२१२२/२१२२/२१२
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दर्पणों से कब हमारा मन लगा
पत्थरों के मध्य अपनापन लगा.
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लिप्त है माया में अपना ही शरीर
ये समझ पाने में इक जीवन लगा.
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तप्त मरुथल सी ह्रदय की धौंकनी
हाथ जब उस ने रखा चन्दन लगा.
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मूर्खता पर करते हैं परिहास अब
जो था पीतल वो हमें कुन्दन लगा.
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प्रेम में भी कसमसाहट सी रही
प्रेम मेरा आपको बन्धन लगा.
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जल रहे हैं हम यहाँ प्रेमाग्नि में
और उस पर ये मुआ सावन लगा.…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 9, 2017 at 10:00am — 37 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on May 8, 2017 at 8:00pm — 10 Comments
221 1221 1221 122
***
उल्फत न सही बैर निभाने के लिए आ
चाहत के अधूरे से फ़साने के लिए आ
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चाहत भरी दस्तक भी सुनी थी कभी दिल ने
वीरानियों को फिर से बसाने के लिए आ
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शब्दों की कमी तो मुझे हरदम ही रही है
खामोश ग़ज़ल कोई सुनाने के लिए आ
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सागर ये गमों का कहीं तट तोड़ न जाए
ऐ राहते जां बांध बनाने के लिए आ
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रौशन दरो दीवार है झिलमिल है सितारे
ऐ चाँद मेरे मुझको…
Added by अलका 'कृष्णांशी' on May 8, 2017 at 4:00pm — 10 Comments
कविता ने
चूमा
उसके
दिल को
मायनों में
एक आदमी में
कभी नहीँ
था
इतना
साहस
(मौलिक एवं अप्रकाशित )
Added by narendrasinh chauhan on May 8, 2017 at 12:34pm — 5 Comments
Added by साक्षी शर्मा on May 8, 2017 at 10:06am — 11 Comments
एक ग़ज़ल का प्रयास
२१२२ २१२२ २१२
नींद में आकर सताता है मुझे
ख्वाब भी तेरा जगाता है मुझे
झूमती आती घटायें बदलियाँ,
प्यार का मौसम बुलाता है मुझे
सर्दियों में सूर्य भाया था बहुत, …
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 8, 2017 at 10:00am — 14 Comments
2122 1212 22 /112
क़ैद को क्यों नजात कहता है
क्या कज़ा को हयात कहता है ?
तीन को अब जो सात कहता है
बस वही ठीक बात कहता है
क्यूँ न तस्लीम उसको कर लूँ मैं
वो मिरे दिल की बात कहता है
कैसे कह दूँ कि वास्ता ही नहीं
रोज़ वो शुभ प्रभात कहता है
ऐतराज उसको है शहर पे बहुत
हाथ अक्सर जो हात कहता है
उसकी बीनाई भी है शक से परे
जो सदा दिन को रात कहता है
जीत जब…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 8, 2017 at 10:00am — 21 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 8, 2017 at 7:00am — 12 Comments
बह्र-22/22/22
सूखे-सूखे जंगल अब,
रूठे-रूठे बादल अब ।
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वादे, नारे सब झूठे,
बदले-बदले हैं दल अब ।
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देखो किसकी साज़िश है,
रिश्ते-नाते घायल अब ।
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बोतल में ऊँचे दामों,
बिकता है गंगा जल अब ।
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ग़रीब के घर भी यारों,
ख़ुशियों वाला हो पल अब ।
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मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on May 7, 2017 at 9:00pm — 13 Comments
Added by योगराज प्रभाकर on May 7, 2017 at 7:30pm — 18 Comments
1222 1222 1222 1222
ललक दिल को रिझाने की जो खूनी हो गई होगी
किसी का सुख किसी की पीर दूनी हो गई होगी।1।
सभी के हाथ में गुल हैं यहाँ जुल्फें सजाने को
न जाने किस चमन की शाख सूनी हो गई होगी।2।
हवा बंदिश की सुनते हैं बहुत शोलों को भड़काए
मुहब्बत यार कमसिन की जुनूनी हो गई होगी।3।
हमें तो सुख रजाई का मिला है शीत में यारो
किसी जंगल में फिर से तेज धूनी हो गई होगी।4।
नहीं उसको…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 7, 2017 at 1:19pm — 12 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on May 7, 2017 at 8:03am — 27 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 6, 2017 at 11:08pm — 4 Comments
कौन भरेगा पेट
छोड़ा गाँव आज बुधिया ने,
बिस्तर लिया लपेट
उपजायेगा कौन अन्न अब,
कौन भरेगा पेट
गायब हैं घर में खिड़की अब,
दरवाजों की चलती है
आज कमी आँगन की हमको,
बहुत यहाँ…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 6, 2017 at 7:30pm — 10 Comments
१.
