Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 28, 2015 at 12:58pm — 6 Comments
1212 1122 1212 22 /112
तेरे खतों में रहा यूँ तो रंगो बू शामिल
मगर मज़ा ही कहाँ है अगर न तू शामिल
मुझे अधूरी किसी चीज़ की नहीं हाजत
मेरी हयात में हो जा तू हू ब हू शामिल
बिन आरज़ू भी कभी ज़िन्दगी कटी है कहीं
तू कर ले ज़िन्दगी में मेरी आरजू शामिल
किसी की याद भी तनहाइयों का दरमाँ है
किसी की याद की कर ले तू ज़ुस्तजू शामिल
झिझक नहीं , न जमाने…
Added by गिरिराज भंडारी on September 28, 2015 at 5:00am — 19 Comments
Added by Samar kabeer on September 27, 2015 at 2:30pm — 16 Comments
1222—1222—1222—1222 |
|
कभी मैं खेत जैसा हूँ, कभी खलिहान जैसा हूँ |
मगर परिणाम, होरी के उसी गोदान जैसा हूँ |
|
मुझे इस मोह-माया, कामना ने भक्त… |
Added by मिथिलेश वामनकर on September 27, 2015 at 9:30am — 28 Comments
बादलों की ओट से उधार लूँ ज़रा
चाँद आज तुझको मैं निहार लूँ ज़रा..
कँपकँपा रहे अधर नयन मुँदे मुँदे
साँस की छुअन से ही पुकार लूँ ज़रा..
शब्द शून्य सी फिज़ा हुई है पुरअसर
सिहरनों से रूह को सँवार लूँ ज़रा..
चाँद भी पिघल के कह रहा मचल मचल
चाँदनी में प्यार का निखार लूँ ज़रा..
अब महक उठे बहक उठे प्रणय के पल
इन पलों में ज़िन्दगी…
Added by Dr.Prachi Singh on September 27, 2015 at 1:00am — 24 Comments
सरकारी नौकरी लगते ही रिश्तेवालों की सूची लम्बी हो गई थी. हर दिन एक नए रिश्ते लेकर कोई न कोई उसका घर चला आता था. अपनी मां से जब भी उसकी बातें होती वह लड़की के दादा परदादा से लेकर उसकी जनम कुण्डली तक बखान कर ही दम लेती. हर दिन रिश्ते के नए चेप्टर खुलते, उसके मन में इस बात को लेकर कुतूहल बना रहता था. उसे स्कूल के दिन याद हो आए थे. वहां भी हर रोज नए चेप्टर खुलते और नई-नई जानकारी मिलती थी. बात कुछ वैसी ही यहां पर भी उसके साथ हो रही थी. यहां भी हर रोज…
ContinueAdded by Govind pandit 'swapnadarshi' on September 26, 2015 at 10:23pm — 4 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on September 26, 2015 at 4:59pm — 2 Comments
"वाह, भाभी इस बार तो ग़ज़ब की जीन्स-टोप लायी हो आगरा से ....लेकिन कुछ ज़्यादा ही महंगा है.....भाई साहब को मना ही लिया आपने !"- शालू ने चहकते हुये लक्ष्मी से कहा ।
"देखो, अभी यहाँ किसी को बताना मत, वरना ख़ानदानी सड़ल्ले रीति-रिवाज़ों के भाषण अभी शुरू हो जायेंगे। जहाँ तक महंगे होने की बात है, तो सुन मैं लक्ष्मी हूँ लक्ष्मी ! मुझे 'लक्ष्मी' को टेकल करने और हैण्डल करने की टेकनीक अच्छी तरह आती है। मेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ ये मुझे बीमार ननंद जी को देेखने जबरन आगरा ले तो गये, लेकिन मैं धन-दौलत…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 26, 2015 at 2:00pm — 3 Comments
तेजी से घूम रहे चक्र पर
हम ठेल दिये गए हैं
किनारों की ओर
जहां
महसूस होती है सर्वाधिक
इसकी गति
ऊंची उठती है उर्मियाँ
जैसे जैसे हम बढ़ते हैं
केंद्र की ओर
सायास
स्थिरता बढ़ती जाती है
प्रशांत हो जाती है तरंगे
सत्य का बोध
अनावृत होने लगता है
अनुभव होता है एकात्म का ....
.............. नीरज कुमार नीर
Added by Neeraj Neer on September 26, 2015 at 12:37pm — 5 Comments
बह्र : १२२२ १२२२ १२२
सनम जब तक तुम्हें देखा नहीं था
मैं पागल था मगर इतना नहीं था
बियर, रम, वोदका, व्हिस्की थे कड़वे
तुम्हारे हुस्न का सोडा नहीं था
हुआ दिल यूँ तुम्हारा क्या बताऊँ
मुआँ जैसे कभी मेरा नहीं था
यकीनन तुम हो मंजिल जिंदगी की
ये दिल यूँ आज तक दौड़ा नहीं था
तुम्हारे हुस्न की जादूगरी थी
कोई मीलों तलक बूढ़ा नहीं था
-------------
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 26, 2015 at 10:33am — 20 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 26, 2015 at 12:00am — 14 Comments
आत्मिक प्रेमतत्व …
जलतरंग से
मन के गहन भावों को
अभिव्यक्त करना
कितना कठिन है
हम किसको प्रेम करते हैं ?
