For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

October 2018 Blog Posts (124)

बहुत पछतायेगा वो मेरा पता पा कर - ग़ज़ल

बह्र - 1222-122-2212-22

कोई यूँ खुश हुआ हो अपना खुदा पाकर।।

बहुत पछताएंगे वो मेरा पता पाकर।।

सफर चलना है कैसे ,लेकर चलन कैसा।

उन्हें अहसास होगा ,आबोहवा पाकर।।

वो अपनी ज़द में ही अपना आशियाँ चुन लें ।

कहाँ होता है आदम से बा वफ़ा पाकर।।

मुझे अब मुल्क़ से ये मजहब ही निकालेगा ।

बहुत खुश है मुझे यह जलता हुआ पा कर ।।

मैं अपनी आरजू अब अपना कहूँ कैसे ।

ये तो खुश है मेरे बच्चों से दगा पा कर…

Continue

Added by amod shrivastav (bindouri) on October 18, 2018 at 7:29pm — No Comments

अनकहा ...

अनकहा ...

अभिव्यक्ति के सुरों में

कुछ तो अनकहा रहने तो

अंतस के हर भाव को

शब्दों पर आश्रित मत करो

अंतस से अभिव्यक्ति का सफर

बहुत लम्बा होता है

अक्सर इस सफ़र में

शब्द

अपना अर्थ बदल देते हैं

शब्दों अवगुंठन में

अभिव्यक्ति

मात्र मूक व्यथा का

प्रतिबिम्ब बन जाती है

भावों की घुटन

मन कंदराओं में

घुट के रह जाती है

जीने के लिए

कुछ तो शेष रहने दो

अभिव्यक्ति के गर्भ में

कुछ तो…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 17, 2018 at 6:30pm — 6 Comments

परछाईयों का भय - लघुकथा

पिछले कुछ घंटों से उदास दिख रहे अपने दोस्त को देखकर उससे रहा नहीं गया. "क्या हो गया राजमन, बहुत उदास लग रहे हो".

राजमन ने एक नजर उसकी तरफ डाली और सोच में पड़ गया कि तेजू को बात बताएं कि नहीं. लेकिन तेजू तो उसकी हर बात, हर राज से वाकिफ़ था इसलिए उसे बताने में कोई हर्ज भी नहीं था.

"यार, तुम तो देख ही रहे हो ये आजकल का ट्रेंड, जिसे देखो वही इस #मी टू# के बहाने लोगों के नाम उछाल रहा है. रिटायरमेंट के बाद अब कहीं कोई मेरे खिलाफ भी यह चैप्टर न खोल दे, यही सोचकर घबरा रहा हूँ".

तेजू ने…

Continue

Added by विनय कुमार on October 17, 2018 at 5:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल



1212 1122 1212 212



खिजा के दौर में जीना मुहाल कर तो सही ।

मेरी वफ़ा पे तू कोई सवाल कर तो सही ।।

है इंतकाम की हसरत अगर जिग़र में तेरे ।

हटा नकाब फ़िज़ा में जमाल कर तो सही ।।

निकल गया है तेरा चाँद देख छत पे ज़रा ।

तू जश्ने ईद में मुझको हलाल कर तो सही ।।

बिखरता जाएगा वो टूट कर शजर से यहां ।

निगाह से तू ख़लिस की मज़ाल कर तो सही ।।

मिलेंगे और भी आशिक तेरे जहां में अभी ।

तू अपने हुस्न की कुछ देखभाल कर तो सही…

Continue

Added by Naveen Mani Tripathi on October 17, 2018 at 3:49pm — 7 Comments

राजनीति के दोहे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

नेताओं की मौज है, राजनीति के गाँव

छाले लेकर घूमती, जनता दोनों पाँव।१।



सत्ता  बाहर  सब  करें, यूँ  तो  हाहाकार

पर मनमानी नित करें, बनने पर सरकार।२।



जन की चिंता कब रही, धन की चिंता छोड़

कौन  मचाये  लूट  बढ़, केवल  इतनी  होड़।३।



कत्ल,डैकेती,अपहरण, करके लोग हजार

सिखा रहे हैं  देश  को, हो  कैसा व्यवहार।४।



साठ बरस पहले जहाँ, मुद्दा रहा विकास

आज वही संसद करे, बेमतलब बकवास।५।



राजनीति में आ बसे, अब तो खूब…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 17, 2018 at 1:04pm — 4 Comments