निद्राधीन निस्तब्धता
कुलबुलाता शून्य
सनसनाता पवन
डरता है मन
अर्धरात्रि में क्यूँ
कोई खटखटाता है द्वार
प्रलय, सोने दो आज
------
२.
मेरी ही गढ़ी तुम्हारी आकृति
बारिश की बूँदें
तुम्हारे आँसू
तुम्हारी खिलखिलाती हँसी
कल्पना ही तो हैं सब
वरना
मुद्दतें हो गई हैं तुमसे मिले
-----
३.
कभी अपना, कभी
अपनी छाया का…
ContinueAdded by vijay nikore on May 6, 2017 at 10:24am — 24 Comments
मोमबत्ती जलाते हुए एक व्यक्ति ने कहा-"लो हम भी निर्भया के नाम आज एक मोमबत्ती जला देते हैं उसकी मम्मी की तरह!"
"तो निर्भया और उसकी मम्मी के नाम हो जाये एक और जाम!" दूसरे व्यक्ति ने अगला पैग बनाते हुए कहा।"
"सालों को रेप और वो सब करना ही था, तो ऐसे करते कि फांसी की सज़ा न हो पाती! गये साल्ले काम से, फांसी की सज़ा कन्फर्म!" अख़बार का मुख्य पृष्ठ लहराते हुए तीसरे व्यक्ति ने नशे में कहा।
पांच साल पहले निर्भया नाम की युवती पर कुछ युवकों ने एक निजी बस में हमला कर निर्ममता से बलात्कार…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 6, 2017 at 10:00am — 10 Comments
1- आंतरिक सम्बन्ध
**************
मैंने पीटा तो दरवाज़ा था
हिल उठी साँकल ...
खड़ खड़ कर के ....
और..
आवाज़ अन्दर से आयी
कौन है बे.... ?
बस...
मै समझ गया
तीनों के आंतरिक सम्बन्धों को
******
2- आग और पानी
*****************
आग बुझे या न बुझे
आग लग जाना दुर्घटना है, या साजिश
किसे मतलब है
इन बेमतलब के सवालों से
ज़रूरी है, अधिकार ....
पानी पर
सारा झगड़ा इसी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 6, 2017 at 9:00am — 12 Comments
1222 1222 1222 1222
नजर से दूर रहकर भी जो दिल के पास रहती है
कभी नींदें चुराती है कभी ख्वाबों में मिलती है.
चमकना चाँद सा उसका मेरी हर बात पर हँसना
कहीं फूलों की नगरी में कोई वीणा सी बजती है.
ये भोलापन हमारा है कि है जादूगरी उसकी
वफ़ा फितरत नहीं जिसकी वही दिलदार लगती है.
कभी मैं भूल जाऊँगा उसे कह तो दिया लेकिन
जो दिल पर हाथ रक्खा तो वही धड़कन सी लगती है.
तुम्हारा जो बचा था पास मेरे ले लिया तुमने…
ContinueAdded by Neeraj Neer on May 6, 2017 at 7:55am — 19 Comments
सुनसान रात में लगभग तीन घंटे दौड़ने के बाद वह सैनिक थक कर चूर हो गया था और वहीँ ज़मीन पर बैठ गया। कुछ देर बाद साँस संयत होने पर उसने अपने कपड़ों में छिपाया हुआ मोबाईल फोन निकाला। उस पर नेटवर्क की दो रेखाएं देखते ही उसकी आँखों में चमक आ गयी और बिना समय गंवाये उसने अपनी माँ को फोन लगाया। मुश्किल से एक ही घंटी बजी होगी कि माँ ने फोन उठा लिया।
सैनिक ने हाँफते स्वर में कहा, “माँ मैं घर आ रहा हूँ।”
“अच्छा! तुझे छुट्टी मिल गयी? कब तक पहुंचेगा?” माँ ने ख़ुश होकर प्रश्न…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on May 5, 2017 at 11:00pm — 8 Comments
22 22 22 22 22 22 22 2
दिल के तख़्त पे हाए हमने किस ज़ालिम को बिठा लिया
दिल की बस्ती को ही उजाड़ा उसने ऐसा काम किया।
'लुटे हुए अरमानों को वापिस लाऊंगा' बोला था
लेकिन जो था पास हमारे वो भी हमसे छीन लिया।
अब कहता है, इश्क़ में सब आशिक़ ऐसा ही करते हैं
मैंने भी गर झूठे वादे किए तो कोई पाप किया।
कितनी बार रकीबों ने अरमानों के सर काटे हैं
और वो बस इतना कहते हैं बुरा किया भई बुरा…
Added by Gurpreet Singh jammu on May 5, 2017 at 11:00am — 17 Comments
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