(फाइलातुन _फाइलातुन _फाइलातुन _फाइलुन)
याद है तेरी इनायत, ज़ुल्म ढाना याद है |
जानेमन मुझको मुहब्बत का ज़माना याद है |
हम जहाँ छुप छुप के मिलते थे कभी जाने जहाँ
आज भी वो रास्ता और वो ठिकाना याद है |
भूल बैठे हैं सितम के आप ही क़िस्से मगर
दर्द, ग़म,आँसू का मुझको हर फ़साना याद है|
इस लिए दौरे परेशानी से घबराता नहीं
मुश्किलों में उनका मुझको मुस्कुराना याद है |
घर के बाहर यक बयक सुन कर मेरी आवाज़ को…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on July 2, 2018 at 5:30pm — 20 Comments
थप्पड़ - लघुकथा –
आज तीन साल बाद सतीश जेल से छूट रहा था। उसे सोसाइटी के मंदिर में चोरी के इल्ज़ाम में सज़ा हुई थी| घरवालों ने गुस्से में ढंग से केस की पैरवी भी नहीं की थी। । पिछले तीन साल के दौरान भी कोई उसे मिलने नहीं गया था। इसलिये घर में सब किसी अनहोनी के डर से आशंकित थे|
जेल से जैसे ही सतीश बाहर आया तो देखा कि उसे जेल पर लेने कोई नहीं आया । उसने कुछ दोस्तों को फोन किये, जो चोरी के माल में ऐश करते थे। लेकिन सब बहाना बना कर टालमटोल कर गये।
घर पर पहुंच कर पता चला कि…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on July 2, 2018 at 4:30pm — 16 Comments
मुझे भी तुमसे मुहब्बत की आस है प्यारे।
कदम-कदम पे सलीबों की प्यास है प्यारे॥
ख़यालो-ख्वाब, तसव्वुर भी जुर्म होते हैं।
चले भी आओ हर नज़ारा उदास है प्यारे॥
मुझे भी पढ़ के किताबों में दफ्न कर देना।
वाकिफ हैं तुम्हारी आदत खास है…
ContinueAdded by SudhenduOjha on July 2, 2018 at 1:00pm — No Comments
पुश्तैनी घर में होने वाले रोज़-रोज़ के झगड़े से तंग आ चुका था और मंशा थी की अपना एक अलग घोसला बनाया जाए |श्री वर्मा जी जो की मेरे शिक्षक,मार्गदर्शक एवं प्रेरणाश्रोत रहे हैं उनसे इस सिलसिले में मिलने पहुँचा |
मिलते ही उन्होंने प्रश्न किया-सबसे पहले यह बताओ की कितनी नकद राशि है और घर लेने की क्या योजना है |
“पैसे तो छह-सात लाख के आसपास हैं बाकि पैसे लोन करा लूँगा |सोच रहा हूँ की कोई जड़ सहित मकान या फ़्लोर मिल जाए |”मैंने हिचकिचाते हुए कहा
“लेकिन या परंतु बाद में ---सबसे पहले…
ContinueAdded by somesh kumar on July 2, 2018 at 9:59am — 4 Comments
इश्क मे दरिया मे उतरता चला गया l
जितना डूबा दिल निखरता चला गया ll
हमने तो की कोशिशे की जुदा न हो l
फिर भी कैसे बिछड़ता चला गया ll
उसने लहज़ा बदल दिया तभी l
नज़रों से उतरता चला गया ll
उसकी बातों मे फिसल गये सभी l
मैं भी फिर बहकता चला गया ll
वो जितना सुलझते चले गये l
उतना ही मैने उलझता चला गया ll
इश्क भी आसा न था करना यहाँ "यश" l
काँटों पर…
ContinueAdded by yogesh shivhare on July 2, 2018 at 7:54am — 5 Comments
Added by Mohan Begowal on July 1, 2018 at 10:13pm — 4 Comments
२१२२ २१२२ १२
बूँद जो थी अब नदी हो गयी
दिल्लगी दिल की लगी हो गयी
जिंदगी का अर्थ बस दर्द था
तुम मिले आसूदगी हो गयी
आ गया जो मौसमे गुल इधर
शाख सूखी थी हरी हो गयी
बिन तुम्हारे एक पल यूँ लगा
जैसे पूरी इक सदी हो गयी
जिंदगी गुलपैरहन सी हुई
आप से जो दोस्ती हो गयी
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by Neeraj Neer on July 1, 2018 at 6:32pm — 7 Comments
2122 2122 2122 212
जो नहीं मँझधार में थे, साहिलों के पास थे
