on December 8, 2017 at 3:30pm — 10 Comments
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