नेह रचित इक बाती रखना
दीप दान की थाती रखना
जग के अंकगणित में उलझे
कुछ सुलझे से कुछ अनसुलझे
गठबंधन कर संबंधों की
स्नेहिल परिमल पाती रखना
कुछ सहमी सी कुछ सकुचाई
जिनकी किस्मत थी धुंधलाई
मलिन बस्तियों के होठों पर
कलियाँ कुछ मुस्काती रखना
बंद खिडकियों को खुलवाकर
दहलीजों पर रंग सजाकर
जगमग बिजली की लड़ियों से
दीपमाल बतियाती रखना
मधुरिम मधुरिम अपनेपन…
ContinueAdded by vandana on October 14, 2017 at 9:30pm — 8 Comments
Added by surender insan on October 14, 2017 at 8:30pm — 8 Comments
Added by Mohammed Arif on October 14, 2017 at 12:00pm — 11 Comments
काफिया :अर ; रदीफ़ :दिल –ओ- दिलदार
बहर : १२१२ ११२२ १२१२ २२(१ )
कहीं वही तो’ नहीं वो बशर दिल-ओ-दिलदार
जिसे तलाशती’ मेरी नज़र दिल-ओ-दिलदार |
हवा के’ झोंके’ ज्यों’ आते सदा सनम मेरे
नसीम शोख व महका मुखर दिल-ओ-दिलदार |
सूना उसे कई’ गोष्टी में’, फिर भी’ प्यासा मन
अज़ीज़ है वही आवाज़ हर दिल-ओ-दिलदार |
कभी हुई न समागम, कभी नहीं कुछ बात
हिजाब में सदा रहती मगर दिल-ओ–दिलदार |
गए विदेश को’ महबूब…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on October 14, 2017 at 10:00am — 8 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 13, 2017 at 4:57pm — 13 Comments
122 122 122 122
....
महब्बत की राहों में जाने से पहले.
ज़रा सोचिए दिल लगाने से पहले.
.
बहारों का इक शामियाना बना दो.
ख़िज़ाओं को गुलशन में आने से पहले.
.
गिरेबान में झांक कर अपने देखो.
किसी पर भी उंगली उठाने से पहले.
.
ग़रीबों की आहों से बचना है मुश्क़िल.
ये तुम सोच लो दिल दुखाने से पहले.
.
कभी चल के शोलों पे देखो रज़ा तुम.
महब्बत की बस्ती जलाने से पहले.…
Added by SALIM RAZA REWA on October 13, 2017 at 3:00pm — 17 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 12, 2017 at 6:48pm — 10 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 12, 2017 at 5:30pm — 13 Comments
२१२२ १२१२ २२
जिन्दगी से जबाब माँगेगा
लम्हा लम्हा हिसाब माँगेगा
जिसमे लिक्खा हुआ गणित तेरा
वक़्त ऐसी किताब माँगेगा
देख तेरा खुला हुआ वो सबू
खाली प्याला शराब माँगेगा
रंग बदले भले कई मौसम
फूल अपना शबाब माँगेगा
कैद जिसके लिए किया जुगनू
कल वही माहताब माँगेगा
पाक नीयत से देखना उसको
चाँद वरना निकाब माँगेगा
कैद तेरी किताब में अबतक
अपनी खुशबू गुलाब…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 12, 2017 at 9:11am — 34 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 11, 2017 at 11:30pm — 10 Comments
मुझे रात भर ये भगाता बहुत है।
सवालों का पंछी सताता बहुत है।।
कभी भूख से बिलबिलाता ये आए
कभी आँख पानी भरी ले के आए
कभी खूँ से लथपथ लुटी आबरू बन
तो आये कभी मेनका खूबरू बन
ये धड़कन को मेरी थकाता बहुत है
सवालों का पंछी सताता बहुत है।।1।।
कभी युद्ध की खुद वकालत करे ये
अचानक शहीदों की बेवा बने ये
कभी गर्भ अनचाहा कचरे में बनकर
मिले है कभी भ्रूण कन्या का बनकर
निगाहों को मेरी रुलाता बहुत…
ContinueAdded by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 11, 2017 at 9:30pm — 4 Comments
Added by santosh khirwadkar on October 11, 2017 at 8:53pm — 8 Comments
1222-1222-1222-1222
जनम होगा तो क्या होगा मरण होगा तो क्या होगा