मुद्दतों से पाँव उनके दलदलों के पास थे
जीत के सारे हुनर तो हौसलों के पास थे
पैतरे ही थे फ़क़त जो बुज़दिलों के पास थे
मैं कहाँ चूका बता इस ज़िंदगी की दौड़ में
लोग जो दौड़े नहीं वो मंज़िलों के पास थे
बर्क़ ने कुछ न बिगाड़ा जो थे ज़ेरे आसमाँ
वो परिंदे मर गये जो…
Added by राज़ नवादवी on July 1, 2018 at 6:30pm — 9 Comments
1212 1212 1212 1212
दिलों की आग बुझ गई, जिगर में अब धुआँ नहीं
कि तुम भी अब जवाँ नहीं, कि हम भी अब जवाँ नहीं
सितारे गुम हुए सभी, रुपहली कहकशाँ नहीं
ज़मीने दिल पे अब तेरी वफ़ा का आसमाँ नहीं
सफ़र भी ज़िंदगानी का हुआ कभी अयाँ नहीं
जहाँ पे रहगुज़र मिली वहाँ पे कारवाँ नहीं
वो मुझसे बोलता नहीं, वो मुझसे सरगिराँ नहीं
वफ़ा की आग क्या…
Added by राज़ नवादवी on July 1, 2018 at 6:00pm — 16 Comments
बह्र-ए-मीर पर आधारित ग़ज़ल
कमबख्त कहाँ से आये इतनी रात गये
उनकी यादों के साये इतनी रात गये
आज उभर के आया है इक दर्द पुराना
बेलौस हवा सहलाये इतनी रात गये
कश्ती कागज की गहरे यादों के दरिया
अब नींद कहाँ से आये इतनी रात गये
गीली मिटटी की सौंधी सौंधी सी खुशबू
अंतस में आग लगाये इतनी रात गये
किस प्रियतम के लिए हुआ बैचैन पपीहा
जो घड़ी घड़ी चिल्लाये इतनी रात गये
दूर उफ़क़ से आती हैं ग़मगीन…
ContinueAdded by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 1, 2018 at 4:30pm — 8 Comments
शैतानों की देखो दावत करता है
पापी है पर जन्नत जन्नत करता है ।
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कोई तुझे न देखे अच्छी नज़रों से
क्यों तू ऐसी वैसी हरकत करता है ।
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क्या होता है हाथों की रेखाओं में
मिहनत कर क्यों क़िस्मत क़िस्मत करता है ।
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काली काली बदली जब भी छाये तो
दहक़ाँ फिर बारिश की हसरत करता है ।
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भेद नहीं है कोई उसकी नज़रों में
फिर क्यों तू औरों से नफ़रत करता है ।
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अता किया सबकुछ क़ुदरत ने उसको पर
वो तो…
Added by Mohammed Arif on July 1, 2018 at 4:22pm — 13 Comments
212 212 212 212
आप जब आईने में सँवर जाएंगे ।
फिर तसव्वुर मेरे चाँद पर जाएंगे ।।1
गर इरादा हमारा सलामत रहा ।
तो सितारे जमीं पर उतर जायेंगे ।।2
आज महफ़िल में वो आएंगे बेनकाब ।
देखकर हुस्न को इक नज़र जाएंगे ।।3
आज मौसम हसीं ढल गयी शाम है ।
तोड़कर आप दिल अब किधर जाएंगे ।।4
कीजिये बेसबब और इनकार मत ।
हौसले और मेरे निखर जाएंगे ।।5
जानकर क्या करेंगे…
ContinueAdded by Naveen Mani Tripathi on June 30, 2018 at 6:43pm — 12 Comments
बाबू राम नाथ पचहत्तर पार कर चुके हैं। शरीर अब जवाब देने लगा है। अभी कई दिन पहले जरा डाॅक्टर से चैक-अप कराने गये थे कि देर तक धूप में खड़ा रहना पड़ा । घर लौटते तेज़ बुखार हो गया। बेटा संयोग से इस वीक एन्ड पर सपत्नीक चला आया। दोनों बहनें जो अपने बच्चों के गर्मियो की छुट्टियों में आयी हुईं थी।सो डाॅक्टर को घर बुला लाया।
"हीट स्ट्रोक हुआ है', ङाॅक्टर बोला था। दवा दे गया था। अब आराम था। लेकिन कमजोरी बहुत थी। लू मानो सारा खून चूस गई थी। बाथरूम भी मुश्किल से जा पाते थे।