उसको !
जिसके संग हमने
पवन अग्नि कुण्ड के चोरों ओर
सात फेरे लिए
या उसको
जिसके प्रेम में
स्वयं को आत्मसात कर हम
जीवन के समस्त क्षण
उसके नाम कर दिए
एक प्रेम
जीवन के अंत को जीवन देता है
और दूसरा अंतहीन जीवन को अंत देता है
जिस प्रेम को बार बार
शाब्दिक अभिव्यक्ति की आसक्ति हो …
Added by Sushil Sarna on September 25, 2015 at 8:30pm — 10 Comments
1222 1222 122
मेरा दिल प्यार का भूखा बहुत है
ये दरिया है,मगर प्यासा बहुत है
-
मुकद्दर ने हमें मारा बहुत है
ज़माने से मिला धोखा बहुत है
-
उठाएँ हम भला हथियार कैसे
वो दुश्मन है,मगर प्यारा बहुत है
-
छुपाने का हुनर क्या खूब ढूँढा
हो ग़म तो शख़्स वो हँसता बहुत है
-
डराओ मत उसे क़ानून से तुम
कि उसके जेब में पैसा बहुत है
-
यूँ कहने को सितारे साथ हैं "जय"
मगर वो चाँद भी…
ContinueAdded by जयनित कुमार मेहता on September 24, 2015 at 12:32pm — 11 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on September 24, 2015 at 10:25am — 5 Comments
22/22/22/22/22
तुमौर मै हमारी छोटी सी दुनिया
सागर से बारिश बारिश से नदिया
.
मीठी होती है मेहनत की रोटी
मैंने देखी है माँ दरते चकिया
.
ए.सी कूलर ने छीनी आबो-हवा
याद आती है नीम-छांव की खटिया
.
पक्की छत में जगह उसी को न मिली
सदियों रहा जो बन छप्पर की थुनिया
.
याद मुझे पुरनम बस तू है आती
मन महकाये जब बौंराई अमिया
.
दिल का सौदा क्या खाक वो करेगा?
नुकसान-नफ़ा सोचे तबीयते…
ContinueAdded by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 24, 2015 at 8:50am — 8 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on September 24, 2015 at 6:36am — 16 Comments
बेटी से हैं सृष्टि सारी
बेटी से संसार है न्यारी
बेटी घर देहरी फुलवारी
बेटी से मान और गान है ..............
बेटी अभिमान है
देश का सम्मान है
शिक्षा ,पोषक में रही अधूरी
सदियों मर कर जीती आई
बहुत हुआ ये भेदभाव
बहुत हुआ अब अपमान है ...........
बेटी अभिमान है
देश का सम्मान है
धोखा धोखा है जग आशा
बेटी पर ना किया भरोसा
बेटा ही बेटा करते आये
समझा क्या बेटी शान है ...........
बेटी अभिमान है
देश का सम्मान…
Added by kanta roy on September 24, 2015 at 4:30am — 6 Comments
तो कुछ बात बने
अंधेरों की नहीं ,जीवन में उजाले की कोई बात करो तो कुछ बात बने
निकला हैं दिन अभी,सूरज की किरणों की कोई बात करो तो कुछ बात बने .
क्यूँ बात करते हों उन पतझड़ों की,नव कोपलों की कोई बात करो तो कुछ बात बने
न बातें करो उदास रतजगों की ,प्यार भरी बंसी की कोई बात करो तो कुछ बात बने
सूखी हुई धरा पर बरसा हैं बरखा का जल अभी ,बरस जाए ये भरपूर तो कुछ बात बने
मेहरबां हुई हैं तुम्हारी नजर एक मुद्द्त के बाद , ठहर…
ContinueAdded by सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा on September 23, 2015 at 11:00pm — 1 Comment
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on September 23, 2015 at 8:00pm — 12 Comments
तुम और कॉफी दोनों का साथ
कब होगा मेरे साथ ?
तुम्हारे घर का बगीचा
पात-पात शांत
बर्फ की ओढनी ओढ़े
मुकुलित कालिका लजाती
सोखती स्वर्ण-आभा
चोटी पर तिरती सूर्य-किरणें
खुशबू के गुंफन ने छुआ मुझे
लगा कि तुमने उढ़ाया हो,शॉल गुनगुना सा
आवृत्तियों ने मुझे घेरा
याद आने लगे वो दिन जब तुम
बैठे रहते थे बिल्कुल सामने मेरे
और तुम्हारी मूँगे जैसी आँखों में
छल्क पड़ती थी मैं बार-बार
और…
ContinueAdded by kalpna mishra bajpai on September 23, 2015 at 7:30pm — 8 Comments
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