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'मदारी अपने-पराये' (लघुकथा) :

आज भी मुहल्ले में  मदारी के डमरू की धुन पर बंदर और रस्सी पर संतुलन बनाती बच्ची के खेल देख कर दर्शक तालियां बजाते रहे। फिर परंपरा के अनुसार कुछ पैसे फेंके गये। फिर भीड़ छंटने लगी। कुछ लोग चर्चा करने लगे :

"कितनी दया आ रही थी उस भूखे बंदर और भूखी कमज़ोर सी बच्ची को देख कर!" एक आदमी ने अपने साथी से कहा।

"हां, कितना ख़ुदग़र्ज़ और दुष्ट मदारी था वह!" साथी बोला।

"पहले तो खेल का मज़ा ले लिया और अब उन पर हमदर्दी जता रहे हो!" तीसरे आदमी ने बीच में आकर उन दोनों के कंधों पर हाथ…

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Added by Sheikh Shahzad Usmani on March 6, 2018 at 1:31am — 7 Comments

दिया तले अंधेरा

रोशनी ही रोशनी है चारों तरफ तो क्या हुआ

दिया तले तो फिर भी अंधेरा ही हुआ,

खबर नहीं उनको मेरे इश्क़ की तो क्या हुआ

पर इश्क़ तो मुझे उनसे सच्चा ही हुआ,

है हर धड़कन पर उन्हीं का कब्जा तो क्या हुआ

अब दिल भी तो उन्हीं का ही हुआ,

उनको मेरी ग़ज़ल पसंद नहीं तो क्या हुआ

पर उनका हर लफ़्ज तो ग़ज़ल ही हुआ,

मुहब्बत में मिले जख़्म "मल्हार" तो क्या हुआ

उसकी यादें भी तो मरहम ही हुआ,

हम उन्हें हमसफ़र ना बना पाये तो क्या हुआ

उनकी यादों के साथ ये सफ़र ही तो… Continue

Added by रोहित डोबरियाल "मल्हार" on March 5, 2018 at 10:16pm — 2 Comments

क्या बता दूं कि उसने क्या पूछा

2122 1212 22

मुझ से मेरा ही फ़लसफ़ा पूछा ।

क्या बता दूँ कि उसने क्या पूछा ।।

डूब जाने की आरजू लेकर ।

उसने दरिया का रास्ता पूछा ।

देर होनी थी हो गयी है अब ।

वक्त ने मुझसे वास्ता पूछा ।।

था भरोसा नहीं मगर मुझसे ।

मुद्दतों बाद वह गिला पूछा ।।

हिज्र के बाद जी रहे कैसे ।

चाँद ने मेरा हौसला…

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Added by Naveen Mani Tripathi on March 5, 2018 at 7:00pm — 2 Comments

ग़ज़ल : लेके गुलाल हाथ में इक बार देखिये.

लेके गुलाल हाथ में इक बार देखिये.

मुठ्ठी में होगी आपके बहार देखिये.

 

चम्मचों से मात वो चक्की भी खा गई.

आटा भी पाता  रहा संसार देखिये.

 

अच्छे को अच्छा दिखता, दिखता बुरा बुरे को.

आईने सा है मेरा किरदार देखिये.

 

आज़ादी की कीमत आज़ाद ने चुकाई.

लाखों हैं आज इसके हक़दार देखिये.

 

पीतल भी आज देखो स्वर्ण हो गया.

खोटा-खरा बताती झनकार देखिये.

 

आसूदगी को मेरी कुछ और न समझ.

गर्के-उल्फत है…

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Added by Ganga Dhar Sharma 'Hindustan' on March 5, 2018 at 5:35pm — 3 Comments

लघुकथा – अनकही -

लघुकथा – अनकही -

सुनिधि की ससुराल में इस बार पहली होली थी। वह पिछले तीन दिन से अपने देवर को याद दिला रही थी कि होली में तीन दिन बचे हैं।तैयार हो जाओ।

"भाभीजी, मैं होली नहीं खेलता"।

"पर हम तो खेलते हैं।

"आप खेलो ना, आपको किसने रोका है"।

होली के दिन सुनिधि ने देवर के कमरे में झाँक कर देखा, देवर अपने कंप्यूटर में व्यस्त था, वह चुपके से दोनों हाथों में गुलाल लिये गयी और पीछे से देवर के गालों पर मल दिया।देवर एकदम चीख पड़ा,