तिमिर से जब भरा अंतःकरण होगा तो क्या होगा
हरिक घर से यूँ सीता का हरण होगा तो क्या होगा
फिर उसपे राम का वो आचरण होगा तो क्या होगा
मेरे अहले वतन सोचो जो रण होगा तो क्या होगा
महामारी का फिर जब संक्रमण होगा तो क्या होगा
वो ही ख़ैरात बांटेंगे वो ही एहसां जताएंगे
विमानों से निज़ामों का भ्रमण होगा तो क्या होगा
जमा साहस है सदियों से हमारी देह में अबतक
नसों…
Added by Balram Dhakar on October 11, 2017 at 6:00pm — 16 Comments
212/212/212/212
याद तुमने किया हिचकियाँ आगईं
दिल की तस्कीन को बदलियाँ आगईं।
ज़ेर ए तामीर था ये नशेमन मेंरा
फू़ंकने को इसे बिजलियाँ आगईं।
तू नहीं आसका हाल तेरा मगर
लेके अख़बार की सुर्ख़ियाँ आगईं।
जब तड़प कर गुलों ने पुकारा उन्हें
लब हसीं चूमने तितलियाँ आ गईं।
गर्म साँसों की औढ़ा दो मुझको रिदा
लौट कर फिर वो ही सर्दियाँ आ गईं।
चाह दिल में तेरे वस्ल की जब जगी
लम्स तेरा लिये चिट्ठियाँ आ गईं।…
Added by Afroz 'sahr' on October 11, 2017 at 5:30pm — 7 Comments
२२/२२/२२/२२/
कर्म अगर साधारण होगा
कैसे नर...नारायण होगा.
.
सच्चाई की राह चुनी है
पग पग दोषारोपण होगा.
.
जिस के भीतर विष का घट है
उस पर छद्म-आवरण होगा.
.
कठिनाई भी बहुत ढीठ है
इस से जीवन भर रण होगा.
.
बस्ती बाद में सुलगाएँगे
पहले प्रेम पे भाषण होगा.
.
मन में दृढ़ विश्वास न हो फिर
कैसे कष्ट निवारण होगा.
.
दसों दिशाओं में शासन है
शासक .. शायद रावण होगा.
.
उजड़ेगा…
Added by Nilesh Shevgaonkar on October 11, 2017 at 3:52pm — 29 Comments
विरहाकुल था दीन यक्ष उसको कुछ समझ नहीं आया
वारिवाह से गुह्य याचना ही करना उसको भाया
लोक-ख्यात पुष्कर-आवर्तक जलधर बड़े नाम वाले
उनके प्रिय वंशज हो तुम हे वारिवाह ! काले-काले
प्रकृति पुरुष तुम कामरूप तुम इन्द्रसखा तुमको जानूं
विधिवश प्रिय से हुआ दूर हूँ तुम्हे मीत हितकर मानूं
तुम यथार्थ परिजन्य मूर्त्त हो मैं…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 11, 2017 at 11:00am — 4 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on October 11, 2017 at 9:00am — 13 Comments
Added by Mohammed Arif on October 10, 2017 at 11:32pm — 16 Comments
जीवन डगर बहुत पथरीली
संभलो मनुज सुजान,
जागे हिंदुस्तान हमारा जागे हिंदुस्तान।
हिन्दू मुस्लिम भाई भाई प्रेम का धागा टूट गया।
न जाने कितनी माँगो का फिर से ईंगुर रूठ गया।
मानवता जब दानवता की चरण पादुका धोती है,
तभी मालदा वाली घटना तभी पूर्णिया रोती है।
धर्म के पहरेदारों बोलो,
कब लोगे संज्ञान।।
जागे--------
संस्कार की नींव हिल गयी बिका हुस्न बाजरों में।
कर्णधार जो बनकर आये लिप्त हुए व्यभिचारों में।
जाति पांति के भेदभाव…
Added by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on October 10, 2017 at 9:30pm — 8 Comments
शुचित यज्ञ सी
मन प्राणों में घोल सुगन्धि,
आँगन में त्यौहार सरीखे मेरे पापा...
थाम अँगुलियाँ जिनकी
हर उलझी पगडण्डी लगी सरल सी,
ज़मी किरचियाँ व्यवहारों की
पिघल हृदय से बहीं तरल सी,
सबकी ख़ातिर बोए पग-पग
गुलमोहर और छाँटे कीकर,
सौंपी सबको ख़ुशियों की प्याली
ख़ुद पी हर व्यथा गरल सी,
फिर भी…
Added by Dr.Prachi Singh on October 10, 2017 at 9:30pm — 7 Comments
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