"क्या कर रहे हो, गुड्डू अब तुम यहां? तुमने नई डिक्शनरी की पैकिंग आज भी नहीं खोली! कब से पढ़ना शुरू करोगे, बेटे?"
"नहीं पापा, मैं नहीं पढ़ूंगा! मैंने दिल्ली में ही पिछले विश्व पुस्तक मेले में कह दिया था कि ख़रीदो, तो मेरे पक्के दोस्त के लिए भी ख़रीदो!"
"बेटे, मैंने वैसे भी पांच हज़ार रुपए की पुस्तकें ख़रीद लीं थीं, इसलिए केवल तुम भाई-बहन के लिए ही दो डिक्शनरियां ख़रीदीं थीं। वहां तुम्हारे लिए भी तो कुछ ख़रीदना था दिल्ली के बाज़ार से!"
"कुछ भी हो, मेरे दोस्त को बहुत बुरा लगा है।…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 6, 2019 at 8:52am — 3 Comments
++ग़ज़ल ++(1222 1222 1222 1222 )
हज़ारों बार क़ुदरत ने इशारा तो किया होगा
कभी नाहक कोई तूफ़ान शायद ही उठा होगा
***
जुनूनी है जिसे मंज़िल नज़र भी साफ़ आती है
वही अक़्सर अचानक नींद से उठकर खड़ा होगा
***
समझ रक्खे कोई तो इश्क़ की गलियाँ नहीं देखे
क़दम पहला उठाया वो यक़ीनन सरफिरा होगा
***
नफ़ा-नुक़्सान उल्फ़त में लगाए कौन छोडो…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 5, 2019 at 4:30pm — 4 Comments
२१२२,२१२२,२१२२,२१२
दिल मुहब्बत,लब ख़ुशी,चेह्रा हसीं,क्या शान है
लग रहा है मुझको तेरा नाम हिंदुस्तान है |
छत टपकती ,फर्श मिट्टी का ,मकाँ कच्चा सही
आज़मा ले तू ,बहुत पक्का मेरा ईमान है |
चाँद कल गुमसुम खड़ा था ,देख कर…
ContinueAdded by Md. Anis arman on January 5, 2019 at 4:30pm — 8 Comments
1212,1122, 1212, 22/112
यही सवाल मेरे ज़ेह्न में उभरता है
वो ज़िंदगी के लिए कैसे रोज़ मरता है//१
चली है सर्द हवा पूस के महीने में
किसान खेत में रातों को आह भरता है//२
वो धीरे धीरे मेरे दिल मे यूँ उतर आया
कि जैसे चाँद किसी झील में उतरता है//३
अक़ीदा जोड़ के देखो किसी की उल्फ़त से
जहान सारा नई शक्ल में निखरता है//४
नया ज़माना है फ़ैशन का दौर है यारों
चमन में भौंर भी तितली सा अब सँवरता…
Added by क़मर जौनपुरी on January 5, 2019 at 1:00pm — 2 Comments
(मफा इलुन _फ़ इ ला तुन _मफा इलुन _फ़े लुन)
यूँ ही धुआँ न अचानक उठा है गुलशन में l
लगी है आग यक़ी नन किसी नशे मन में l
मुझे है ग़म यही उन पर शबाब आते ही
मिलें न वैसे वो मिलते थे जैसे बचपन में l
न मैं सुकून से हूँ और न चैन से हो तुम
ये कैसी खींच ली दीवार हम ने आँगन में l
सितम भी ढाए तो वो मुस्कुरा के ही ढाए
यही तो ख़ास है फितरत हमारे दुश्मन में l
रखें या तोड़ दें बोलें ही सच हमेशा ये
मिले ये…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on January 5, 2019 at 1:00pm — 12 Comments
2122 1212 22
ग़ज़ल
*****
जाम आंखों से अब पिला साक़ी
होश मेरे तू अब उड़ा साक़ी//१
ज़िन्दगी भर रहा हूँ मैं काफ़िर
अपना कलमा तू अब पढ़ा साक़ी//२
इल्म के बोझ से परेशां हूँ
इल्म सारे मेरे भुला साक़ी//३
रंग मेरा उतर गया अब तो
रंग अपना तू अब चढ़ा साक़ी//४
बेख़ुदी ज़ीस्त में समा जाए
जाम ऐसा कोई पिला साक़ी//५
ख़्वाब आएं तो सिर्फ तेरे हों
ख़्वाब से ख़्वाब तू मिला साक़ी//६
हो गया मैं फ़ना…
ContinueAdded by क़मर जौनपुरी on January 4, 2019 at 9:30pm — 6 Comments
बह्र : 221 1221 1221 122
वो ज़हर का प्याला है, उठाना ही नहीं था
दुनिया की तरफ़ आपको जाना ही नहीं था
कानों में यहाँ रूई सभी बैठे हैं रख के
ऐसे में तुम्हें शोर मचाना ही नहीं था
खेतों में लहू देख के करते हो शिकायत
हथियार ज़मीनों में उगाना ही नहीं था
ये कौन जगह है कि जहाँ होश में सब हैं
हम रिन्द हैं हमको यहाँ लाना ही नहीं था
ताउम्र उसी शहर में ही भटका किया मैं
रहने को जहाँ कोई ठिकाना ही नहीं…
Added by Mahendra Kumar on January 4, 2019 at 8:00pm — 12 Comments
नए वर्ष की भोर ....