अभी कल…
Added by Chetan Prakash on June 30, 2018 at 6:00pm — 14 Comments
बहुत हुआ सूरज का तपना
अब तो आओ मेघ
जम कर बरसो मेघ
तपती धरती का सीना हो ठंढा
सूखी मिट्टी महके सोंधी
बंजर सी जमीं पर
अब फैले हरियाली
ठूंठ बन गए पेड़ों के
पत्ते अब हरियाएँ
नभ पर जमकर छा जाते
गरज का बिजली कड़काते
संग में वर्षा भी लाते
गर्मी डरकर जाती भाग
मौसम हो जाता खुशहाल
पर बादल तो
इधर से आये उधर गए
हम तो आस ही लगाए रहे
खुली चोंच लिए पक्षी
प्यासे ही रह गए
खेत जोतने को
हल लिए किसान…
Added by Neelam Upadhyaya on June 30, 2018 at 3:25pm — 8 Comments
इस बार सरकार के सामने जो प्रस्ताव आया था वह चोंकाने वाला था। उनकी माँग थी कि राष्ट्रीय ध्वज में चक्र के स्थान पर गाय का चेहरा दिखाया जाय। अन्य धार्मिक संगठनों ने भी इस माँग का समर्थन कर डाला। इसके पीछे उनकी दलील थी कि इससे देश और विदेश में गाय का सम्मान बढ़ेगा और महत्व भी। इस नीति से गाय के विरुद्ध होने वाली हिंसा भी रुकेगी| अतः सरकार को झुकना पड़ा। सरकार का इरादा था कि इस नीति को गुप्त रखा जाय और चुनाव के वक्त खुलासा किया जाय। एक तरह से सरकार इस नीति को हथियार के रूप में चुनाव में भुनाना…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on June 30, 2018 at 11:30am — 8 Comments
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलुन
उसने बिखरे काग़ज़ों को छू के संदल कर दिया
इक अधूरी सी ग़ज़ल को यूँ मुकम्मल कर दिया
कुछ तो दीवाना…
ContinueAdded by santosh khirwadkar on June 30, 2018 at 8:30am — 18 Comments
मापनी २१२२ २१२२ २१२२ २१२२
गाँव से आकर नगर में फिर वो’ मंजर ढूँढते हैं
ईंट गारे के महल में गाँव का घर ढूँढते हैं
रौशनी देने सभी को मोम पिघला भी, जला भी …
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 29, 2018 at 4:00pm — 12 Comments
प्रतीक (लघु रचना ) .....
मेरे होटों पे
तूने अपने स्पर्श से
जो मौन शब्द छोड़े थे
सोचा था
वो
ज़हन की गीली मिट्टी में गिरकर
अमर गंध बन जाएंगे
क्या पता था
वो स्पर्श
मात्र
भावनाओं की आंधी थे
जो अन्तःस्थल में
एक घुटन के
प्रतीक
बन कर रह गए
एक स्वप्न का
यथार्थ कह गए
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on June 29, 2018 at 12:43pm — 4 Comments
घुमड़-घुमड़ बदरा छाये,
चम-चम चमकी बिजुरियां,छाई घनघोर काली घटाएं,
घरड-घरड मेघा बरसे,
लगी सावन की झड़ी,करती स्वागत सरसराती हवाएं........
लो,सुनो भई,बरखा बहार आई......
तपती धरती हुई लबालव,
माटी की सौंधी खुश्बू,प्रफुल्लित बसुन्धरा से संदेश कहती,
संगीत छेड़ती बूंदों की टप-टप ,
लहराते तरू,चहचहाते विहग,कोयल मधुर गान छेड़ती.......
लो सुनो भई,वरखा बहार आई.......
छटा बिखर गई,मयूर थिरक उठा-सा,
सुनने मिली झींगरों की झुनझुनी,पपीहे…
ContinueAdded by babitagupta on June 28, 2018 at 8:30pm — 9 Comments
5 क्षणिकाएं :
१
रात
रोज मरती है
अपने दोस्त
दिन के
इंतज़ार में
................
२
तपते सागर का
दर्द
लाते हैं मेघ
भीग जाती हैं
वसुधा
...................
३
नैनालिंगन
मौन अभिनन्दन
अधर समर्पण
....................
४
ज़िद पर आ जाये
तो
पाषाणों को…
ContinueAdded by Sushil Sarna on June 28, 2018 at 4:30pm — 4 Comments
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