"माँ, कहाँ हो, जल्दी आओ,  भाभी ने…

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Added by TEJ VEER SINGH on March 5, 2018 at 3:00pm — 12 Comments

अगर माँगू तो थोड़ी सी नफ़ासत लेके आ जाना (इस्लाही)

1222 1222 1222 1222

अगर माँगू तो थोड़ी सी नफ़ासत लेके आ जाना,

मुहब्बत है तो दिल में तुम शराफ़त लेके आ जाना ।

रिवाज़-ओ-रस्म-ए-उल्फ़त को सनम तुम भूल जाना मत,

सफ़र ये आशिक़ी का है नज़ाक़त लेके आ जाना ।

जो दिल तेरा किसी भी ग़ैर के दिल में धड़कता हो,

मगर तुम मेरी ख़ातिर वो अमानत लेके आ जाना ।

वफ़ा के क़त्ल की साज़िश तुम्हारी भूल जाऊँ मैं,

अगर आओ तो अहसास-ए-नदामत लेके आ जाना ।

जो भेजे थे कभी अश्कों से लिखकर…

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Added by Harash Mahajan on March 5, 2018 at 2:30pm — 10 Comments

ग़ज़ल

1212 1122 1212 22

गुजर गया वो गली से सदा नहीं देता ।

हमें तो प्यार का सौदा नफा नहीं देता ।।

मैं भूल जाऊं तुझे अलविदा भी कह दूं पर ।

मेरा जमीर मुझे मश्विरा नहीं देता ।।

गवाही देतीं ।हैं अक्सर ये हिचकियाँ मेरी ।

तू ।मेरी याद को बेशक मिटा नहीं देता ।।

यकीन कर लें भला कैसे उसकी चाहत पर ।

वो शख्स…

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Added by Naveen Mani Tripathi on March 5, 2018 at 1:30am — 6 Comments

ढाकिये अपने ही तन के जख्म कोई गम नहीं ...गजल

2122-2122-2122-212

.

खूबसूरत है चमन चश्मा हटा कर देखिए।।

जीस्त में उल्फत भरा किरदार ला कर देखिए।।

ढाकिये अपने ही तन के जख्म कोई गम नहीं।

पर ये खुशियाँ गैर के चेहरे सजा कर देखिए।।

एक सा होगा नही हर आदमी हर दौर का।

भ्रान्तियों का आँख से चश्मा हटा कर देखिए।।

इक भलाई प्यार की देती है लज्जत बे सबब।

बस जरा घी सोंच में अपनी मिला कर देखिए।।

आदमी से आदमी को बाँटिये हरगिज नही।

मजहबी होता न हर आदम वफ़ा कर…

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Added by amod shrivastav (bindouri) on March 4, 2018 at 4:00pm — 5 Comments

खोया बच्चा(कविता )

खोया बच्चा

 

हिन्दू घर से खोया बच्चा

माँ मम्मी कह रोया बच्चा

गुरूद्वारे का लंगर छक कर

मस्जिद में जा सोया बच्चा |

 

गली मोहल्ला ढूंढ रहा था

उसकों घर घर थाने थाने

दीवारें सब  हाँफ  रहीं थीं 

नींव लगी थी उन्हें बचाने |

 

खुली नींद फिर वो भागा

एक पग में दस डग नापा

थक हार देखी एक बस्ती

निकली चर्च से हँसती अंटी |

 

“तुम शायद घर भूल गया है !

चलों तुम्हें घर से…

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Added by somesh kumar on March 4, 2018 at 2:00pm — 4 Comments

***टेसू***(लघुकथा)राहिला

"जानते हो ? इस पतझड़ के मौसम में वनों का ये उजड़ापन फागुन पर कहीं कलंक ना बन जाये, इसलिये ये टेसू के फूल मांग के सिंदूर की तरह वनों का सौंदर्य बचा लेते है।" वह मंत्रमुग्ध सी उन मखमली जंगली फूलों को निहारती हुई खोई-खोई आवाज़ में बोली। "तुम भी कहाँ हर बात को इतनी गहराई से देखती हो, हद है।" नकुल , फूलों पर उचटती सी नजर डालते हुए मुस्कुरा कर बोला। आज उसकी गाड़ी ससुराल का रास्ता नाप रही थी। "मेरा तो बचपन ही इन्हें फलते-फूलते देखकर गुजरा है। मालूम , छुटपन में इन फूलों को देख कर मैं समझ जाती थी कि होली…