क्षण
दिन, महीने
सब को बांधे
चल दिया
पुराना वर्ष
तम के गहन सागर को पार कर
दूर क्षितिज पर
नव वर्ष के गर्भ से
अंकुरित होते
सूरज की अगवानी करने
अच्छा बीता
बुरा बीता
जैसा भी बीता बीत गया
एक स्वप्न
स्वप्न रहा
एक यथार्थ जीत गया
नए वर्ष की भोर हुई
वर्ष पुराना बीत गया
जीती ख़ुशी
या दर्द जीता
जो भी जीता जीत गया
दर्द पुराना रीत गया
नए वर्ष की…
Added by Sushil Sarna on January 4, 2019 at 7:49pm — 7 Comments
( २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २ )
.
लगता है इस साल सनम कटनी तन्हाई मुश्किल है
बीते लम्हों के सहरा से हैफ़* ! रिहाई मुश्किल है (*हाय-हाय ,अफ़सोस )
***
ख्वाब तसव्वुर ख़त मौसम ये चाँद बहाने कितने हैं
तेरी यादों के लश्कर से यार जुदाई मुश्किल है
***
माना ग़म की मार पड़ी है चारों खाने चित्त हुआ
कैसे भी हों मेरे अब हालात गदाई* मुश्किल…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 4, 2019 at 3:30pm — 7 Comments
जब वो कहता है तो वो कहता है
रोक पाता नहीं उसे कोई ,
उसके आगे ना रंक, राजा है ,
कंठ में कोयल सा उसके वासा है ॥
जब भी कहता है सच ही कहता है
जैसे बच्चा हृदय में रहता है ,
उसके…
ContinueAdded by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 4, 2019 at 1:00pm — 8 Comments
तेरी मीठी बातों से ही
भरता मेरा पेट प्रिय,
जिस दिन तू गुमसुम रहती है-
भूखा मैं सो जाता हूँ !!
मैखाना, ये आँखें तेरी
पीने दे मत रोक प्रिय,
जब जब ये छलका करती हैं-
और बहक मैं जाता हूँ !!
रहता हूँ तेरे दिल में मैं
बनकर तेरा दास प्रिय,
जब भी टूटा है दिल तेरा-
तब मैं बेघर हो जाता हूँ !!
मदहोश सा कुछ हो जाता हूँ
जब होती हो तुम साथ प्रिय,
छू कर निकलूँ जो लव तेरे तो-
ज़ुल्फ़ों में खो जाता हूँ…
Added by रक्षिता सिंह on January 3, 2019 at 6:41pm — 4 Comments
इस भारत माँ की, धरती पर,
एक वीर, ऐसा जन्मा था, सोचा था तब, किसी ने
“ऐसा” कारनामा, उसे करना था
इस भारत माँ की, धरती पर,
एक वीर, ऐसा जन्मा था ||
जीवन के संघर्षो से, ना उसे कभी
डरना था, रूढ़िवादी धारा को भी,
उसे, आगे जा बदलना था
इस भारत माँ की, धरती पर,
एक वीर, ऐसा जन्मा था ||
सती हो जाती थी, जो नारी,
सुहाग गंवाने पर, “पुर्नविवाह”,
का अधिकार, उसे दिलाना था
महिलाओं के उत्पीड़न की…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 3, 2019 at 4:34pm — 2 Comments
1212, 1122, 1212,22/112
*****
चले भी आओ मेरे यार दिल बुलाता है
यूँ रूठकर भी भला अपना कोई जाता है//1
सज़ा भी दे दो मुझे अब मेरे गुनाहों की
उदास चेहरा तुम्हारा नहीं सुहाता है//२
उदास तुम जो हुए ज़िंदगी उदास हुई
कोई भी जश्न मुझे अब नहीं हंसाता है//३
तुम्हारे दम से ही हर सुब्ह मेरी ज़िंदा थी
हर एक शाम का मंज़र मुझे रुलाता है//४
नज़र फिराई जो तुमने वो एक लम्हे में
हर एक लम्हा ही ठोकर लगा के जाता…
Added by क़मर जौनपुरी on January 3, 2019 at 2:30pm — 3 Comments
बह्र ए मीर
अब तक रहे भटकते उजड़े दयार में
अब कौन बसा आन दिले बेक़रार में
जिस रास्ते पे उनकी मन्ज़िलें नहीं
उस राह में खड़े हैं इन्तज़ार में
बेकार हर सदा है कितना पुकारता
ये कौन सो रहा है गुमसुम मज़ार में
उस फूल को ख़िज़ायें ले के कहाँ गईं
जिस फूल को चुना था लाखों हजार में
ऐ मीत इस कदर भी मत आज़मा मुझे
आ जाये न कमी 'ब्रज' के ऐतबार में
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 3, 2019 at 2:30pm — 4 Comments
(1212 1122 1212 22 /112 )
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बना हूँ ज़ीस्त में मर्ज़ी से मेरी आबिर* भी (*राहगीर )
फ़क़ीर मीर कभी और कभी मुसाफ़िर भी
*
किया शुरू'अ जहाँ से सफ़र न सोचा था
उसी जगह पे सफर होगा मेरा आखिर भी
*
ये दौड़भाग तो पीछा कभी न छोड़ेगी
ज़रा सा वक़्त निकालो ना ख़ुद की ख़ातिर भी
*
किसी ग़रीब की हालत का ज़िक़्र क्या…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 3, 2019 at 10:00am — 10 Comments
1212 1122 1212 22/112
.