यू टू  (you too ) - लघुकथा -

 

 यू टू  (you too ) - लघुकथा -

मेरी छोटी बहिन कुसुम  आठवीँ कक्षा में थी। उम्र चौदह साल  होगी।

उस दिन वह छत पर कागज के जहाज बना कर उड़ा रही थी। उसी वक्त पिताजी का घर आना हुआ और कुसुम का उड़ाया हुआ जहाज पिताजी  से टकराया। पिताजी ने उस कागज के जहाज को उठा लिया। खोल कर देखा तो वह एक प्रेम पत्र था।लेकिन उस पर किसी का नाम नहीं था, ना पाने वाले का ना भेजने वाले का। "प्रिय" से शुरू किया था और "तुम्हारी" से अंत किया था।

 पिताजी ने छत पर कुसुम को देखा तो उनका गुस्सा सातवें…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on October 17, 2018 at 11:52am — 4 Comments

नज़्म - कहाँ जाऊँ के तेरी याद का

कहाँ जाऊँ के तेरी याद का झोंका नहीं आये,

कि तेरे साथ का गुज़रा कोई लम्हा न तड़पाये,

कभी कपड़ों में मिल जाते हैं तेरे रंग के जादू,

मुझे महका के जाती हैं तेरे ही ब्राण्ड की ख़ुश्बू ,

मेरे हाथों की मेहंदी में तेरा ही अक़्स उभरे है,

मेरी साँसों में भी जानां तेरी ही साँस महके है,

पसंदीदा तुम्हारा जब कोई खाना बनाती हूँ,

तुम्हारे नाम की थाली अलग से मैं लगाती हूँ,

मिला कर दर्द में आँसू तेरा चेहरा बनाती हूँ,

मैं…

Continue

Added by Anita Maurya on October 17, 2018 at 9:00am — 4 Comments

ग़ज़ल-वक्त आने दो जरा फ़िर

वक़्त आने दो ज़रा फ़िर न झुकूंगा देख लेना ।

एक दिन पत्थर पे पानी से लिखूंगा देख लेना ।

.

मैं तेरे रहमोकरम की काफिरी करता नही हूँ ।

हूँ मुकम्मल एक तूफ़ां जब उडूँगा देख लेना ।

.

हौसला रख चल पड़ा हूँ रौशनी लाने दिलों में ।

एक जुगनू सा अँधेरों से लड़ूँगा देख लेना ।

.

रास्तों में हूँ यक़ीनन दूर मुझसे मंज़िलें, पर ।

चल रहा हूँ मंजिलों पर ही रुकूँगा देख लेना ।

.

वक़्त का क्यावक़्त गुज़रेगा अँधेरी रात का भी ।

जगमगाता भोर का…

Continue

Added by रकमिश सुल्तानपुरी on October 17, 2018 at 3:00am — 4 Comments

"केरेक्टर ढीला क्यूं?" (लघुकथा)

आज उनसे कामकाज नहीं हो पा रहा था। गुप्त मंत्रणा कर कोई कठोर निर्णय लिया जाना था।

"अब तो हद हो गई! छात्र-छात्राएं और शिक्षक तक मीडिया का अंधानुकरण करने लगे हैं। हमारी भी कोई प्रतिष्ठा है न!"

"हां भाई! ई-मेल एड्रेस से लेकर गणित और विज्ञान तक में हमारी अहमियत है! ... पर गालियों और अभद्र शब्दों में हम अपना उपयोग अब नहीं होने देंगे! हमारी ईजाद इसलिए थोड़े न की गई थी!"