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Added by Rahila on March 3, 2018 at 9:25pm — 7 Comments

ग़ज़ल ( आप से मैं प्यार करना चाहता हूँ )

(फ़ाइलातुन ---फ़ाइलातुन ---फ़ाइलातुन )



बह्रे आतिश पार करना चाहता हूँ |

आप से मैं प्यार करना चाहता हूँ |



जिस खता की आपने मुझको सज़ा दी

वो खता सौ बार करना चाहता हूँ |



शहरे दिलबर छोड़ कर जाने से पहले

मैं विसाले यार करना चाहता हूँ |



बंदिशें मेरी निगाहों पर हैं लेकिन

उन का मैं दीदार करना चाहता हूँ |



फेर कर बैठे हुए हैं आप चहरा

मैं निगाहें चार करना चाहता हूँ |



मैं ख़ुदा हाफ़िज़ तुम्हें कहने से पहले

इश्क़ का…

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Added by Tasdiq Ahmed Khan on March 3, 2018 at 6:30pm — 9 Comments

तरही ग़ज़ल : ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया

212 212 212 212

...

दरमियाँ अब तेरे मेरे क्या रह गया,

फासला तो हुआ पर नशा रह गया ।

उठ चुका तू मुहब्बत में इतना मगर

मैं गिरा इक दफ़ा तो गिरा रह गया ।

ज़ह्र मैं पी गया, बात ये, थी नहीं,

दर्द ये, मौत से क्यों ज़ुदा रह गया ।

मौत से, कह दो अब, झुक न पाऊँगा मैं,

सर झुकाने को बस इक खुदा रह गया ।

टूट कर फिर से बिखरुं, ये हिम्मत न थी,

इस जहाँ को बताता,…

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Added by Harash Mahajan on March 3, 2018 at 4:00pm — 14 Comments

प्रतिज्ञा - लघुकथा –

प्रतिज्ञा - लघुकथा –

 एक खूँखार आतंकी संगठन के सिरफ़िरे मुखिया ने राज्य के मुख्यमंत्री को खूनी चुनौती भरा संदेश भेज कर पूरे राज्य में दहशत फ़ैला दी थी। उसने हिदायत की थी कि इस बार होली पर लाल चौक पर एक भी बंदा गुलाल या किसी भी प्रकार के रंग के साथ दिखा तो लाल चौक को खून से रंग दिया जायेगा। यह हमारा त्यौहार नहीं है इसलिये हम हमारे राज्य में किसी को भी होली खेलने की इज़ाज़त नहीं देंगे। मुख्यमंत्री की नींद उड़ चुकी थी।

आपातकालीन बैठक बुलाई गयी थी। पूरे राज्य में रेड अलर्ट तथा अघोषित…

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Added by TEJ VEER SINGH on March 3, 2018 at 1:38pm — 8 Comments

कुंडलियाँ

होली पर चन्द कुंडलियां

मधुशाला में भीड़ है , होली का उल्लास ।

बुझा रहे प्यासे सभी अपनी अपनी प्यास ।।

अपनी अपनी प्यास पड़े नाली नालों में ।

लगा रहे अब रंग वही सबके गालों में ।।

नशे बाज पर आप , लगा कर रखना ताला ।

कभी कभी विषपान कराती है मधुशाला ।।

सूखा सूखा चित्त है , उलझा उलझा केश ।

होली बैरन सी लगे कंत बसे परदेश ।।

कंत बसे परदेश बिरह की आग जलाये ।

यौवन पर ऋतुराज ,किन्तु यह रास न आये ।।

कोयलिया का गान लगे अब बान…

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Added by Naveen Mani Tripathi on March 2, 2018 at 11:43pm — 9 Comments

होली

होली

समता ममता प्यार मुहब्बत, हिलमिल बाँटे होली में

समरसता औ सत्य अहिंसा,छलके मीठी बोली में

होली की सतरंगी आभा,कण कण में फैलाएंगे

वैर भाव का बीज कहीं पे,हरगिज नहीं उगाएंगे

कूड़े का अम्बार उठाकर,दहन करेंगे होली में

कटुता और विषमता का मिल,हवन करेंगे होली में

रंग गुलाल भाल पर शोभित,प्रेम सहित हो होली में

सहिष्णुता का पाठ पढ़ाएं,करें सभी हित होली में

सब मिलकर हुड़दंग मिटाएँ,मचे रार ना होली में

ताना बाना बुने कर्म का,जुड़े तार इस होली…

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Added by डॉ छोटेलाल सिंह on March 2, 2018 at 10:57pm — 5 Comments