सुहानी शाम का मंज़र अजीब होता है
भुला दिया था जिसे वो क़रीब होता है//१
वो पाक जाम मिटा दे जो प्यास सदियों की
किसी किसी के लबों को नसीब होता है//२
मिली जहाँ में जिसे भी दुआ ग़रीबों की
नहीं वो शख़्स कभी बदनसीब होता है//३
वफ़ा से दे न सका जो सिला वफ़ाओं का
वही जहान में सबसे ग़रीब होता है//४
करे मुआफ़ जो छोटी बड़ी ख़ताओं को
वही तो जीस्त में सच्चा हबीब होता है//५
क़लम की…
ContinueAdded by क़मर जौनपुरी on January 3, 2019 at 7:00am — 4 Comments
पास रखना है भला जो।
छोड़ देेेेना दिल जला जो।
क्या मनाये वो खुशी को,
खुद मनाने दिल चला जो।
रौशनी हम तब मिली है ,
रात भर दीया जला जो।
आम का बन खास जाना,
कुछ तो अच्छा दिन ढला जो।
रोज़ कहता मुझ बता दे
राज़ उस खोला भला जो।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by मोहन बेगोवाल on January 2, 2019 at 5:00pm — 3 Comments
*रक्तसिक्त हाथ* (लघुकथा)
हवालाती कैदी के रूप में तीसरा दिन। किसी से मुलाक़ात के लिए उसे भी पुकारा गया। मुलाकात कक्ष में पहुँचते ही सींखचों के पार एक मुस्कुराता चेहरा नज़र आया।
काजू कतली का डिब्बा आगे बढ़ाते हुए जिसने कहा, ''रजिस्ट्री हो गई साहब! मुँह मीठा करवाने आया हूँ।"
कुछ ही समय पहले जो बिलकुल अंजान था, वही चेहरा अहर्निशं अब उसकी आंखों और दिमाग़ में तैरता रहता है।
सत्यवीर भान का चेहरा। आज दूसरी बार इस चेहरे पर भयानक मुस्कुराहट देख पा रहा था। जिसे देखकर उसे स्मरण हो…
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 2, 2019 at 9:26am — 14 Comments
कैसा होगा नया साल यह, कहना शायद मुश्किल है
मनोकामना सम्भव है पर , अच्छी हो सबकी ख़ातिर |
***
लिखा नियति ने जो इस पर है निर्भर क्या हो अगले पल |
कृपा बरस जाये प्रभु की या जीवन से हो जाये छल |
लेकिन अच्छा सोचोगे तो होगा जीवन में अच्छा
बुरा अगर सोचा तो वैसा सम्भव है हो जाये कल |
ज्योतिष-ज्ञान सभी की ख़ातिर रखना शायद मुश्किल…
Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on January 1, 2019 at 10:00pm — 8 Comments
नवीन वर्ष को लिए, नया प्रभात आ गया
प्रभा सुनीति की दिखी, विराट हर्ष छा गया
विचार रूढ़ त्याग के, जगी नवीन चेतना
प्रसार सौख्य का करो, रहे कहीं न वेदना।।1।।
मिटे कि अंधकार ये, मशाल प्यार की जले
न क्लेश हो न द्वेष हो, हरेक से मिलो गले
प्रबुद्ध-बुद्ध हों सभी, न हो सुषुप्त भावना
हँसी खुशी रहें सदा, यही 'सुरेन्द्र' कामना।।2।।
न लक्ष्य न्यून हो कभी, सही दिशा प्रमाण हो
न पाँव सत्य से डिगें, अधोमुखी न प्राण हो
विवेकशीलता लिए,…
Added by नाथ सोनांचली on January 1, 2019 at 8:30pm — 8 Comments
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