"बिल्कुल सही कहा तुमने! हमारा अवमूल्यन हो रहा है। ई-मेल के @ से हैश टैग # वग़ैरह के बाद ये मीडिया हमें सांकेतिक…

Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 16, 2018 at 9:43pm — 3 Comments

जलती मुस्कुराहटें

कुछ
छिल रहा है!
भीतर-भीतर!
दुख रहा..
नासूर जैसा!!
क्या है ये!
तुम्हारी चुप्पी?
या मेरी उदासी ??
नस-नस में
बेचैनियाँ!
घड़ी-घड़ी घबराहटें !!
क्यों पड़ी हैं आज ?
जलते तवे पर...
रोटियों की जगह-
मेरी मुस्कुराहटें!!

मौलिक व अप्रकाशित

Added by V.M.''vrishty'' on October 16, 2018 at 9:16pm — 8 Comments

युग द्रष्टा कलाम

युग द्रष्टा कलाम

युग द्रष्टा कलाम की वाणी

हर पल राह दिखाएगी

युगों युगों तक नव पीढ़ी को

मंजिल तक ले जाएगी ll

बना मिसाइल अपनी मेधा

दुनिया को दिखलाए हैं

अणुबम की ताकत दिखलाकर

जग में मान बढ़ाए हैं ll

सपने सच होते हैं जब खुद

सपने देखे जाते हैं

दुख में जो भी धैर्य उठाये

कलाम सा बन जाते हैं ll

क्लास रूम का बेंच आखिरी

शक्ति स्रोत बन जाता है

गुदड़ी में जो लाल छिपा है

काम देश के आता है…

Continue

Added by डॉ छोटेलाल सिंह on October 16, 2018 at 2:40pm — 7 Comments

ये जो है लड़की

ये जो है लड़की

उसकी जो आँखे

आँखों में सपना

सपने में घर

उसका अपना घर

जिसके बाहर

वो लिख सके

यह  मेरा घर है दुकान नहीं है…

Continue

Added by amita tiwari on October 16, 2018 at 12:30am — 7 Comments

गजल(डरे जो बहुत....)

122 122  122  12
डरे जो बहुत,बुदबुदाने लगे
मसीहे,लगा है, ठिकाने लगे।1

तबाही का' आलम बढ़ा जा रहा
चिड़ी के भी' पर फड़फड़ाने लगे।2

नचाते रहे जो हसीं को बहुत
सलीके से' नजरें चुराने लगे।3

नहीं कुछ किया,कहते' आँखें भरीं
गये वक्त अब याद आने लगे।4

उड़ाते न तो कोई' उड़ता कहाँ?
यही कह सभी अब चिढ़ाने लगे।5
"मौलिक वअप्रकाशित"

Added by Manan Kumar singh on October 15, 2018 at 9:53pm — 6 Comments

पागल मन ..... (400 वीं कृति )

पागल मन ..... (400 वीं कृति )

एक

लम्बे अंतराल के बाद

एक परिचित आभास

अजनबी अहसास

अंतस के पृष्ठों पे

जवाबों में उलझा

प्रश्नों का मेला

एकाकार के बाद भी

क्यूँ रहता है

आखिर

ये

पागल मन

अकेला

तुम भी न छुपा सकी

मैं भी न छुपा सका

हृदय प्रीत के

अनबोले से शब्द

स्मृतियाँ

नैन घनों से

तरल हो

अवसन्न से अधरों पर

क्या रुकी कि

मधुपल का हर पल

जीवित हो उठा

मन हस पड़ा…

Continue

Added by Sushil Sarna on October 15, 2018 at 7:48pm — 14 Comments

काली स्याही

सजल आँखें,,बोझल मन !
अनुत्तरित प्रश्न ! टूटता बदन !
कुछ फिक्र ! कुछ लाचारी !
कुछ चाही...........,
कुछ अनचाही जिम्मेदारी !
ये कहानी थी कभी शामों की!
पर अब,,न जाने क्यों...
सूरज सर पे चमकता है,
फिर भी रातों का अंधेरा,,
आँखों से नहीं छंटता है ।
मैं लिख रही दास्तान---
बदलते हुए हालात की !
कि अब सफेद सुबहों में,
घुली है............
काली स्याही...रात की....!