होरी खेलें लखनौआ

होरी खेलें लखनौआ , गंज माँ होरी खेलें लखनौआ

कुर्ता पहिन पजामा पहनिन, सुरमा लग्यो निराला

अच्छे-अच्छे रंग छांड़ि के रंग पुताइन काला

खाक छानि कै गली-गलिन कै मस्त लगावें पौआ

गंज माँ होरी खेलें लखनौआ

 

चौराहन पर मटकी फोरें भर मारें पिचकारी

फगुआ गावैं बात-बात पर मुख से निकसै गारी

भौजी तो हैं भारी भरकम देवर हैं कनकौआ

गंज माँ होरी खेलें लखनौआ

 

गली -मुहल्ले के लड़के हैं सब लखनौआ बाँके

प्यासी आँखों से तिरिया के अंतर्तन…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 2, 2018 at 7:17pm — 5 Comments

ग़ज़ल ,(तेरे चहरे की जब भी अर्गवानी याद आएगी।)

ग़ज़ल ,(तेरे चहरे की जब भी अर्गवानी याद आएगी।)

1222 1222 1222 1222

तेरे चहरे की रंगत अर्गवानी याद आएगी,

हमें होली के रंगों की निशानी याद आएगी।

तुझे जब भी हमारी छेड़खानी याद आएगी

यकीनन यार होली की सुहानी याद आएगी।

मची है धूम होली की जरा खिड़की से झाँको तो,

इसे देखोगे तो अपनी जवानी याद आएगी।

जमीं रंगीं फ़ज़ा रंगीं तेरे आगे नहीं कुछ ये,

झलक इक बार दिखला दे पुरानी याद आएगी।

नहीं कम ब्लॉग में मस्ती…

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Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on March 2, 2018 at 11:30am — 9 Comments

सराबोर कर दे तेरे रंग से अब----होली विशेष

122 122 122 122

मुझे ढ़ाल दे अपने ही ढंग से अब
सराबोर कर खुद के ही रंग से अब

ज़रूरी है  ख़श्बू फ़िज़ाओं में बिखरे
बदन की तुम्हारे मेरे अंग से अब

न मुझसे चला जा रहा होश में है
तू मदहोश कर रूप की भंग से अब

है महफ़िल में भी मन हमारा अकेला
उमंगें इसे दे तेरे संग से अब

न जाने है कैसी जो मिटती नहीं है
मनस सींच तू प्रीत की गंग से अब

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 2, 2018 at 10:30am — 8 Comments

होली के दोह - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

होली के दोह

मन करता है साल में, फागुन हों दो चार

देख उदासी नित डरे, होली  का त्योहार।१।

चाहे जितना भी  करो, होली  में हुड़दंग

प्रेम प्यार सौहार्द्र को, मत करना बदरंग।२।

तज कृपणता खूब तुम, डालो रंग गुलाल

रंगहीन अब ना रहे, कहीं किसी का गाल।३।

फागुन  में  गाते  फिरें, सब  रंगीले फाग

उस पर होली में लगे, भीगे तन भी आग।४।

घोट-घोट के पी  रहे, शिव बूटी कह भाँग

होली में जायज नहीं, छेड़छाड़ का…

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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 1, 2018 at 7:43pm — 23 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
अब कहाँ वो मर्द साहिब (ग़ज़ल 'राज' )

2122  2122  2122  2122

इन बहारों में भी गुल ये हो गये हैं ज़र्द साहिब 

चढ़ गई वहशत कि इनपर क्यूँ अभी से गर्द साहिब 



जब जहाँ चाहा किसी ने सूँघ कर फिर फेंक डाला 

पूछने वाला न कोई नातवाँ का दर्द साहिब



जो रफू कर  दें किसी औरत के आँचल को नज़र से 

अब कहाँ हैं ऐसी नजरें अब कहाँ वो मर्द साहिब



हो गये पत्थर के जैसे  फ़र्क क्या पड़ता इन्हें कुछ 

हो झुलसता दिन या कोई शब ठिठुरती सर्द साहिब 



क्या बचा है मर्म इसमें  क्या करोगे इसको…

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Added by rajesh kumari on March 1, 2018 at 6:35pm — 14 Comments

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