मौलिक व अप्रकाशित

Added by V.M.''vrishty'' on October 15, 2018 at 12:24pm — 9 Comments

दुख बयानी है गजल - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

अब न केवल प्यार की ही दुख बयानी है गजल

भूख गुरबत जुल्म की भी अब कहानी है गजल।१।



कल तलक लगती रही जो बस गुलाबों का बदन

अब पलाशों की  उफनती  धुर जवानी है गजल।२।



वो जमाना और था जब जुल्फ लब की थी कथा

माँ पिता के प्यार की  भी  अब निशानी है गजल।३।



पंछियों की चहचहाहट  फूल की मुस्कान भी

गीत गाती एक नदी की ज्यों रवानी है…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 14, 2018 at 3:30pm — 23 Comments

सत्यव्रत (लघुकथा)

"व्रत ने पवित्र कर दिया।" मानस के हृदय से आवाज़ आई। कठिन व्रत के बाद नवरात्री के अंतिम दिन स्नान आदि कर आईने के समक्ष स्वयं का विश्लेषण कर रहा वह हल्का और शांत महसूस कर रहा था। "अब माँ रुपी कन्याओं को भोग लगा दें।" हृदय फिर बोला। उसने गहरी-धीमी सांस भरते हुए आँखें मूँदीं और देवी को याद करते हुए पूजा के कमरे में चला गया। वहां बैठी कन्याओं को उसने प्रणाम किया और पानी भरा लोटा लेकर पहली कन्या के पैर धोने लगा।

 

लेकिन यह क्या! कन्या के पैरों पर उसे उसका हाथ राक्षसों के हाथ जैसा…

Continue

Added by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on October 14, 2018 at 2:23pm — 17 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६२

2122 1122 1122 22/ 112

 

याद की तह से कई भूले फ़साने निकले

आज हम तेरे लिखे ख़त जो जलाने निकले //1

 

चाहता हूँ मैं तुझे अपनी अना से बढ़कर

इस यकीं तक तुझे लाने में ज़माने निकले //२ 

 

ये भी अहसान जताने की नई कोशिश है

ख़त्म जब हो चुका रिश्ता तो मनाने निकले //3

 

अब कोई इनको बताए कि क़ज़ा क्या शय है

जा चुके छोड़ के दुनिया तो बुलाने निकले //4

 

जिनने खाई थी क़सम मुझको नहीं देखेंगे

आज काँधे पे मेरी लाश…

Continue

Added by राज़ नवादवी on October 14, 2018 at 10:00am — 13 Comments

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ६१

2122 1122 1122 112/22

--------------------------------

जिसको भी चाहा मुहब्बत में हमारा न हुआ

दिल हमारा किसी सूरत भी गवारा न हुआ //1



मेरे क़िरदार में पाने की लियाक़त नहीं थी 

मुझपे जो फैज इनायत का दुबारा न हुआ //2



आज फिर बाम पे छाई थी अमावस काली 

आज फिर बिन्ते अशीयत का नज़ारा न हुआ //3



है जईफी तो सताती है हमें तन्हाई 

जब जवाँ थे तो मुहब्बत का इशारा न हुआ //4



मौजें उठतीं है मगर रोक लेता है…

Continue

Added by राज़ नवादवी on October 14, 2018 at 10:00am — 8 Comments

मत्तगयंद सवैया-रामबली गुप्ता

हे! जगदीश! सुनो विनती अब, भक्त तुम्हें दिन-रैन पुकारे।
व्याकुल नैन निहार रहे पथ, पावन दर्शन हेतु तुम्हारे।।
कौन भला जग में अब हे हरि संकट से यह प्राण उबारे।
आ कर दो उजियार प्रभो! हिय, जीवन के हर लो दुख सारे।।

रचनाकार-रामबली गुप्ता

मौलिक एवं अप्रकाशित

सूत्र-भगण×7+गुरु गुरु; 211×7+22

Added by रामबली गुप्ता on October 13, 2018 at 9:48pm — 6 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service